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"खुद से भी ज्यादा. सच कहूं तो मैं यही चाहती हूं कि तुम इस बारे में न सोचो."
"मैं ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि मेरी पत्नी नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाए. मैं जानता हूं कि तुम में मुझ से ज्यादा टेलैंट है."
"यह तुम क्या कह रहे हो?"
"मैं सही कह रहा हूं. तुम मुझ से अच्छी नौकरी पर हो.  तुम्हारी नौकरी के घंटे कम हैं और साथ ही नौकरी का तनाव भी कम है.  मेरी नौकरी का समय तुम से ज्यादा है और उस में तनाव भी बहुत है. अकसर नौकरी के सिलसिले में टूर पर जाना पड़ता है. मैं नौकरी से ऊपर अपने घर को तवज्जो देता हूं."
"तुम ठीक कहते हो पर तुम्हारे मम्मीपापा क्या सोचेंगे?"
"तुम मेरे मम्मीपापा की नहीं अपने मम्मीपापा की फ़िक्र करो.  उन्हें अच्छा नहीं लगता कि दामाद नौकरी छोड़ कर घर पर रहे. मैं ने इसे अपना घर नहीं हमारा घर समझा है.  इस घर का गुजारा एक के काम करने से अच्छे से चल जाता है.  हम बच्चों को देखने के लिए घर पर आया का प्रबंध करते हैं. उस के बदले भी उसे अच्छाखासा मेहनताना देना पड़ता है.  उस पर भी दिनभर तनाव रहता है. शाम को बच्चों के काम की चिंता लगी रहती.  इस सब को संभालने के लिए हम दोनों में से एक का घर पर रहना जरूरी है. वैसे, मैं घर पर रह कर भी अच्छाखासा कमा लूंगा. अब तुम खुद सोचो तुम क्या चाहती हो?"
"मैं ने अपनी इच्छा तुम्हें बता दी है."
"अनु, तुम नौकरी छोडती हो तो तुम पर काम का बोझ अधिक पड़ेगा और तुम्हें शायद नौकरी छोड़ने का पछतावा भी हो."
"अभी नौकरी छोड़ने की क्या जरूरत है.  मैं अवैतनिक अवकाश भी ले सकती हूं."
"वह तो ठीक है लेकिन तुम जिस जगह पर हो वहां पर तुम्हें अपने स्टूडैंट्स के भविष्य का खयाल भी रखना चाहिए. मेरे ऊपर इस प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है. औफिस में एक काम छोड़ता है उस की जगह दूसरा ले लेता है," तुषार ने अनु को समझाया.
"तुम ठीक कहते हो, तुषार.  तुम्हारी सोच बहुत बड़ी है और मेरी छोटी."
"ऐसी बात नहीं है, अनु,  तुम्हारी सोच मुझ से भी बड़ी है लेकिन समाज का दवाब देख कर शायद तुम झुक जाती हो. मुझे अपने घर की परवाह है समाज की नहीं."
तुषार का निर्णय अनु को बहुत अच्छा लगा.  तुषार ने पहले अवैतनिक अवकाश का प्रार्थनापत्र दिया उस के बाद उस ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
अनु ने यह बात जब मम्मी को बताई तो वह अवाक रह गई,"अनु, मैं यह क्या सुन रही हूं?"
"मम्मी आप ने ठीक सुना है. तुषार ने नौकरी छोड़ दी है."
"ऐसी क्या मजबूरी आ गई?"
"मम्मी, घर पर बच्चों को हमारी जरूरत है. उसे पूरा करने के लिए किसी एक को तो यह सब करना ही था. हम दोनों ने सोचा और तुषार ने नौकरी छोड़ने का निर्णय ले लिया."
"तो क्या दामादजी दिन भर औरतों की तरह घर का काम देखेंगे?"
"मम्मी, आप घर के काम को छोटा समझती हैं. जब 2 लोग घर से बाहर निकल कर दिनभर काम करते हैं तो दोनों के ऊपर घर और बाहर दोनों  का दवाब रहता है.  तुषार नहीं चाहते मैं इस प्रकार का तनाव झेलूं. उन्हें मेरी चिंता रहती है.  तभी तो उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया है. हर किसी पुरुष के बस का यह सब नहीं होता," अनु बोली तो सुधा चुप हो गई.
वह आज तक तुषार को दिल से अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकी थी. उन्हें लगता था कि इस के कारण ही अनु उस मुकाम तक न पहुंच सकी थी जहां उसे होना चाहिए था. तुषार के चक्कर में पड़ कर उस ने अपना कैरियर बरबाद कर लिया था.  कितनी उम्मीदें थीं उन्हें अनु से? उस के मन में कहीं बहुत बड़ी कसक थी. उन की  बेटी ने हमेशा अपनी ही मनमानी की है और उन की कभी नहीं सुनी. जब कैरियर बनाने का समय था तब शादी कर ली.  अब जरा स्थिति सुधरी थी तो उस के पति ने नौकरी छोड दी है और घर बैठ कर बच्चे पाल रहा है.  वे समाज और रिश्तेदारों को क्या जवाब देंगे कि उन का दामाद नौकरी छोड़ कर घर में औरतों की तरह आया का काम कर रहा है?
तुषार ने जल्दी ही अपना घर और मार्केटिंग का काम बहुत अच्छे से संभाल लिया.  वह सुबह रिया को स्कूल भेजता और दोपहर उन्हें लेने जाता.  इस बीच वह अपना मार्केटिंग का काम भी कर लेता. इस से उस की अच्छीखासी कमाई भी होने लगी थी. शाम को दोनों बच्चों को घुमाने भी ले जाता. अनु कालेज से थकीहारी घर आती तो उस से प्यार से बात करता और उस की इच्छा का मान रखता. दोनों को समय मिलता तो वे इधरउधर घूमने भी चले जाते.
एक दिन सुधा का फोन आया. वह बहुत घबराई हुई थी,"अनु, तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई है. तुम तुरंत यहां आ जाओ."
"मम्मी, मैं वहां आ कर क्या करूंगी? दिल्ली में बहुत अच्छे डाक्टर हैं. तुम प्लीज पापा को लेकर तुरंत यहां आ जाओ."
मरता क्या न करता. ऐसी हालत में शर्माजी को दिखाने के लिए दिल्ली लाना पड़ा. अनु ने साफ कह दिया था कि मम्मीपापा मेरे ही साथ आ कर रुकेंगे.  मजबूर हो कर सुधा को वहीं रुकना पड़ा. पापाजी की हालत ऐसी न थी कि वह अकेले भागदौड़ कर सकते. तुषार एक बेटे से भी बढ़ कर उन की सेवा में लगे रहे। वह सुबहसवेरे उन के साथ डाक्टर के पास जाते. दिनभर वह उन की हर जरूरत का खयाल रखता और साथ के साथ अपना औनलाइन मार्केटिंग का काम भी निबटा लेता.
तुषार की देखभाल और भागदौड़ का नतीजा था कि पापाजी की हालत में जल्दी सुधार हो गया था. इस दौरान सुधा घर पर रह कर बच्चों की देखभाल कर लेती. तुषार दिनभर पापाजी के साथ रह कर जब घर लौटता तो सब से पहले रिया को होमवर्क करवाता. ऐसी विषम परिस्थिति में भी उस ने अनु पर पापाजी की तबियत का जरा सी भी जिम्मेदारी नहीं डाली.
पहली बार सुधा को एहसास हुआ कि तुषार के रूप में उन्हें दामाद नहीं एक हीरा मिला है जिस की पहचान अनु को बहुत पहले हो गई थी. घर चलाने की उन की रूढ़िवादी सोच को तुषार ने तार-मतार कर दिया था. तुषार का अपने परिवार के प्रति समर्पण किसी स्त्री से भी बढ़ कर था.  यहां पर स्त्री-पुरुष का कहीं कोई भेद न था. उन के परिवार की गाङी बहुत ही अच्छी तरह से प्यार से सरोबार हो आगे बढ रही थी.
अनु और तुषार अपनी जिम्मेदारियां  बखूबी निभा रहे थे.  अनु घर से बाहर निकल नौकरी कर रही थी और तुषार घर की जिम्मेदारियां निभाते हुए अपना मार्केटिंग का काम भी कर रहा था? जिस से उस की अच्छीखासी कमाई भी हो रही थी. तुषार के मम्मीपापा यह बात पहले से जानते थे कि उन्हें अपने बेटे से कोई शिकायत नहीं थी.
यह सब देख कर उन्हें अब अनु के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं थी. उन की समझ में आ गया था कि दुनिया में रुतबा बहुत माने रखता है लेकिन इस से बढ़ कर घर की सुखशांति और पतिपत्नी के बीच की समझदारी होती है. घर में कितना भी पैसा आ जाए और वहां शांति न हो तो सब बेकार है.
सुधा के मम्मीपापा को पहली बार परिवार के प्रति समर्पण और आत्मविश्वास से भरे तुषार के सामने अपनी रूढ़िवादी सोच बहुत तुच्छ लगी.  तुषार की नई पहल पर अब उन्हें भी बहुत गर्व हो रहा था.  अनु की हंसतीमुसकराती गृहस्थी देख कर उस के मम्मी पापा बहुत खुश थे.

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