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सुबहसुबह अनु का फोन आ रहा था. सुधा ने झट से फोन उठा लिया. अनु के पापा शर्माजी भी पास में खड़े थे. सुधा ने हमेशा की तरह स्पीकर औन कर दिया जिस से वे दोनों उस से बात कर सकें. अनु ने उन्हें तुरंत खुशखबरी सुनाई,"मम्मी, मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है."

सुधा ने सुना तो अवाक रह गई. उसे अनु से अभी ऐसी उम्मीद नहीं थी. उस ने पूछा,"कौन है वह खुशनसीब जिसे हमारी बेटी ने अपना साथी चुना है?"

"तुषार,  हम दोनों यहां साथ ही कंपिटीशन की तैयारी कर रहे हैं,"

यह सुनते ही सुधा के हाथ कांपने और जबान लड़खड़ाने लगी.  अनु के पापा ने जब यह बात सुनी तो वे सन्न रह गए,"अनु, तुम क्या कह रही हो? तुम पर तो हमारी बहुत सारी उम्मीदें लगी हुई हैं."

"पापा, मैं आप की उम्मीदें पूरी करने की पूरी कोशिश करूंगी. मैं तुषार को अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. वह बहुत अच्छा लड़का है. मुझे पूरा यकीन है कि जब आप उस से मिलेंगे तो आप को भी वह बहुत पसंद आएगा."

"बेटा, वह तो अभी जौब पर भी नहीं है." "इस से क्या फर्क पड़ता है पापा? जौब में तो मैं भी नहीं हूं। हम दोनों संघर्ष कर रहे हैं और हमारा संघर्ष एक दिन जरूर रंग लाएगा."

"अनु एक बार फिर से सोच लो."

"इस में सोचना क्या है, पापा? मुझे अपने जीवनसाथी के रूप में तुषार पसंद है. मैं उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. अगर मेरी पसंद को आप लोग खुले दिल से स्वीकार करेंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा, मम्मी."

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