मोबाइल में समय देखते ही एकाएक अगले मैट्रो स्टेशन पर बिना कुछ सोचे वह उतर गया. ग्रीन पार्क मैट्रो स्टेशन से निकल कर धीरेधीरे चलते हुए ग्रीन पार्क इलाके की छोटी सी म्युनिसिपल मार्केट की ओर निकल आया यह सोच कर कि वहीं रेहड़ीपटरी से कुछ ले कर खा लेगा.
लेकिन आसपास कोई रेहड़ीपटरी वाला नहीं था तो वहीं एक छोटे से तिकोने पार्क की मुंडेर पर बैठ गया यह सोचते हुए कि इतनी जल्दी वापस जा कर भी क्या करेगा. कुछ देर योंही इधरउधर देखता रहा और आतीजाती गाड़ियों को गिनने लगा. वापस घर जाने की कोई तो वजह होनी ही चाहिए हर इंसान के पास. मगर उस के पास कोई वजह ही नहीं है.
बहुत मुश्किल है पचास साल की उम्र में फिर से काम की तलाश में यहांवहां भटकना और मायूसी में आकर बिस्तर पर पड़ जाना. दिल्ली की गरमी जूनजुलाई में अपने पूरे शबाब पर होती है मगर आज बादल छाए हुए हैं तो हवा में तपिश नहीं है. फिर वह उठ कर टहलने लगा. इस के दाहिने ओर सड़क के उस तरफ़ एक ऊंची दीवार दूर तक जाती दिखाई दे रही थी और उस के बाएं थोड़ी दूर पर ऊंची रिहायशी इमारतें. चलतेचलते उस की निगाह सामने बड़े से गेट के ऊपर स्पास्टिक सोसायटी औफ़ नौर्दन इंडिया के बोर्ड पर पड़ी तो वह सड़क पार कर वहां पहुंचा कि शायद इन्हें किसी वौलंटियर की ज़रूरत हो. पता करने में क्या हर्ज.
वह गेट की ओर बढ़ गया. गेट की सलाखों से भीतर झांका तो दूर तक हरियाली फैली हुई थी. उसे ऐसे झांकते देख कर गार्ड दौड़ता हुआ आया. उस से बात करने पर मालूम हुआ कि दोपहर 2 बजे तक ही मैडम मिलती हैं जो यहां की सर्वोसर्वा हैं. उसे शुक्रिया कहते हुए वह मायूस हो कर वहीं लौट आया.
भूख तो लग रही थी. उस ने छोटी सी मार्केट पर नज़र डाली. एक पर आयशा बुटीक का बोर्ड था, एक बार्बर शौप और एक अन्नपूर्णा स्वीट. यार, यह तो महंगी दुकान है, कुछ खाया तो बहुत पैसे खर्च हो जाएंगे, सारा मसला तो पैसे का ही है.
यही सोचते वह वहीं उसी मुंडेर पर आ कर बैठ गया. कुछ ही पल बीते थे कि एक अधेड़ उम्र की महिला कार से उतर कर उस के नज़दीक आ कर बैठ गई. उस ने देखा कि पकी उम्र के बावजूद वह ख़ूबसूरत दिख रही थी. बस, खिचड़ी बाल उस की उम्र की चुगली कर रहे थे, शायद खिजाब का इस्तेमाल नहीं करती.
“सिगरेट है तुम्हारे पास?” उस के इस अप्रत्यक्ष सवाल से हतप्रभ सा वह उसे ही देखता ही रह गया.
“क्यों, क्या तुम स्मोक नहीं करते?”
“जी, अब नहीं.”
“मतलब; पहले करते थे तो छोड़ क्यों दी?”
“जी, दिल की वजह से.”
“मतलब इश्क़?”
“नहीं, स्टंट,” कह कर वह मुसकरा दिया.
“मतलब कि दिल के ही मरीज़ हो, दोनों एक ही बात है,” और वह खिलखिला कर हंस दी. हवा में थोड़ी ठंडक सी बढ़ती महसूस हुई. “कमबख्त मुझ से छूटती ही नहीं. डाक्टर भी वार्निग दे चुके हैं. मगर लगता है मुझे भी दिल का दर्द लेना होगा सिगरेट छोड़ने के लिए.”
“आप के साथ ऐसा न हो,” एकदम उस की ज़बान से निकला.
उस ने नज़रें उठा कर उसे गौर से देखा और बोली, “मेरे लिए सिगरेट ला दोगे और 2 ले कर आना.”
“2,” उस ने उठते हुए सवालिया निगाह से देखा.
“अकेला होना सिगरेट को भी तो बुरा लगता होगा न?” और वह फिर खिलखिला दी. आसमान में बादल थोड़े से और काले पड़ने लगे.
थोड़ा आगे चल कर कोने में बनी छोटी सी पानबीड़ी की दुकान पर पहुंच कर उस ने सिगरेट मांगी.
“कौन सी सिगरेट बाबू?”
‘धत्त तेरी, यह पूछा ही नहीं उस से,’ उस ने मन ही मन ख़ुद को लताड़ा. लडकियों को मोर ब्रैंड की सिगरेट बहुत पसंद होती है, लगभग 30 वर्षों पहले कही गई उस की कालेजफ्रैंड नीलिमा की बात अचानक याद आ गई.
“मोर की सिगरेट है तुम्हारे पास?” उस की बात सुन कर दुकानदार ने मुसकरा कर उसे गौर से देखा और बोला, “मिल तो जाएगी बाबू, डेढ़ सौ की एक पड़ेगी.”
उस ने बिना कुछ कहे 300 रुपए उसे दिए और 2 सिगरेट ले कर मुड़ा तो दुकानदार आवाज़ लगा कर उसे माचिस देते हुए बोला, “बाबू यह भी लेते जाओ, जलाने के लिए किस से मांगोगे?”
दुकानदार की इस समझदारी और दयालुता की मन ही मन तारीफ़ करता हुआ वह वापस अपनी जगह लौट आया लेकिन महिला वहां नहीं थी. इधरउधर नज़रें दौड़ाईं तो उस की औडी भी वहां नहीं थी. कुछ मिनट इधरउधर देखने के बाद वह फिर उसी मुंडेर पर बैठ गया.
कहां चली गई सिगरेट मंगा कर? खामखां मुझे हैरान किया. अब इन सिगरेट्स का मैं क्या करूं? दुकानदार को वापस कर दूं? नहीं यार, उसे बुरा लगेगा. उसे क्या हर दुकानदार को बुरा लगेगा बिकी हुई चीज़ के पैसे वापस करना. और फिर यह दुकानदार तो भला मानस है. वरना कौन इस बात की परवा करता है कि सिगरेट ले जाने के बाद कोई उसे जलाएगा कैसे. वह तो सब ठीक है मगर अब इन का करूं क्या?
इसी उधेड़बुन में था कि किसी के हाथ कंधे पर महसूस हुए. उस ने थोड़ा घूम कर देखा, तो वह खड़ी मुसकरा रही थी.
“मुझे मिस कर रहे हो न?” कहती हुई उस के नज़दीक बैठ गई.
“जी, लीजिए आप की सिगरेट.”
“तुम्हें लड़कियों की पसंद की काफ़ी नौलेज है,” उस ने सिगरेट लेते हुए कहा.
“जी, ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन आप ऐसा क्यों कह रही हैं?”
उसी के चेहरे पे टिकी रह गई.