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‘‘अरे, मेरी शादी के वक्त से ही शशि बाबा को पसंद नहीं था. उस की नौकरी, तनख्वाह कुछ भी उन्हें मेरे लायक नहीं लगा था. लेकिन शशि देखने में इतना हैंडसम था कि मैं देखते ही उस के प्यार में पागल हो गई थी. और मांबाप के लाख समझाने पर भी मैं शशि से ही शादी करने की जिद कर बैठी थी. आखिर मेरी जिद की वजह से मेरी शशि से शादी हो गई. शादी के बाद हम दोनों जब भी मांबाबा के घर जाते शशि को हमेशा ही लगता कि उस की नौकरी और कम तनख्वाह के कारण बाबा उसे नीची नजरों से देखते हैं.

‘‘मैं ने जब शशि की शिकायत बाबा से करी तो बाबा ने गुस्से में भर कर उसे सुना दिया कि तुम मेरी बेटी के लायक कभी थे ही नहीं और कभी हो भी नहीं सकते.

‘‘यह सब सुनने के बाद मेरा मायका छूट गया. शशि के स्वभाव ने और भयंकर रूप धारण कर लिया था... यही है मेरी गृहस्थी का असली रूप. मां बाबा और सुरेश अब अमेरिका में ही रहने लगे हैं... न वे कभी मेरे से मिलने आए और न मैं कभी उन के पास गई... जीवन में मुझे एक ही सुख मिला है और वह है मेरी बेटी प्रिया. उसे देख कर ही मैं जी रही हूं.’’

‘‘बेटी से कैसा सलूक है तुम्हारे पति का?’’

‘‘बेटी को तो वह बहुत प्यार करता है. लेकिन उस के स्वभाव के कारण प्रिया उस से डरी डरी सी रहती है... हम दोनों के झगड़े में पिसती जा रही है... हर समय सहमी सहमी सी रहती है.’’

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