12वीं कक्षा तक मैं और अल्पना एक ही स्कूल में पढ़ते थे. 12वीं कक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग करने के लिए मैं मुंबई चला गया. इंजीनियरिंग करतेकरते मेरी अपनी क्लास की मृणाल से दोस्ती हो गई, जो फिर प्यार में बदल गई. शादी करने के बाद मृणाल और मैं दोनों अमेरिका चले गए. उस के बाद अल्पना और उस के परिवार की यादें मेरे लिए धुंधली सी पड़ती गई थीं.
मैं अमेरिका में ही था. तभी अल्पना की शादी हो गई थी. यह खबर मुझे अपनी मां से मिली थी. मां बाबा थे तब तक अल्पना और उस के परिवार की कुछ न कुछ खबर मिलती रहती थी… 7-8 साल पहले मां का और फिर बाबा का देहांत हो जाने के बाद कभी इतने करीबी रहने वाले अल्पना के परिवार से मानों मेरा संबंध ही टूट गया था.
आजकल सचमुच जीवन इतना फास्ट हो गया है कि जो वर्तमान में चल रहा है बस उसी के बारे में हम सोच सकते हैं… बस उसी से जुड़े रहते हैं… कभीकभार भूतकाल इस तरह अल्पना के रूप में सामने आ जाता है तभी हम भूतकाल के बारे में सोचने लगते हैं.
मैं अपने ही विचारों में खोया हुआ था कि तभी अल्पना सामने आ खड़ी हुई तो मैं वर्तमान में लौटा. फिर कार का दरवाजा खोल कर अल्पना को बैठने को कहा.
‘‘क्यों, मन अमेरिका पहुंच गया था क्या?’’ कार में बैठते हुए अल्पना ने कहा, ‘‘अमेरिका से कब आए? अब क्या यहीं रहोगे या वापस जाना है?’’
‘‘वापस जाना है… यहां बस साल भर के लिए एक प्रोजैक्ट पर आया हूं…. यहां पास ही एक किराए पर मकान ले लिया है… आजकल इंडिया में काफी सुविधाएं हो गई हैं.’’
‘‘और मृणाल कैसी है? बच्चे क्या कररहे हैं?’’
‘‘एक ही बेटा है.’’
‘‘क्या पढ़ाई कर रहा है?’’
‘‘इंजीनियरिंग कर रहा है… आखिरी साल है उस का भी.’’
‘‘यानी तुम्हें भी एक ही लड़का है?’’
‘‘हांहां, बिलकुल तुम्हारी ही तरह हम दोनों एक जान और हमारी अकेली जान.’’
हम बातें करतेकरते अल्पना के घर तक पहुंच गए थे. अल्पना के कहने पर मैं उस का फ्लैट देखने ऊपर उस के घर गया.
छोटा सा 2 कमरों का फ्लैट था, लेकिन निहायत खूबसूरती से सजाया गया था. डाइनिंग टेबल के साथ लगी खिड़की के इर्दगिर्द लहराता हुआ मनीप्लांट, घर के द्वार पर रखा मोगरे का गमला. उस छोटे से ड्राइंगरूम में घर की हर चीज घर की गृहिणी की कलात्मक रुचि की गवाही दे रही थी.
घर को निहारते हुए अनायास ही मैं बोल पड़ा, ‘‘वाह, क्या बढि़या सजा रखा है तुम ने घर… नौकरी करते हुए भी कैसे कर लेती हो यह सब…?’’
मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी अंदर से एक बेहद हैंडसम व्यक्ति लगभग चिल्लाता हुआ बाहर आया और अल्पना पर बरस पड़ा, ‘‘इतनी देर तक कहां मटरगस्ती हो रही थी… मुझे काम पर जाना है… याद भी है? तुम्हारी तरह औफ नहीं है मेरा.’’
अल्पना की बड़ी विचित्र स्थिति हो गई थी. मैं भी हैरान हो कर कभी अल्पना को कभी उस इनसान को देख बड़ी मुश्किल से खुद को संभाले खड़ा था.
‘‘ये मेरे पति हैं शशिकांत और शशि ये हैं अरुण… मैं ने तुम्हें इन के बारे में बताया था न… हमारे पड़ोस में रहते थे,’’ अल्पना ने कुछ झेंपते हुए अपने पति से मेरी मुलाकात करानी चाही थी.
‘‘अच्छा… ठीक है… लेकिन मेरे पास अब जरा भी फुरसत नहीं है और होती भी तो तुम्हारे पुराने यारों से परिचित होने का मुझे कोई शौक नहीं है…’’ कह वह मेरे हाथ मिलाने के लिए बढ़े हाथ को इग्नोर कर अंदर चला गया.
मैं अवाक खड़ा रह गया. फिर बोला, ‘‘ओके अंजू, मैं चलता हूं… मृणाल राह देख रही होगी,’’ और फिर उस की तरफ बिना देखे ही घर से बाहर निकल आया.
गाड़ी में बैठतेबैठते अनायास ही मेरी नजरें ऊपर गईं तो देखा अल्पना अपनी छोटी सी बालकनी में खड़ी हो कर बड़ी असहाय सी नजरों से मुझे देख रही थी. आंखों में आंसू थे, जिन्हें छिपाने का प्रयास कर रही थी. उस की वे असहाय सी नजरें मेरा घर तक पीछा करती रहीं.
घर पहुंचते ही मृणाल को सारी बात बताई तो वह भी अवाक सी रह गई. हमारी शादी के बाद से ही मृणाल अल्पना और उस के पूरे परिवार को जानती थी. अल्पना की मां की दी हुई कांजीवरम की साड़ी आज भी मृणाल ने संभाल कर रखी है. अल्पना की सुंदरता और मिलनसार स्वभाव से तो मृणाल उसे देखते ही प्रभावित हो गई थी और कभीकभी मुझे चिढ़ाते हुए कहती कि ऐसी माधुरी दीक्षित सी सुंदर लड़की पड़ोस में थी फिर भी तुम मेरे पीछे कैसे पड़ गए थे अरुण.
जाने कितनी देर तक हम दोनों अल्पना के बारे में ही बातें करते रहे.
तभी मेरे मोबाइल पर फोन आ गया.
‘‘मैं… मैं अल्पना बोल रही हूं.’’
‘‘बोलो.’’
‘‘तुम्हें सौरी कहने के लिए फोन किया है… तुम पहली बार हमारे घर आए और… और तुम्हारी बिना वजह इनसल्ट हो गई.’’
‘‘अरे, नहींनहीं… मेरी इनसल्ट की छोड़ो… तुम मुझे सचसच बताओ कि तुम दोनों में कोई प्रौब्लम चल रही है क्या?’’
‘‘प्रौब्लम? मेरी कोई प्रौब्लम नहीं. सारी प्रौब्लम्स शशि की ही हैं.’’
‘‘जरा खुल कर बताओ. शायद मैं कुछ मदद कर सकूं?’’
‘‘अब फोन पर नहीं बता सकती… लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि शशि का गुस्सैल व शक्की स्वभाव मेरे लिए सहना मुश्किल होता जा रहा है. उस के इस स्वभाव की वजह से ही मैं किसी के घर नहीं जाती और न किसी को अपने घर बुलाती… कल अचानक तुम मिल गए… मुझे पहुंचाने घर तक आ गए… न जाने कैसे मैं ने तुम्हें ऊपर अपने घर में बुला लिया…’’
‘‘तुम ने ये सारी बातें मां बाबा को बताई हैं कि नहीं?’’
‘‘शुरूशुरू में कोशिश की थी बताने की उसी का परिणाम आज तक भुगत रही हूं.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘तुम्हें तो पता ही है मेरे बाबा भी कितने गुस्सैल थे… उन्हें जब यह सब पता चला तो उन्होंने शशि को गुस्से में बहुत कुछ बोल दिया था… जो नहीं बोलना चाहिए था वह भी बोल गए थे…