श्लोक ध्वनि ने गौरी को बिस्तर से उठने को मजबूर कर दिया. आज थोड़ी देर और सोने वाली थी फिर उसे याद आया कि आज ही तो प्रधान मूर्तिकार आने वाले हैं, मां की प्रतिमा के लिए मिट्टी लेने. आज सोनागाछी की गलीगली में गणिकाएं सुबह से ही केशों से स्नान कर उन की बाट जोहती रहेंगी. कहते हैं, दुर्गा ने अपनी परम भक्त वैश्या को वरदान दिया था कि तुम्हारे हाथ से ली गई गंगा की चिकनी मिट्टी से ही मेरी प्रतिमा बनेगी. दुर्गा ने अपनी भक्त को सामाजिक तिरस्कार से बचाने के लिए ही ऐसा किया. तब से ही सोनागाछी की मिट्टी से देवी की प्रतिमा बनाने की शुरुआत हुई, ऐसा प्रचलित है.

'सच में, मां दुर्गा ने कितनी खुशी दी हम गणिकाओं को,' गौरी का मन खुशियों से भर उठा.

आज वह भी पवित्र जल से स्नान करेगी और माथे पर सिंदूर की एक लाल बिंदी लगाएगी. कल ही बिडन स्ट्रीट से रसगुल्ले की हांड़ी ले कर आई है. सब को मन भर कर खिलाएगी. तभी ढाक के स्वर से गलीआंगन भर गया. ढाक बजाते हुए ढाक वाला और पीछे मूर्तिकार. गौरी और सभी गणिकाएं किनारे खड़ी रहीं. आज समाज से परित्यक्त हुई इन नारियों के भाग्य जागे हैं. मां की पूजा की शुरुआत यहीं से होगी. यहां से मिट्टी जाएगी, मां की प्रतिमा का आरंभ होगा और फिर षष्ठी के दिन आधी बनी मूर्ति को चक्षुदान किया जाएगा. मां देखेंगी संसार में फैली असमानता और अन्याय.

गौरी का मन अचानक कसैला हो आया. याद आया उसे अपना गांव, अपना घर, धान के खेतों में काम करते उस के खेतिहर पिता, घर में धान कूटती मेहनतकश मां. फिर भी पेट की पीड़ा से बचने के लिए प्राण प्यारी संतान को काम के लिए कोलकाता भेज दिया. घर के काम के लिए लाए थे राखाल दादा, मगर देह के काम में लगा दिया. जिन मातापिता को सुख पहुंचाने के लिए इस दलदल में फंसी थी उन्होंने ही मुंह फेर लिया. अब वे इस नापाक बेटी को देखना भी नहीं चाहते थे.

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