अनंत ने बस इतना ही तो कहा था फोन पर कि आज रात तक पहुंच जाऊंगा, फिर क्यों इतने बेचैन हो उठे थे अखिलेश भैया.

अनंत आ रहा है शिमला से. आते ही न जाने कितने प्रश्न पूछेगा कि मेरा कमरा गंदा क्यों है. यूनिफौर्म ठीक से क्यों नहीं धुली. इस घर में इतना शोर क्यों है. आजकल उस का हर सवाल इतना अजीब होता है कि भैया को सम?ा नहीं आता कि वे क्या जवाब दें. कुछ कहने की कोशिश करते भी हैं तो पूरा घर ज्वालामुखी के मुहाने पर जा बैठता है.

कब से आराम कुरसी पर निश्चेष्ट से पड़े थे भैया. कहने को सामने अखबार खुला पड़ा था, पर एक भी पंक्ति नहीं पढ़ी गई थी उन से. शाम घिर आई थी, थकेमांदे पक्षी अपनेअपने नीड़ को लौट चुके थे.

हर बार यही होता. जब भी भैया परेशान होते हैं, इसी तरह वीराने में आ कर बौखलाए से चक्कर लगाते रहते हैं या फिर अखबार खोल कर एकांत में बैठ जाते हैं. तब मैं ही आ कर उन्हें इस संकट से उबारता हूं और वे नन्हे, अबोध बालक की तरह चुपचाप मेरे पीछेपीछे चले आते हैं.

लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ. सुबह से वे यहीं बैठेबैठे न जाने कितनी बार, टेपरिकौर्डर में ‘यों हसरतों के दाग मोहब्बत में धो लिए, खुद दिल से दिल की बात कही और रो दिए...’ गीत रिवाइंड कर के सुन चुके थे. जैसे, घर के अंदर जाने का मन नहीं कर रहा था उन का. सिर्फ अनंत के कमरे की बत्ती जल रही थी. घर की एक चाबी अब उस के पास भी रहती है. खुद ही दरवाजा खोल कर चला आता है. वैसे भी, अब उमा भाभी तो रही नहीं जो उन की प्रतीक्षा में भूखीप्यासी बैठी रहें.

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