आज अनाइका के मुंह से यह सुन कर कि कल रोहन भैया उस के घर गए थे, मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने मन ही मन तय किया कि आज कालेज से सीधा ताईजी के घर जाऊंगी और रोहन भैया की अच्छी खबर लूंगी. नाक में दम कर रखा है भैया ने अपनी हरकतों से. लाख बार समझा चुकी हूं उन्हें, पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. अपनी इज्जत का तो फालूदा बना ही रहे हैं साथ ही मेरी भी छीछालेदर करवा रहे हैं. कालेज में सारा दिन मैं तमतमाई सी ही रही और कालेज छूटते ही मैं ने अपनी स्कूटी ताईजी के घर की ओर मोड़ ली.
ताईजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं, ‘‘अरे सोनाली, तू इस समय? लगता है सीधा कालेज से ही आ रही है, तब तो तुझे भी जोर की भूख लगी होगी. चल, फटाफट हाथमुंह धो कर आ जा, मैं रोहन का खाना ही लगाने जा रही थी, वह भी बस अभीअभी कालेज से आया है.’’
‘‘ताईजी, खाना तो आप रोहन भैया को ही खिलाइए, मैं तो आज उन का खून पी कर ही अपना पेट भरूंगी,’’ कह कर मैं धड़धड़ाती हुई रोहन भैया के कमरे में घुस गई.
‘‘अरे मम्मा, आप ने इस भूखी शेरनी को मेरे कमरे में क्यों भेज दिया? यह तो लगता है मुझे कच्चा ही चबाने आई है,’’ मेरे तेवर और हावभाव देख कर रोहन भैया पलंग और कुरसी लांघते हुए भाग कर किचन में ताईजी की बगल में आ खड़े हुए.
‘‘ताईजी, आप रोहन भैया को समझा दीजिए, मेरा दिमाग और खराब न करें वरना मैं या तो इन्हें जान से मार डालूंगी या खुद आत्महत्या कर लूंगी, पक गई हूं मैं इन की हरकतों से.’’