आप जब तक नहीं आएंगी तब तक हम बच्ची के पैदा होने की खबर किसी को नहीं देंगे.’ मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं बचा, इसलिए मैं पति के साथ अस्पताल गई. अस्पताल के जनरल वार्ड में लेटी हुई थी रोशनी. उस के चेहरे पर थकान साफ नजर आई. मुझे देख कर रोशनी ने उठने की कोशिश की और मैं ने उसे मना कर दिया. ‘आइए आंटी, अंकल, दादी, बच्ची को ले कर आंटी को दीजिए,’ अपने हाथों को जोड़ कर उस ने भावुक हो कर कहा, ‘अगर यह नन्ही सी जान इस दुनिया में सहीसलामत पहुंची है तो इस का श्रेय सिर्फ आप को जाता है. आप का एहसान हम कभी नहीं भूलेंगे.’ यह सुन कर मैं मुसकराई.
5 दिनों के बाद रोशनी अस्पताल से घर वापस लौटी. उस के बाद मेरी इजाजत के बगैर वह मेरे फ्लैट में आने लगी. खुद ही अपने बारे में सबकुछ बताने लगी. अपने अंतर्जातीय विवाह के बारे में, कैसे वे और मनोहर सब से छिप कर मुंबई आए और मजबूरी से इस बड़े फ्लैट को किराए पर लेना पड़ा, यह सब उसी ने बताया. बातोंबातों में यह भी कहा कि उन की मदद के लिए कोई नहीं है और वे दोनों बिलकुल अकेले हैं.
अचानक उस ने एक दिन मुझ से कहा, ‘आंटी, आप को मैं ने अपने मन में मां का दरजा दिया है, इसलिए आप ही मेरी बेटी का नामकरण करेंगी.’ पहले मैं ने मना किया मगर उन दोनों की जिद के आगे मुझे उसे स्वीकार करना पड़ा.
मैं ने उस बच्ची के लिए साबुन, पाउडर, फ्रौक, सोने की चेन, चूड़ी खरीद कर शाम को उस के फ्लैट में अपने पति के साथ गई. बच्ची को अपनी गोद में बिठा कर चेन और चूड़ी पहना कर बच्ची का नाम श्वेतांबरी रखा. रोशनी ने मुझे गले लगा कर कहा, ‘आप सच में मेरी मां ही हैं. आप जैसा विशाल हृदय हर किसी के पास नहीं होता.’