‘‘अभी जल्दी क्या है मम्मी? आप तो बस शादी के पीछे ही पड़ जाते हो...’’ वह उठते हुए बोला.
‘‘मैं तुझे आज उठने नहीं दूंगी... 30 साल का हो गया...अभी शादी की उम्र नहीं हुई तो कब होगी?’’
‘‘ओह मम्मी...ये आप की ढूंढ़ी लड़कियां...आखिर मुझे क्या पता कि ये कैसी हैं...1-2 मुलाकातों में किसी के बारे में कुछ पता थोड़े ही न चलता है...’’
‘‘तो फिर कैसे देखेगा तू लङकी?’’
‘‘मैं जब तक लङकी को 2-4 साल देखपरख न लूं...हां नहीं बोल सकता...’’
‘‘क्या मतलब?’’ शोभा आश्चर्यचकित हो बोली.
‘‘मतलब साफ है. मैं अरैंज्ड मैरिज नहीं करूंगा.’’
‘‘तो क्या तुम ने कोई लङकी पसंद की हुई है?’’
ॠषभ बिना जवाब दिए अपने कमरे में चला गया. शोभा उस के पीछेपीछे दौड़ी, ‘‘बोल ऋषभ, तुम ने कोई लङकी पसंद की हुई है?’’
‘‘हां.’’
‘‘तो फिर बताता क्यों नहीं, इतने दिनों से हमें बेवकूफ बना रहा है?’’
‘‘बेवकूफ नहीं बना रहा हूं. पर बता इसलिए नहीं रहा था कि मेरी पसंद को आप लोग पसंद कर पाओगे या नहीं.’’
‘‘तुम्हारी पसंद अच्छी होगी तो क्यों नहीं पसंद करेंगे. पर तुम विस्तार से बताएगा उस के बारे में?’’
‘‘क्या सुनना है आप को? लङकी सुंदर है, शिक्षित है, मेरी तरह इंजीनियर है. ठीकठाक परिवार है पर...’’
‘‘पर...’’
‘‘पर, अगर आप के शब्दों में कहूं तो छोटी जाति की है. उसी जाति की जिन जातियों के आरक्षण का मुद्दा हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है और जिन जातियों पर देश की राजनीति हमेशा गरम रहती है और पापा का ब्राह्मणवाद? तो घर के नौकरचाकरों पर तक हावी रहता है. वे तो चाहते हैं कि घर में नौकर भी हो तो बाह्मण हो. ऐसी स्थिति में और मैं कहीं दूसरी जगह शादी कर नहीं सकता. इसलिए आप मेरी शादी की बात तो भूल ही जाओ.’’