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उस शाम अंगद आया तब मीरा घर में नहीं थी. मेरियन साथ में ही थी, फिर भी न जाने क्यों अंगद को कुछ अच्छा नहीं लगा. आज वह मेरियन के साथ भी ठीक से बात नहीं कर पाया. बारबार उस का ध्यान घड़ी की सूई पर जाता रहा.

मीरा जब आई तब रात हो चुकी थी. उस का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

मीरा को देखते ही अंगद बरस पड़ा, ‘‘समय क्या हुआ है, पता भी है? कहां थीं इतनी देर?’’

‘‘अरे, अंगद, आप तो ऐसे डांट रहे हो जैसे मैं आप की पत्नी हूं.’’

‘‘तो क्या, तुम मेरी पत्नी नहीं हो?’’

‘‘आप भी क्या मजाक कर लेते हो? मैं कब से आप की पत्नी हो गई?’’

‘‘हमारी शादी हुई है, भूल गईं?’’

‘‘हां, शादी हुई थी. लेकिन तुम्हारी पत्नी मेरियन है, मैं नहीं. यह बात आप ने ही तो पहले ही दिन मुझे बताई थी न? हम दोनों पतिपत्नी नहीं हैं, यह बात आप ने कही थी, मैं ने नहीं.’’

‘‘तुम भी तो किसी और से प्यार करती हो, ऐसा कहा था न?’’

‘‘यह तो आप के कहने के बाद कहा था. वरना मैं तो अपने प्यार का बलिदान दे चुकी थी. पूरा जीवन आप के साथ बिताने, सिर्फ आप के भरोसे ही इतनी दूर आई थी.’’

‘‘देखो मीरा, मुझे तुम्हारे साथ कोई बहस नहीं करनी है. लेकिन तुम इतनी रात तक किसी के साथ बाहर रहो, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘आप को जो अच्छा लगे वह ही करना मेरी ड्यूटी में नहीं आता. आप की कई बातें मुझे भी पसंद नहीं आतीं. मैं ने कभी कुछ बोला?’’

‘‘तुम भी बोल सकती हो.’’

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