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रामेश्वर व शर्मिष्ठा ने अपनी ही लापरवाही के कारण अपना एकलौता बेटा खो दिया था. उस पर रिश्तेदार थे कि मातमपुरसी के नाम पर उन के जख्मों को और कुरेद रहे थे. ऐसे में जब रामेश्वर ने उन का विरोध करना चाहा तो... शर्मिष्ठा के साथ लौट कर जैसे ही मैं ने कार घर के सामने रोकी, भीड़ देख कर सन्न रह गया. भीड़ की सहानुभूति दर्शाती आंखों से घबरा कर मैं भीड़ को चीरता हुआ अपने घर की ओर दौड़ा. देखा कि मुख्य दरवाजा टूटा पड़ा है और ड्राइंगरूम में मेरे एकलौते कुलदीपक राहुल की लाश पड़ी है. उस के चारों तरफ आसपड़ोस की औरतों का जमघट लगा है. राहुल का चेहरा नीला पड़ा हुआ था.

उस की आंखें बाहर को निकली पड़ रही थीं और मुंह खुला था, मानो वह अब भी सहायता के लिए पुकार रहा हो. एक हाथ काला पड़ चुका था और हथेली जिस को फ्रिज से छुड़ाया गया था, वहां का मांस निकल चुका था. उस की यह हालत देख कर मैं एकाएक चकरा गया. पीछे से आते हुए माधवेशजी ने मु?ो संभाला और बोले, ‘‘भाईसाहब, आप लोग कहां चले गए थे? कब से फोन पर फोन मिला रहा हूं, न तो आप मिले और न ही भाभीजी.’’ ‘‘एक पार्टी से रेट निगोशिएशंस थे, सो लंच के बाद चला गया था. फिर इन्हें महीने का आवश्यक सामान भी लाना था, सो उधर निकल गया था.’’ ‘‘पुलिस लाश ले जाने को कब से पीछे पड़ी है पर आप के आने तक उसे रोके रखा है. इंस्पैक्टर मेरे घर पर बैठा है.’’

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