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सिर्फ एक ही बार तो रोका था. शिल्पी ने दोबारा खर्चा देने की पेशकश क्यों नहीं की? वह घर की स्थिति से अनजान तो नहीं है. रुपयों की कमी के कारण त्योहारों पर भी बच्चों के कपड़े नहीं बन पाते. वर्षों से शिखा मामूली साडि़यों में गुजारा कर रही है. क्या शिल्पी को यह सब दिखाई नहीं देता?

शिखा के जी में आ रहा था, शिल्पी को खूब खरीखोटी सुना कर मन की भड़ास निकाल ले. रूठ कर शिल्पी अलग हो जाएगी तो हो जाए. साथ में रह कर ही वह किसी का क्या भला कर रही है. कभी यह भी नहीं सोचती, जेठानी को थकान लग रही होगी. चाय बना कर पिला दे. थोड़ाबहुत घर के कामों में हाथ बंटा दे. आते ही बिस्तर पर पसर जाती है.

अभय ही कौन सा दूध का धुला है? घर के खर्चे का बोझ हलका करना चाहता तो क्या कोई उस का हाथ पकड़ लेता? सिर्फ झूठमूठ का खर्चा देने का नाटक किया था. परंतु डब्बू का?भोला चेहरा देखते ही शिखा के विचार बदल गए. मांबाप के स्वार्थ की सजा डब्बू को क्यों मिले?

अगर अभय, शिल्पी अलग रहने लगे तो यह मासूम नौकरों का मुहताज बन जाएगा. इस की परवरिश कैसे हो पाएगी? जैसे गौरव उस का बेटा है, वैसे डब्बू भी है. शिल्पी ने उसे जन्म दिया है तो क्या हुआ. ममता, स्नेह, दुलार दे कर तो वह ही पाल रही है.

शिखा ने देवरदेवरानी को इस बारे में अनभिज्ञ रखना ही उचित समझा. अकारण घर में कलह हो या वे दोनों कुछ गलत अर्थ लगा बैठें इसलिए उस ने रुपयों की कमी की या गौरव की पढ़ाई की किसी प्रकार की चर्चा घर में नहीं की.

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