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कभी सुहानी के ही पीछे पड़ जाते, ‘‘तुम कामवाली को गरम पानी क्यों देती हो काम करने के लिए? गीजर चला कर बरतन धोती है, गरम पानी से पोंछा लगाती है. उस से बिजली का बिल बढ़ता है. कामवाली को सर्दी की वजह से आने में देर हो जाती तो समीर की भुनभुनाहट शुरू हो जाती. रोज देर से आने लगी है, तुम इसे कुछ कहती क्यों नहीं, लगता है इस ने सुबह कहीं काम पकड़ लिया है?’’

पोंछा लगा कर कामवाली कमरे का पंखा चला देती तो वे हर कमरे का पंखा बंद कर के बड़बड़ाते रहते, ‘मैं तो नौकर हूं न, पंखे बंद करना मेरा काम है. सर्दी हो या गरमी, इसे पंखे जरूर चलाने हैं.’

माली से जब वे अपने हिसाब से काम कराने लगते तो उसे कुछ समझ नहीं आता और वह भाग खड़ा होता. जब सुहानी कई बार फोन कर के मिन्नतें करती तब जा कर वह आता. कामवाली डांट खा कर जबतब छुट्टी कर लेती. प्रैसवाला कईकई दिनों के लिए गायब हो जाता. सुहानी को काम करने वालों को रोकना मुश्किल हो रहा था. पर समीर थे कि अपने निठल्लेपन से बाज नहीं आ रहे थे.

काम वाले जबतब सुहानी से साहब की शिकायत करते रहते. सुहानी समीर को कई बार समझाती, ‘इन के पीछे क्यों पड़े रहते हो समीर. तुम अपने काम से काम रखा करो. इन सब को जैसे मैं इतने सालों से हैंडिल कर रही थी, अब भी कर लूंगी. तुम्हारे ऐसे रवैए से ये सब किसी दिन भाग खड़े होंगे.’

पर समीर को तो लगता कि सब सुहानी को बेवकूफ बनाते हैं. उन के कानों पर जूं न रेंगती. उन के पास तो वक्त ही वक्त था इन सब बातों पर ध्यान देने के लिए. सुहानी कई कामों में लगी रहती. कई सामाजिक कामों से भी उस ने खुद को जोड़ रखा था. वह एक लेडीज क्लब की मैंबर भी थी. उसे समीर की इन बेकार की बातों से उलझन होती. वह चाहती, समीर भी अपनी नियमित दिनचर्या बनाएं, ताकि उन की सेहत भी ठीक रहे और वे किसी सामाजिक संस्था से भी जुड़ें जिस से व्यस्त रहें और से उन की मानसिक सेहत भी ठीक रहे.

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