‘‘लेकिन भैया, मेरा इस घर के लिए भी तो कुछ फर्ज है?’’ उलझन में पड़ी शिल्पी ने पूछा.
‘‘इस घर के खर्चे की चिंता मत करो. मैं इतना तो कमा लेता हूं, जिस से सब का खानापीना चलता रहे.’’
दिनेश ने शिल्पी के नाम से बैंक में खाता खुलवा दिया और कह दिया, ‘‘जो रुपए बचें वे नर्सिंग होम बनवाने के लिए जमा करती जाओ.’’
धीरेधीरे अभय की डाक्टरी चल निकली. उस ने घर में रुपए देने चाहे तो दिनेश ने मना कर दिया. अभय को अपने लिए नर्सिंग होम कोठी बनवाने व कार खरीदने के लिए भी तो रुपए चाहिए. डाक्टर हो कर इस पुराने छोटे से घर में रहेगा तो लोग क्या कहेंगे. अभी से रुपए जोड़ना शुरू करेगा तो वर्षों में जुड़ पाएंगे.
शिल्पी की तरह फिर अभय ने भी चुप लगा ली. दोनों पतिपत्नी कभीकभार कुछ नाश्ते का सामान, फल, सब्जी वगैरा खरीद कर ले आते थे.
शिल्पी के पांव भारी हुए तो शिखा ने उसे सुबह का नाश्ता बनाने से भी रोक दिया. अस्पताल में तो सुबह से शाम तक मरीजों से सिर मारना ही पड़ता है. घर में तो आराम मिल जाए.
शिल्पी मां बनी तो शिखा ने उस के बेटे डब्बू को पालने का पूरा भार अपने कंधों पर ले लिया. वह डब्बू के पोतड़े भी हंसीखुशी धोती थी.
शिल्पी व अभय दोनों ने डब्बू की देखरेख के लिए कोई आया रखने की पेशकश की तो शिखा ने मना कर दिया. क्या यह उचित लगता है कि उस के रहते डब्बू आया की गोद में पले? नवजात शिशु के लालनपालन के लिए आया पर विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता. जरा सी असावधानी शिशु के लिए जानलेवा बन सकती है.
शिल्पी 2 माह के डब्बू को जेठानी की गोद में सौंप कर निश्चिंत हो कर पुन: अस्पताल जाने लगी.
शिखा के तीनों बच्चे हर वक्त डब्बू के इर्दगिर्द मंडराते रहते. डब्बू सभी के हाथों का खिलौना बन गया था. दिनेश भी रात को दुकान से आ कर डब्बू को उछालउछाल कर खूब हंसाता और अपने पूरे दिन की थकावट भूल जाता था.
अब तक अभय अपनी डाक्टरी में इतना अधिक व्यस्त हो चुका था कि अपने बेटे को गोद में ले कर पुचकारनेदुलारने का वक्त भी नहीं निकाल पाता था.
शिखा का बड़ा बेटा गौरव 3 वर्ष से लगातार इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता में बैठता आ रहा था. गौरव की योग्यता देख कर सभी को उस के प्रतियोगिता में आ जाने की उम्मीद थी. पर पता नहीं क्यों गौरव को इस बार भी असफलता ही मिली.
तीसरी बार असफल हो कर गौरव पूरी तरह से निराश हो उठा. इंजीनियर बनने की इच्छा पूरी होने के आसार नजर नहीं आए तो गौरव का मन क्षुब्ध हो उठा. पढ़ाई से जी उचटने लगा.
गौरव को दुखी देख कर शिखा व दिनेश का मन भी बेचैन रहने लगा. दोनों वर्षों से बेटे को इंजीनियर बनाने के सपने देखते आए थे.
लेकिन सपने क्या आसानी से सच हुआ करते हैं? घर में आर्थिक अभाव हो तो छोटेछोटे खर्चे भी पहाड़ मालूम पड़ने लगते हैं.
गौरव के एक मित्र ने चंदा दे कर किसी इंजीनियरिंग कालिज में दाखिला करा देने का प्रस्ताव रखा तो पहली बार दिनेश को अपनी आर्थिक अक्षमता का बोध हुआ.
कहां से लाए वह 30-35 हजार रुपए? फिर गौरव की पढ़ाई और छात्रावास का खर्चा. कैसे पूरा कर सकेगा वह?
दोनों बेटियां भी तो विवाह योग्य होती जा रही थीं और घर का दिनप्रतिदिन बढ़ता हुआ हजारों का खर्चा.
गौरव ने पहले तो चंदा दे कर दाखिला लेने से इनकार कर दिया. उस की नजरों में चंदा देना रिश्वत देने के समान था.
लेकिन जब उस ने अपने मित्रों को चंदा दे कर, दाखिला लेते देखा तो वह तैयार हो गया.
दिनेश ने जब शिखा को बतलाया कि वह गौरव की पढ़ाई का खर्चा उठाने में असमर्थ है तो चिंता के कारण शिखा की भूखप्यास मिट गई. उस ने पहली बार पति के सामने जबान खोली, ‘‘जब भाई को डाक्टरी पढ़ाई थी, तब उस का हजारों का खर्च भारी नहीं लगा था. आज मेरे बेटे की पढ़ाई बोझ लगने लगी है.’’
‘‘गौरव अकेला तुम्हारा ही नहीं, मेरा भी तो बेटा है, शिखा. मेरी बात समझने की कोशिश करो. जब अभय पढ़ रहा था तब घर में अधिक खर्चा नहीं था. मेरी दुकान में उस वक्त अधिक आमदनी हुआ करती थी,’’ दिनेश के स्वर में विवशता थी.
‘‘तो अभय से मांग लो. उस की डाक्टरी तो अब खूब चलने लगी है.’’
‘‘अभय के पास इस वक्त इतने रुपए नहीं होंगे. कुछ दिन पहले उस ने नए डाक्टरी उपकरण खरीदे हैं, दुकान का फर्नीचर बनवाया है.’’
‘‘शिल्पी से मांग लो.’’
‘‘मुझे किसी से कुछ मांगना अच्छा नहीं लगता, शिखा. शिल्पी क्या सोचेगी? जेठजेठानी दो वक्त का साधारण भोजन खिलाते हैं और बदले में हजारों रुपए मांग रहे हैं. हो सकता?है नाराज हो कर वह अलग घर में रहना शुरू कर दे.’’
‘‘तुम्हें दूसरों की चिंता अधिक है. अपने इकलौते बेटे का बिलकुल खयाल नहीं है. आखिर गौरव की पढ़ाई का क्या होगा?’’
दिनेश के पास शिखा की बात का कोई उत्तर नहीं था.
आक्रोश से भरी शिखा अंदर ही अंदर गीली लकड़ी की भांति सुलगती. उस के मन में बारबार एक ही विचार पनप रहा था. क्या अभय व शिल्पी का कोई फर्ज नहीं है? दोनों अपनेअपने पैरों पर खड़े हैं. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. क्या अपना खुद का खर्चा भी नहीं उठा सकते?
उसे अपने ऊपर भी बेहद क्रोध आ रहा था. उस की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे जब उस ने शिल्पी को घर में खर्चा देने से रोक दिया था?