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“कौन है वह?" “वही, जो मेरे सामने खड़ी है.“ओह, लेकिन उसे संबंध बनाने में रुचि ही न हो तो...” “तब तो मैं और भी रुचि लूंगा, ये जानने के लिए कि उसे रुचि क्यों नहीं है?” मारिया ने गौर से आशीष को देखा, फिर बोली, “अभी तो तुम अपना मोबाइल नंबर दे जाओ और फिर जब मैं फोन करूं, तो उस स्पाट पर मुझ से मिलने आ जाना.”

2 दिन यों ही बीत गए. चौथे दिन लैंडलाइन नंबर से फोन आया. “मै मारिया बोल रही हूं. आज दोपहर 1 बजे लंच टाइम में ‘द टेस्ट औफ बनारस रेस्टोरेंट’ में मिलो.” जैसे जल अपने लिए बहने का मार्ग खोज लेता है, ऐसे ही मजनूरूपी प्यार भी अपनी लैला खोज ही लेता है.

आशीष को भी अपने बचपन की लैला मिल गई और दोनों का प्यार, मांबाप का डर और मजहब की सभी दीवारें लांघता हुआ कोर्ट मैरिज कर के विवाह के बंधन मे बंध गया. सब से पहले ये खबर आशीष ने मेरे मोबाइल पर फोन कर के मुझे बताई. मैं ने जब मां को बताया, तो वे मुझ पर ही बरस पड़ी,

“तू मुझे अब बता रही है, जब सबकुछ हो गया...?” “मैं क्या करती मां. मुझे भी तो अभी पता चला है.“ मम्मी का चीखना, बड़बड़ाना और मारिया को कोसना शुरू हो गया. मुझे यूनिवर्सिटी के लिए देर हो रही थी. मां को ऐसी चीखतीचिल्लाती हालत में छोड़ कर मैं जा नहीं सकती थी. मुझे पता था कि वो किरन दीदी की शादी के समय से ही हार्ट की मरीज हैं और पापा तब से ही हमें समझाते आ रहे हैं कि तुम सब ऐसा कुछ नहीं किया करो कि मां के दिल पर असर पड़े. मैं ने पापा को फोन कर सारी बात बताई और कहा, “पापा, मेरा यूनिवर्सिटी जाना बेहद जरूरी है. आप जितनी जल्दी हो सके घर आ जाओ.”

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