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लेखिका-डा. के रानी

आशा ने खुद को सम झाते व बेटे की इच्छा का सम्मान करते हुए संध्या को बहू के तौर पर स्वीकार तो कर लिया था लेकिन असमंजस की लकीरें फिर भी आशा को घेर रही थीं. फिर एक दिन अचानक... सुमित पिछले 2 सालों से मुंबई के एक सैल्फ फाइनैंस कालेज में पढ़ा रहा था. पढ़नेलिखने में वह बचपन से ही अच्छा था. लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद वह नौकरी के लिए मुंबई जैसे बड़े शहर आ गया था. उस की मम्मी स्कूल टीचर थीं और वे लखनऊ में ही जौब कर रही थीं.

मम्मी के मना करने के बावजूद सुमित ने मुंबई का रुख कर लिया था.यहां के जानेमाने मैनेजमैंट कालेज में वह अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था. वहीं उसी विभाग में उस के साथ संध्या पढ़ाती थी. स्वभाव से अंतर्मुखी और मृदुभाषी संध्या बहुत कम बोलने वाली थी. सुमित को उस का सौम्य व्यवहार बहुत अच्छा लगा. सुमित की पहल पर संध्या उस से थोड़ीबहुत बातें करने लगी और जल्दी ही उन में अच्छी दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती प्यार में बदलने लगा था. संध्या को इस बात का एहसास होने लगा था. सुमित जबतब यह बात उसे जता भी देता. संध्या अपनी ओर से उसे जरा भी बढ़ावा न देती. वह जानती थी कि वह एक विधवा है. उस के पति की 7 साल पहले एक ऐक्सिडैंट में मौत हो गई थी.

उस का 8 साल का एक बेटा भी था. सुमित को उस ने सबकुछ पहले ही बता दिया था. इतना सबकुछ जानते हुए भी उस ने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया. एक दिन उस ने संध्या के सामने अपने दिल की बात कह दी.‘‘संध्या, मु झे तुम बहुत अच्छी लगती हो और तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. क्या तुम्हें मैं पसंद हूं?’’ उस की बात सुन कर संध्या को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. वह चेतनाशून्य सी हो गई. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह सुमित से क्या कहे. किसी तरह से अपनेआप को संयत कर वह बोली, ‘‘आप ने अपनी और मेरी उम्र देखी है?’’ ‘‘हां, देखी है. उम्र से क्या होता है? बात तो दिल मिलने की होती है. दिल कभी उम्र नहीं देखता.’’ ‘‘यह सब आप ने किताबों में पढ़ा होगा.’’ ‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा संध्या. मैं सच में तुम्हें अपना लाइफ पार्टनर बनाना चाहता हूं.’’ ‘‘प्लीज, फिर कभी ऐसी बात मत कहना. सबकुछ जान कर भी मु झ से यह सब कहने से पहले आप को अपने घरवालों की रजामंदी लेनी चाहिए थी.’’‘‘

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