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मुक्ति
श्यामसुंदर जी को उस अनाथ लड़के से एक जुड़ाव सा होने लगा था. अब तो रोज ही चंदु उन के पास आने लगा था. खूब सारी इधरउधर की बातें करता, उन की सेवा करता.
भाग - 1
बेटे की शादी की बात शास्त्रीजी ने ही उठाई थी और उन्होंने ही रिश्ता तय करवाया था. श्यामसुंदर जी के घर में शास्त्रीजी का अकसर आनाजाना होता था.
भाग - 2
श्यामसुंदर जी ने आवाज लगा कर किसी को पानी लाने के लिए कहा तो उन के छोटे भाई की पत्नी कुसुम उन दोनों के लिए पानी ले कर आ जाती है.
भाग - 3
एक दिन सुबहसुबह श्यामसुंदर जी बिस्तर पर लेटे हुए थे. प्यास से उन का गला सूखा जा रहा था. शरीर में इतनी ताकत भी नहीं बची थी कि उठ कर खुद के लिए पानी ला सकें.
भाग - 4
चंदु के रूप में मानो जैसे उन्हें उन का बेटा प्रवीण मिल गया था. उन्हें जीने का एक नया बहाना मिल गया था. बेटे को खो कर जिस मानसिक पीड़ा, कष्ट से वे ग्रसित हो चुके थे.
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