मुकेश चला गया , सलोनी को कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ा , उसकी एक अलग सोच थी , वह इस टाइम को खुलकर एन्जॉय करती , जहाँ मन होता , जाती , जो अच्छा लगता , वो करती
मुकेश को यही कहती , मुकेश , मैं अपने घर में ही ठीक हूँ , जगह छोटी है , आसपास का पड़ोस तो अच्छा है ही , तुम मेरी चिंता न करो , अपना ध्यान रखना.’
दोनों रोज फ़ोन पर बात करते , सलोनी अकेली जरूर थी , पर परेशान नहीं हो रही थी.अचानक सामने वाले घर में रहने वाले परिवार के सुनील ने एक दिन उसका दरवाजा खटखटाया , कहा , सलोनी , मेरी पत्नी नीता को तेज बुखार है , गुड्डू छोटा है , मैं संभाल नहीं पा रहा हूँ , तुम थोड़ी देर के लिए उसे संभाल सकती हो ? बड़ी मेहरबानी होगी.” सलोनी ने ख़ुशी ख़ुशी गुड्डू की जिम्मेदारी ले ली , गुड्डू ही क्या , सुनील भी आते जाते सलोनी को ऐसे दिल दे बैठा कि बात बहुत दूर तक पहुँच गयी. सलोनी कई दिन से अकेली थी ही , सुनील की पत्नी बीमार , दोनों ने एक दूसरे का अकेलापन ऐसा बांटा कि कानोकान किसी को खबर नहीं हुई. दोनों के सम्बन्ध बनने लगे , सारी दूरियां ख़तम हो गयी. सुनील धीरे धीरे सलोनी के लिए बहुत कुछ करने लगा , उसके खर्चों को खूब संभालता , मुकेश कई दिन से उसे पैसे ट्रांसफर नहीं कर पाया था , पर सुनील सलोनी की पैसों से खूब मदद करने लगा.
मुकेश को अपनी पत्नी पर नाज हो आता , कितनी सहनशक्ति है , सलोनी में , जरा नहीं घबराती. सलोनी की सुनील के साथ रासलीला दिनोदिन बढ़ती जा रही थी , उसकी पत्नी ठीक हो गयी थी और सलोनी की अहसानमंद थी कि उसने परेशानी के समय गुड्डू को संभाल कर बहुत हेल्प की. अब भले ही गुड्डू का बहाना नहीं था पर सुनील अब भी सबसे नजरें बचा कर सलोनी के साथ समय बिताता.अचानक सलोनी की एक सहेली उसके पास कुछ दिन रहने आ गयी , वह बीमार चल रही थी और सलोनी के कहने पर पीर बाबा का आशीर्वाद लेने आ गयी थी , सलोनी उसे बाबा के पास ले गयी , बाबा ने झाड़ फूंक शुरू की , कहा , रोज आना होगा.” सहेली मंजू तैयार हो गयी , मंजू का पति अनिल भी उसके साथ आया था , सलोनी का रंग रूप देख अनिल का दिल मचल उठा , मंजू और सलोनी एक ही गांव की थी , मंजू का एक बेटा था जिसे वह इस समय अपने ससुराल छोड़ कर आयी थी , अनिल आया तो था कि बस मंजू को छोड़कर चला जायेगा पर सलोनी के पास से जाने का उसका मन ही नहीं हुआ. मंजू रोज पीर बाबा के पास अकेली ही चली जाती , पीछे से अनिल ने मर्यादा लांघने की कोशिश की तो सलोनी को कहाँ ऐतराज हो सकता था , वह मुकेश की अनुपस्थिति को जी भर कर एन्जॉय कर रही थी. सलोनी ने उसके साथ कई बार सम्बन्ध बनाये , अभी सुनील नहीं आ सकता था , वह फ़ोन पर सलोनी से तड़प तड़प कर बात किया करता , मन ही मन उसे मूर्ख कहती हुई सलोनी इस समय तो अनिल में डूबी थी , उसे न तो मुकेश की याद आती , न सुनील की.
मंजू की झाड़ फूंक इक्कीस दिन चली , अनिल इस बीच कई बार आता रहा था , बाइक पर आता , इस तरह आता कि मंजू को भी पता नहीं चल पाया कि जब वह पीर बाबा के सामने बैठी होती है , अनिल उसकी सहेली के साथ बैठा होता है. झाड़फूंक और अंधविश्वास में डूबे लोग न जाने कितने तरीके से अपने आप को नुकसान पहुंचा लेते हैं . अनिल फिर आते रहने का वायदा करके मंजू को लेकर चला गया , सलोनी ने कह दिया था , फ़ोन करके ही आना , उसे पता था अब वह कुछ दिन सुनील के साथ गुजारेगी। अनिल और मंजू चले गए सलोनी ने फौरन सुनील को फोन किया , बहुत दिन हो गए , मैं तो मेहमानो में ही घिरी रही , कब आओगे ? बड़ी मुश्किल से कटे ये दिन ”
”जल्दी ही आता हूँ , सलोनी , बड़ा मुश्किल रहा तुम्हारे बिना जीना , आता हूँ ”
सलोनी मुकेश से पूछती रहती , ”कब तक काम ख़तम होने वाला है ? अब तो बहुत दिन हो गए ” वह कहता , बस जल्दी ही आता हूँ ‘ काम ऐसा ही था , मुकेश को पता ही नहीं होता था कि वह कब घर आ पायेगा , पर सलोनी की याद उसे खूब सताती , रोज फ़ोन पर बात हो जाती थी , सलोनी उसे बताती कि वह अपना सारा टाइम पूजा पाठ में , स्वामीजी की कुटीर में , पीर बाबा के पास जाकर लगाती है , मुकेश खूब खुश हो जाता कुछ दिन और बीते , मस्ती करने के चक्कर में सलोनी भूल ही गयी कि उसे काफी दिनों से पीरियड नहीं हुआ है , ध्यान गया तो हिसाब लगाया कि तीन महीने से ऊपर हो चुके हैं , खुद ही किट लेकर प्रेगनेंसी चेक भी कर ली , होश उड़ गए उसके , वह प्रेग्नेंट थी मुकेश को गए तो चार महीने से ऊपर हो चुके थे , अनिल उसके पास आता रहा था , सुनील से भी सम्बन्ध चल ही रहे थे , उसने हिसाब लगाया , बच्चा मुकेश का तो नहीं था , इतना बेवक़ूफ़ तो मुकेश भी नहीं था कि इतना न सोचता वह कुछ दिन सोचती रही , फिर एक लेडी डॉक्टर के पास पहुँच गयी , एबॉर्शन के लिए बात की तो डॉक्टर ने कहा ,” टाइम कुछ ज्यादा ही हो गया है , तुम कुछ कमजोर भी हो , यह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक नहीं रहेगा , अपने पति को ले आना , मैं उन्हें भी समझा दूंगी ” टाइम गुजरता जा रहा था , उसने दो और डॉक्टर्स से बात की , कोई भी एबॉर्शन के लिए तैयार नहीं हुआ उसने सुनील को बता दिया , सुनील ने तो सुनते ही हाथ झाड़ लिए ,” देखो , सलोनी , मैं कुछ नहीं कर सकता , तुम ही सोचो , क्या करना है , मैं इतना ही कर सकता हूँ कि आज के बाद तुमसे न मिलूं ” और वह सचमुच फिर कभी सलोनी से मिला भी नहीं सलोनी को जैसे बड़ा धक्का लगा