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मुन्ना उदास हो गया. उस का  बालसुलभ मन इन विसंगतियों को सम?ा नहीं सका. रमा किसी प्रकार अपना पैर संभालसंभाल कर मंजिल तक पहुंची. सामने खड़े अवध उसे एकटक देख रहे थे. नजरें मिलते ही उन्होंने आंखें ?ाका लीं.

कितने स्मार्ट लग रहे हैं अवध. लगता है नया सूट सिलवाया है, रौयल ब्लू पर लाल टाई, कार भी नई खरीदी है. अरे वाह, क्षणभर के लिए ही सही उस की आंखें चमक उठीं.

मुन्ना पापा को देखते ही दौड़ पड़ा, ‘‘बाय मम्मी.’’ ‘‘बाय.’’ ‘‘पापा, नई गाड़ी किस की है?’’ पापा को पा कर मुन्ना सारे जग को भूल जाता है, शायद मां को भी.  ‘‘तुम्हारी है. तुम्हें कार की सवारी पसंद है न.’’

‘‘सच्ची, मेरे लिए, मेरी है,’’ उसे विश्वास नहीं हो रहा था. पिछले सप्ताह वह मामा की कार में ताक?ांक कर रहा था. उसे मामा के बेटे ने हाथ पकड़ कर धकेल दिया था. ‘मैं भी गाड़ी में बैठूंगा,’ मुन्ने का मन कार से निकलने का नहीं कर रहा था.

मामा का बेटा उसे परास्त करने का तरीका सोच ही रहा था, उसी समय बड़ी मामी सजीधजी कहीं जाने के लिए निकली. मुन्ने को कार में ढिठाई करते देख सुलग पड़ी, ‘पहले घर, अब कार. सब में इस को हिस्सा चाहिए. इन मांबेटे ने जीना दूभर कर दिया है, सांप का बेटा संपोला.’

मामी की कटुक्तियां वह सम?ा या नहीं, लेकिन इतना अवश्य सम?ा गया कि इस खूबसूरत कार पर उस का कोई अधिकार नहीं है. उसे, उस की मम्मी, उस के पापा से कोई प्यार नहीं करता. उस ने कार से उतरने में ही अपनी भलाई सम?ा. अभी जा कर मम्मी से सब की शिकायत करता हूं.

लेकिन मम्मी है कहां? वह रसोई में शाम की पार्टी की तैयारी में जुटी थी. बड़े मामा का प्रमोशन हुआ था और उन की शादी की सालगिरह भी थी. सभी व्यस्त थे, खरीदारी, घर की सजावट, रंगरोगन में. फालतू तो वह और उस की मम्मी.

वह मम्मी के पास जा पहुंचा. आग की लपटों में मम्मी का गोरा रंग ताम्बई हो रहा था. वह एक के बाद एक स्वादिष्ठ व्यंजन बनाने में हलकान हो रही थी. इस स्थिति में उन्हें परेशान करना सही नहीं.

‘मम्मी, एक ले लूं.’ लाल सुर्ख कचौड़ी की खुशबू उसे सदैव आकर्षित करती है. मम्मी ने उंगली के इशारे से मना किया. उस के बढ़ते हाथ रुक गए. ‘पूजा के बाद मिलेगा न, मम्मी?’

‘हां मेरे लाल,’ मम्मी ने लाड़ले को सीने से लगा लिया. मां का शरीर कितना गरम है. सीने में उबलते हुए जज्बात चक्षु से भाप बन निकलने लगे.

‘मेरा राजा बेटा, अपना होमवर्क करो. मैं थोड़ी देर में आती हूं.’ वह जानता है मम्मी रात्रि के 12 बजे से पहले नहीं आने वाली. तब तक वह दुबक कर सो जाएगा.

मम्मी पार्टी समाप्त होने पर बचाखुचा काम समेटेंगी. 2 निवाले खाएंगी या ‘भूख नहीं है,’ कह कर छुट्टी पा लेंगी. उसे एक बार मम्मी ने इसी तरह किसी पार्टी में एक मिठाई खाने के लिए दे दी थी. उस दिन कितना शोर मचा था. यों अपने बेटे को कुछ खाने के लिए देना दोनों मामियों को कितना नागवार गुजरा था. उस दिन से मम्मी ने जैसे कसम खा ली थी. न कुछ उठा कर बेटे को देती थीं न खुद लेती थीं. अपने ही मांबाप के घर में, अपने लोगों के बीच दोनों मांबेटे किरकिरी बने हुए हैं.

सिर्फ मांग में सिंदूर पड़ जाने से, एक बच्चे की मां बन जाने से कोई इतना पराया हो जाता है. यही भाभियां रमा की एकएक अदा पर न्योछावर होती थीं. उस को खिलानेपिलाने में आगे रहती थीं. उन्हीं की नजरों में वह ऐसा गिर चुकी है.

‘‘मम्मी, देखो, नई गाड़ी मेरे लिए. तुम भी चलो, खूब घूमेंगे, पिकनिक पर जाएंगे. अपने दोस्तों को भी ले जाऊंगा,’’ मुन्ना खुशी से बावला हो रहा था.

अवध अपने बेटे का चमकता मुखड़ा निहार रहे थे और रमा, बापबेटे के इस मिलन को किस प्रकार ले- हंसे या रोए. हंसना वह भूल चुकी है और रोना… इस आदमी के सामने जो उस के बेटे का बाप है.

न, वह रोएगी नहीं. कमजोर नहीं पड़ेगी. वहां से भागना चाहती है. टूटी हुई चप्पल… हाय रे, समय का फेर. पति कार स्टार्ट कर जा चुके थे.  मुन्ने का हिलता हाथ नजरों से ओ?ाल हो गया. वह टूटी चप्पल वहीं फेंक नंगे पांव घर लौट आई.

मां किताब पढ़ रही थीं. भाभियां अपनेआप में मस्त. किसी का ध्यान उस की ओर नहीं. वह बिस्तर पर कटे पेड़ के समान गिर पड़ी. हृदय की पीड़ा आंखों में आंसू बन बह चली. बचपन से ले कर आज तक की घटनाएं क्रमवार याद आने लगीं…

रमा के पिता व्यापारी थे. अच्छा खातापीता परिवार. दोनों भाइयों से छोटी रमा सब की लाड़ली, सुंदर, संस्कारी.

पिता के बाद भाइयों ने कारोबार संभाल लिया. भाभियां उस पर दिलों जान छिड़कतीं. भाईबहन का प्यार देख मां फूली नहीं समातीं. रमा रूपवती, मिलनसार लड़की थी. लेकिन मां के अत्यधिक लाड़प्यार, भाइयों के संरक्षण, भाभियों के दोस्ताना व्यवहार ने उसे कुछ ज्यादा ही भावुक बना दिया था. निर्णय लेने की क्षमता का उस में विकास नहीं हो पाया था. आगापीछा नहीं जानती थी. शायद यही सब उस के सर्वनाश का कारण बना और इसी सब ने उसे आज इस विकट स्थिति में खड़ा कर दिया.

‘रमा बड़ी हो गई है, उस के लिए वर ढूंढ़ने की जिम्मेदारी तुम दोनों भाइयों की और विवाह की तैयारी दोनों भाभियों की,’ मां बेटी रमा के ब्याह के लिए चिंतित थी.

भाइयों ने इसे गंभीरता से लिया और उसी दिन से शुरू हुआ उचित वर, घर की तलाश. घरवर दोनों मनोनुकूल मिलना आसान नहीं.

कहीं लड़का योग्य तो घर कमजोर. कहीं घर समृद्ध लेकिन वर रमा के योग्य नहीं. इसी बीच गांवघर की बूआ अवध का रिश्ता ले कर आईं. वे कभी अवध के रूपगुण का बखान करतीं, कभी उस के ऊंचे खानदान व धनदौलत का. रमा छिपछिप कर सुनती, अपने भावी जीवन की कल्पना में डूबतीउतराती रहती.

रिश्ता पक्का हो गया. विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ. लेनदेन में कोई कमी नहीं. वरपक्ष से कोई दबाव भी नहीं था. अवध के परिवार वालों को रमा भा गई थी. परिवार पसंद आ गया था. शुरू में सबकुछ ठीकठाक रहा. अवध रमा पर जान छिड़कता था. मायके की तरह रमा ससुराल में भी सब की लाड़ली बनी हुई थी.

गर्भ में मुन्ने के आते ही अवध खुशी से ?ाम उठा. सासससुर, देवरननद ने रमा की बलैया लीं. देखने वाले दंग. इतने वर्षों पश्चात घर में पहला बच्चा. रमा को सभी हथेली पर रखते. ‘बहू यह न करो, वह न करो,’ सासुमां लाड़ लगातीं.

‘लो बहू तुम्हारे लिए,’ ससुर का हाथ फल, मेवों अन्य पौष्टिक पदार्थों से भरा रहता. और अवध… वह बावला रमा को पलभर के लिए भी आंखों से ओ?ाल नहीं होने देना चाहता था.

दफ्तर से बारबार फोन करता. रोज बालों के लिए गजरा, उपहार लाता. गोलमटोल शिशुओं की तसवीरों से कमरा जगमगा उठा. मां व भाई रमा को लाने गए. सासससुर ने हाथ जोड़ लिए. बेटी का सुख, मानसम्मान देख मां व भाई गद्गद हो उठे.

मां व भाई चाहते थे कि जच्चगी मायके में हो. वहीं सास, ससुर, पति पलभर के लिए बहू को आंखों से ओ?ाल नहीं होने देना चाहते थे.

रमा दोनों पक्षों के दांवपेंच पर मुसकरा उठती. रमा ने स्वस्थ सुंदर बेटे को जन्म दिया. बड़ी धूमधाम से जन्मोत्सव मनाया गया. मां बन कर रमा निहाल हो उठी. जब देखो मुन्ने को छाती से चिपकाए रहती.

घरभर का खिलौना मुन्ना अपनी बालसुलभ अदाओं से सब का मन मोह लेता. ‘रमा, बड़ा हो कर मुन्ना मेरी तरह इंजीनियर बनेगा,’ अवध की आंखें चमकने लगतीं. ‘नहीं, मैं इसे डाक्टरी पढ़ाऊंगी. लोगों की सेवा करेगा,’ रमा हंस पड़ती.

‘न डाक्टर न? इंजीनियर, यह मेरी तरह बैरिस्टर बनेगा,’ दादाजी कब पीछे रहने वाले थे. ‘कहीं नाना जैसा व्यापारी बना तो…’ नानी बीच में टपक पड़तीं. सभी होहो कर हंसने लगते. हर्षोल्लास से लबालब थे मायके और ससुराल. किस की नजर लग गई.

आज उसी मुन्ने की जननी की सुध किसी को नहीं. आखिर इस के पीछे कारण क्या है. मुन्ने के जन्म के बाद तीसरे महीने ही दीवाली का त्योहार और उस मनहूस दीवाली ने रमा व उस के मुन्ने की जीवनधारा पलट कर रख दी.

उस दिन घरबाहर खूब रंगरोगन  हुआ था. नाना प्रकार के पकवान, मिठाइयां, मेवों, उपहारों का ढेर लग गया था. रेशमी साड़ी और कीमती आभूषणों से लदीफंदी रमा पति का बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

अवध देर से लौटे, साथ में एक सुंदर युवती थी. ‘रमा, यह मेरी कालेज की सहपाठी दिवा है.’ रमा ने हाथ जोड़ दिए, ‘नमस्ते.’

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