शहर चाहे कोई भी हो, युवा चाहे जिस किसी भी प्रदेश के हों, वे अपनी पसंद से जीवनसाथी चुन लेते हैं. ऐसा होने पर समाज के कर्ताधर्ता परिवार वालों पर दोषारोपण करते हैं, कहते हैं, ‘परवरिश ठीक नहीं थी.’
दूसरी ओर धर्म के ठेकेदार, पाखंडी पंडित जोगाराम जैसे लोग लड़का या लड़की की खामियों को छिपा कर परंपरागत हिसाब से विवाह करवा देते हैं. ऐसे में भुगतना जिसे पड़ता है वही जानता है.
‘नलिनी, थोड़ा तो ड्रैसिंग सैंस रखा कर. यह क्या है, काली कुरती पर नीला दुपट्टा?’ कालेज के लिए निकलते वक्त बड़ी बहन दामिनी ने टोका.
‘हुंह, रहने दो न, दीदी. सब चलता है और मैं कालेज पढ़ने के लिए जाती हूं कोई...’
‘क्या मतलब है तुम्हारा?’ दामिनी तिलमिला उठी.
‘दामिनी नाम रख लेने से कोई मीनाक्षी शेषाद्रि नहीं बन जाती,’ नलिनी ने मुंह बनाते हुए कहा.
‘बसबस, फिर शुरू हो गईं तुम दोनों,’ मां ने रसोईघर से डांट लगाई.
मां की आवाज ने युद्ध को तत्काल के लिए विराम दे दिया.
‘अच्छा सुन दामो, शाम को तुझे देखने के लिए नीरज के परिवार वाले आ रहे हैं,’ बोलतेबोलते मां कमरे में आ गई.
‘अरे वाह, शाम को फिर से कुछ अच्छा खाने को मिलेगा,’ नलिनी नाचते हुए बोली.
‘अच्छा, तो तुझे अच्छा खाने की पड़ी है,’ दामिनी ने छोटी बहन की चोटी खींचते हुए कहा.
‘मां, देखो न,’ नलिनी ने मां से शिकायत की.
तब तक मां ने पंडित जोगाराम द्वारा दिखाई नीरज की फोटो को सामने ला कर रख दिया और सभी उसे देखने में व्यस्त हो गए. दामिनी ने भी चोर निगाहों से देख लिया, कमोबेश ऋषि कपूर जैसा लगा उसे. मन में फूटे लड्डू को दबाती हुई दूसरे कमरे में चली गई.