शहर चाहे कोई भी हो, युवा चाहे जिस किसी भी प्रदेश के हों, वे अपनी पसंद से जीवनसाथी चुन लेते हैं. ऐसा होने पर समाज के कर्ताधर्ता परिवार वालों पर दोषारोपण करते हैं, कहते हैं, ‘परवरिश ठीक नहीं थी.’

दूसरी ओर धर्म के ठेकेदार, पाखंडी पंडित जोगाराम जैसे लोग लड़का या लड़की की खामियों को छिपा कर परंपरागत हिसाब से विवाह करवा देते हैं. ऐसे में भुगतना जिसे पड़ता है वही जानता है.

‘नलिनी, थोड़ा तो ड्रैसिंग सैंस रखा कर. यह क्या है, काली कुरती पर नीला दुपट्टा?’ कालेज के लिए निकलते वक्त बड़ी बहन दामिनी ने टोका.

‘हुंह, रहने दो न, दीदी. सब चलता है और मैं कालेज पढ़ने के लिए जाती हूं कोई…’

‘क्या मतलब है तुम्हारा?’ दामिनी तिलमिला उठी.

‘दामिनी नाम रख लेने से कोई मीनाक्षी शेषाद्रि नहीं बन जाती,’ नलिनी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘बसबस, फिर शुरू हो गईं तुम दोनों,’ मां ने रसोईघर से डांट लगाई.

मां की आवाज ने युद्ध को तत्काल के लिए विराम दे दिया.

‘अच्छा सुन दामो, शाम को तुझे देखने के लिए नीरज के परिवार वाले आ रहे हैं,’ बोलतेबोलते मां कमरे में आ गई.

‘अरे वाह, शाम को फिर से कुछ अच्छा खाने को मिलेगा,’ नलिनी नाचते हुए बोली.

‘अच्छा, तो तुझे अच्छा खाने की पड़ी है,’ दामिनी ने छोटी बहन की चोटी खींचते हुए कहा.

‘मां, देखो न,’ नलिनी ने मां से शिकायत की.

तब तक मां ने पंडित जोगाराम द्वारा दिखाई नीरज की फोटो को सामने ला कर रख दिया और सभी उसे देखने में व्यस्त हो गए. दामिनी ने भी चोर निगाहों से देख लिया, कमोबेश ऋषि कपूर जैसा लगा उसे. मन में फूटे लड्डू को दबाती हुई दूसरे कमरे में चली गई.

‘लड़का कैसा लगा, बता कर तो जाओ?’ मां ने आवाज लगाई.

‘बहुत अच्छा,’ नलिनी ने सैंडिल पहनते हुए कहा और दोनों बहनें कालेज के लिए निकल गईं.

रास्ते में निखिल मिला, आज दामिनी उसे देख कर न मुसकराई, न कोई इशारा किया. मां ने निखिल के साथ रिश्ते के लिए जब से मना कर दिया था तभी से दोनों तरफ से प्रेमालाप बंद हो चुका था. निखिल भी चोर निगाहों से देखता हुआ निकल गया.

इधर दामिनी के नसीब का फैसला पंडित जोगाराम कर रहे थे.

‘पंडितजी, आप चाहे जितनी दक्षिणा ले लीजिए लेकिन मेरे बेटे का विवाह करवा दीजिए, मरते हुए बेटे नीरज की भी यही इच्छा है,’ नीरज की मां ने आंचल से आंसू पोंछते हुए कहा.

‘यजमान, आप के सुपुत्र का विवाह तो मैं जब चाहूं तब करवा दूं लेकिन कैंसरग्रस्त दूल्हे को अपनी बेटी देगा कौन?’ पंडित जोगाराम ने दक्षिणा की पोटली को बेवजह खोलतेबंद करते हुए कहा.

‘आप से उम्मीद न करूं तो किस के आगे झोली फैलाऊं? आखिर आप ने ही तो इस खानदान के सभी लोगों का विवाह करवाया है,’ नीरज की मां ने पंडित जी के सामने नाश्ते की प्लेट रखते हुए कहा.

‘हेहेहे, सो तो है,’ पंडित जी ने 2 रसगुल्ले एकसाथ मुंह में रखते हुए खींसे निपोरे.

नीरज की मां ने आखिरी हथकंडा अपनाया और 10 हजार रुपए व एक जोड़े जनेऊ उन के सामने रख दिए. जिसे पंडित जी ने झट दक्षिणा वाली पोटली में सरका लिया.

‘समझ लीजिए आप के बेटे का विवाह हो गया. लड़की के सिंदूर के जोर से आप का पुत्र सौ बरस जिएगा,’ पंडित जी ने अपने पोथी के साथ बचीखुची खानेपीने की वस्तुओं को समेटते हुए कहा.

‘जैसी आप की कृपा महाराज,’ मां ने विदा करते हुए श्रद्धा से पैर छू लिए.

पाखंडी पंडित ने भी वादे के मुताबिक 10 हजार रुपए का मान रखते हुए बिना सोचेसमझे कैंसरग्रस्त नीरज के साथ दामिनी का विवाह करवा दिया. यही वजह थी कि शादी के बाद दामिनी ने मायके वालों की तरफ़ पलट कर भी नहीं देखा.

इस बार करीब 5 वर्षों के बाद दामिनी अपने मायके आई थी. बीमार मां ने अपनी सांसों की कसम दिलाई थी और यही वजह थी कि वह मना न कर सकी थी. मां को जीभर कोसना चाहती थी लेकिन कोस न सकी.

मामा जी के बेटी की शादी थी. चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था.

दामिनी रिक्शे उतर कर उसे पैसे दिए और निगाह नीची किए ही सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर के कमरे में जाने लगी. हड़बड़ाहट में निखिल से टकरातेटकराते बची, मुड़ कर देखा तो देखते ही रह गई, 5 साल पहले वाला दुबलापतला एक हड्डी का इंसान नहीं रह गया था बल्कि खातेपीते घर का हृष्टपुष्ट युवक बन चुका था वह.

निखिल ने भी दामिनी को गौर से देखा, सोचा, ‘क्या यह वही लड़की है जो अपने रंगरूप और फैशन के लिए महल्लेभर में जानी जाती थी, जिस की एक झलक पाने के लिए दिनभर परचून की दुकान के चक्कर लगाया करता था. यह क्या हाल कर लिया है इस ने अपना.’

निखिल दरअसल दामिनी से करीब 2 साल छोटा था, यही वजह थी कि दोनों परिवारों ने रिश्ते को नकार दिया था और निखिल का रिश्ता दामिनी की छोटी बहन नलिनी से कर दिया गया था. दामिनी शादी होते ही दुबई चली गई थी.

शुरूशुरू में तो सबकुछ बहुत अच्छा रहा. दामिनी अपने पति नीरज को पा कर निहाल हो गई थी. नीरज ने भी कोई कमी न रखी थी. सोने के गहनों से तो लद गई थी दामिनी. ऐसे में दुबलापतला निखिल कहां याद आता था. लेकिन दुबई में तेल के कुएं में बहुत दिनों तक काम करने के कारण नीरज कैंसरग्रस्त हो चुका था और यह बात पंडित जोगाराम जी रिश्ता करवाते वक्त 10 हजार रुपए की गड्डी के साथ ही दबा गए थे.

घर की जमापूंजी इलाज में घुलती जा रही थी और साथ ही, खोती रही थी दामिनी की खूबसूरती. निखिल को देखने के बाद अचानक से उसे अपने चेहरे की फिक्र होने लगी. जिसे उस ने पिछले कई सालों से संवारना तो दूर, निहारा भी नहीं था. दरअसल इन दिनों उसे आईने के सामने बैठने की या खुद को निहारने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई थी. सुबहदोपहरशाम केवल नीरज की दवाइयों के समय का ध्यान रखते और सिलाई मशीन पर बैठेबैठे बीत जाता था. बाकी बचा समय और्डर मिले कपड़ों को लाने व पहुंचाने में चला जाता था. वही सब तो घर के आमदनी का जरिया था.

भारत आने के बाद उस ने किसी से भी बातचीत करने या मिलनेजुलने की कोशिश भी नहीं की थी. अगर फोन आता भी था तो टाल जाती या कोई न कोई बहाना देती थी. नीरज की बीमारी की खबर उस ने घर में किसी को नहीं बताई थी क्योंकि ससुराल वालों की तरह मायके वालों से भी नीरज के लिए बदनसीब पत्नी का तमगा नहीं पहनना चाहती थी. आईने में खुद को देखा. रूखा चेहरा, उदास आंखें, उम्र से कहीं ज्यादा की दिख रही थी. वह कुछ पल के लिए आईने के पास ही बैठ गई और अतीत उस के सामने आ खड़ा हो गया.

परचून की दुकान पर पहली बार मिली थी निखिल से. दोनों ही नमक खरीदने गए थे. अंतर बस इतना था की दामिनी ने टाटा नमक मांगा था और निखिल ने साधारण नमक. शायद आकर्षण ही था जो दामिनी निखिल को टाटा नमक के फायदे समझाने लगी और निखिल ने भी टाटा नमक के लिए दुकानदार से कह दिया था और इस नमकीन हादसे ने दोनों के मन में मिठास घोल दिया था. दोनों एक ही महल्ले में रहते थे, जब भी दामिनी सौदा लेने के लिए निकलती और निखिल की नजर पड़ जाती है तो वह भी कुछ न कुछ खरीदने के बहाने दुकान पहुंच जाता. वहीं थोड़ीबहुत बात भी हो जाती थी.

दोतीन मुलाकातों में ही पता चल गया था कि निखिल उसे पसंद करता है. बातों ही बातों में मोबाइल नंबर का लेनदेन भी हो गया था लेकिन सख्त हिदायत दी गई थी कि सिग्नल मिले तभी जा कर किसी प्रकार की कौल या मैसेज किया जाए, क्योंकि यह दामिनी का व्यक्तिगत मोबाइल नहीं है. निखिल ने भी सीमारेखा का उल्लंघन कभी नहीं किया था. निखिल साइकिल पर घूमघूम कर ट्यूशंस देता था, यही उस की आय का जरिया था.

कहते हैं न, शिक्षा कभी बेवफाई नहीं करती. देखतेदेखते निखिल सरकारी शिक्षक बन गया था. दामिनी की शादी के बाद भी निखिल दामिनी के घर जाता था शायद दामिनी के विषय में कोई जानकारी मिल जाए. नतीजा यह हुआ की दामिनी की मां ने उसे अपनी छोटी बेटी नलिनी के लिए पसंद कर लिया. जिसे निखिल और उस के परिवार वालों ने स्वीकार कर लिया. उस वक्त नलिनी देखने में एक साधारण सी लड़की थी.

श्यामला रंग, दो चोटी किए हुए, सलीकेदार या डिजाइन वाले कपड़े पहनने का कोई शौक नहीं. लाल कुरती के साथ नीला पजामा पहन लेती, सफेद ओढ़नी डाल लेती या फिर काले पजामे के साथ हरी ओढ़नी डाल लेती, चेहरे की रंगाईपुताई तो उस ने सीखा ही नहीं था. यह सब तो शादी के बाद निखिल ने उसे सिखाया था. और अब तो वह इतना कुछ सीख चुकी थी कि उस की वैनिटी में ब्रैंडेड लिपस्टिक से ले कर पैर के सैंडिल तक मैचिंग रहता था.

“बड़ी बूआ,” नन्हे दीपू ने कंधा पकड़ कर हिलाया. दामिनी वर्तमान में लौट आई.

“ऊपर के कमरे में चलिए न, सभी आप का इंतजार कर रहे हैं,” दीपू ने बाल को उछालते हुए कहा और कमरे से निकल गया. दामिनी ने खुद को एक बार फिर से निहारा और फिर समेटती, सकुचाती हुई सीढ़ियां चढ़ने लगी. एकएक कदम सावधानी से रखती हुई सीढ़ियां चढ़ रही थी क्योंकि दिमाग कहीं और उलझा हुआ था. तभी सामने से नलिनी ने झुक कर पैर छू लिए. उस के परफ्यूम की खुशबू ने उस की तरफ देखने के लिए मजबूर कर दिया. आंख फटी की फटी रह गईं. जिस नलिनी को उस के भद्दे कपड़ों के लिए, सांवले रंग के लिए मां कोसा करती थी वह आज खिलीखिली, फूलों सी महक रही थी.

“अपनी छोटी बहन की कभी याद नहीं आई, दीदी,” नलिनी ने गले लगते हुए कहा.

पहले निखिल, अब नलिनी, खुद को कहां तक संभाले दामिनी.

“परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थीं,” केवल इतना ही कह पाई.

सामने रिश्तेदार बैठे थे, उस ने बारीबारी से सभी का आशीर्वाद लिया.

“दामाद जी नहीं आए?” मां ने पूछा.

शादी के वक्त नीरज को चुनने के लिए जिस मां का दिल से शुक्रिया किया था आज अचानक से वही मां निखिल के रिश्ते को अपने लिए ठुकराने की वजह से बुरी लग रही थी. काश, उम्र को नजरअंदाज कर के रिश्ते की बात आगे बढ़ गई होती तो आज जहां नलिनी खड़ी है वहां वह खड़ी होती.

“बरात आने तक आ जाएंगे,” मन के जज्बात को मचोड़ते हुए दामिनी ने जवाब दिया.

जितने लोग उतने प्रश्न, किसकिस का जवाब दे. इसीलिए सभी से कतराने लगी थी. लेकिन उस की नज़रें नलिनी को परखने में लगी हुई थीं. आखिर ऐसा कौन सा कुबेर का खाना खजाना इन के हाथ लग गया जो दोनों इतना दिखावा कर रहे हैं क्योंकि जब वह निखिल को जानती थी तब तक वह मामूली था, साइकिल पर घूमघूम कर घरघर जा कर बच्चों को पढ़ाने वाला शिक्षक हुआ करता था.

“अरी नलिनी, ऐसा कौन सा कुबेर का खजाना तुम दोनों के हाथ लग गया, जरा मैं भी तो सुनूं?” आखिरकार दामिनी ने पूछा ही लिया.

“कोई कुबेर का खजाना नहीं है, दीदी. हम दोनों की लगातार मेहनत का नतीजा है. इन की सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई और मैं ब्यूटीशियन का कोर्स कर के अपना पार्लर चला रही हूं,” नलिनी ने खुले बालों पर हाथ फेरते हुए कहा.

“हां, वह दिख रहा है वरना…तुम तो…,” दामिनी कुछ और बोलने ही वाली थी कि नलिनी ने बीच में टोका, “दीदी, जीजाजी कहां हैं, वे साथ नहीं आए,”

“बस, ठीक हैं,” बात आगे और बढ़ती, उस के पहले वह वहां से हट गई. उस की निगाहें निखिल का पीछा कर रही थीं. उस की जिज्ञासा जाग उठी कि उस के विवाह के बाद निखिल ने उसे याद किया या नहीं और कहीं न कहीं इस बात से परेशानी भी थी कि उस के जाने के बाद टूट कर बिखर क्यों न गया, सवंर कैसे गया?

रात को फेरे होने तक निखिल कहीं दिखाई नहीं दिया. इस बीच नलिनी जितनी बार भी मिली, दामिनी ने इस बात का एहसास करना जरूरी समझा कि निखिल को उस ने अपने लिए पसंद किया था और निखिल उस का छोड़ा हुआ कपड़ा है जिसे उस ने पहले पहना था जैसा कि अकसर बचपन में वह करती थी. शादी में नीरज को को न आना था, न वह आया. सुबह जब मेहमान जाने लगे तो दामिनी को छोड़ने का जिम्मा निखिल को मिला. दामिनी को तो बिन मांगी मूराद पूरी हो गई थी. जितना सजधज कर वह शादी में नहीं आई थी उस से कहीं ज्यादा सजधज कर वह जाने के लिए निकली.

दामिनी की कुटिल भावनाओं से दूर नलिनी इसे अपने दोनों का कर्तव्य समझ रही थी कि दीदी को सहीसलामत उन के घर पहुंचाया जाए.
रास्ते में झूठमूठ का पेटदर्द बहाना कर गाड़ी रुकवाई गई. दामिनी हर पल निखिल के क़रीब आने की कोशिश करती रही. निखिल अपना कर्तव्य निभाता गया और दामिनी का साथ देता गया. दामिनी ने निखिल से कुछ न छिपाया जहां वह अन्य लोगों से अपनी सचाई बयां करने से कतराती रही वहीं निखिल को उस ने बढ़ाचढ़ा कर बताया. रिश्ते के नाते निखिल भी हमदर्दी जताने में पीछे न रहा. जिसे दामिनी ने अपने प्रति पुराना प्यार जागता हुआ समझ लिया और उस को पाने की ललक में सीमाएं तोड़ने लगी.

दामिनी ने निखिल को जहां उतारने के लिए कहा था वहां से उस का घर थोड़ी दूरी पर था. वह नहीं चाहती थी कि निखिल उस के घर के हालात को देखे. रास्ते में उस ने अपना मेकअप पोंछ लिया, बाल बिखेर लिए और कमरे में दाखिल हुई, जहां बीमार नीरज उस का इंतजार कर रहा था. और इंतजार कर रहे थे घर के काम. विदाई में जो कुछ भी मिला था उसे दिखाने के अलावा दामिनी ने नीरज से कुछ न बताया. नीरज की बीमारी के कारण करीब 3 सालों से दामिनी अपना बिस्तर अलग कर चुकी थी. आज अपने बिस्तर के खालीपन में अचानक से निखिल की मौजूदगी देखने लगी. सालों बाद उस ने अपने अंगों को छूआ और सहलाया था. औरत के लिए शरमोहया जहां आभूषण होते हैं वहीं उस की जरूरत उसी गहने को बोझ बना देती है और बोझ तो ज़रूरत पड़ने पर उतार कर रख दिए जाते हैं.

कई दिनों की दिमागी हलचल के बाद दामिनी उस बोझ को अपने से अलग करने के लिए तैयार हो गई थी. वह निखिल से मिलने के बहाने ढूंढने लगी. गाड़ी में जब अपना दुखड़ा निखिल को सुना रही थी तो उसी दरमियान अपने परिवार की गोपनीयता की शपथ भी दिला दी थी, साथ ही, मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी कर चुकी थी.

दामिनी ने निखिल को कौल किया और मिलने की गुजारिश की. निखिल ने मददगार इंसान बनने की नीयत से मिलना स्वीकार कर लिया. करीब 2 घंटे के बाद वे दोनों एकदूसरे के आमनेसामने थे.

दामिनी ने उस की पसंद को ध्यान में रखते हुए हलके गुलाबी रंग का सूट पहना था. हलका मेकअप जैसा वह पहले किया करती थी, जिस का कभी निखिल दीवाना हुआ करता था. आज वह केवल निखिल की परीक्षा लेना चाहती थी. जबकि निखिल केवल हमदर्दी जताने के लिए उस के बुलाने पर आया था. जितनी भी देर बातें हुईं, उन बातों में दामिनी केवल यही ढूंढती रही कि कब निखिल उस की तारीफ करेगा और उन नज़रों से निहारेगा जिन से निहारा करता था.

“तुम आज भी लेडी डायना ही लगती हो,” निखिल ने कहा.

दामिनी की बांछें खिल गईं, निखिल को सबकुछ याद है, वह खुश हो गई. इस वाक्य ने दामिनी को एक मजबूत आधार दे दिया था. इसी आधार के सहारे वह अपने प्रेम की नैया को मझधार में ले जाने के लिए तैयार मान रही थी. दामिनी का विवेक उस के बोझ के तले चेतनाशून्य हो चुका था जिस में नलिनी का वजूद धूमिल हो चुका था.

मिलन का सिलसिला औपचारिकता की दीवार पार कर लगाव वाले घेरे में आ चुका था. जिस की शुरुआत आर्थिक मदद के नाम पर एक अच्छी कंपनी में नौकरी दिलवाने से हुई थी.

उधर, नलिनी विश्वास और भरोसे में बंधी पति में आ रहे बदलाव को नजरअंदाज कर रही थी और यही मानती रही कि व्यस्तता की वजह से निखिल ज्यादा बाहर रह रहे हैं. आखिर बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी भी तो है.

इधर, अपने शरीर से मजबूर नीरज ने तो अपने होंठ सालों पहले से सिल लिए थे. घर में आय का जरिया दामिनी ही थी. फर्क इतना ही पड़ा था कि पहले दामिनी जैसे घर में रहती थी वैसे अब बाहर निकल जाती थी लेकिन अब उस के निकलने के बाद भी कमरा लेडी डायना की खुशबू सा महकता रहता था.

नीरज शरीर से मजबूर था, दिमाग से नहीं लेकिन अपने हालात पर तरस खाने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा था. दामिनी तो अपनी सोचीसमझी योजना के तहत काम कर रही थी लेकिन निखिल पहला प्यार, जो कि इंसान कभी भूलता नहीं है’, की गिरफ्त में आ रहा था. धीरेधीरे उसे भी दामिनी में नमक वाला स्वाद आने लगा था, जिस के बगैर हर नमकीन व्यंजन अधूरा होता है.

“तुम केवल उम्र में मुझ से छोटे हो, बाकी हर क्षेत्र में मुझ से अव्वल,” एक दिन बातों ही बातों में दामिनी ने कहा.

“अपनी तारीफ भला किस को अच्छी नहीं लगती,” जवाब में निखिल ठहाका लगा कर हंसने लगा, साथ ही पूछ बैठा था, “वह कैसे?”

“बस, कह दिया जो सही लगा.”

“कुछ तो वजह होगी न.”

“हर बात की वजह नहीं होती.”

“ऐसे कैसे, होती है?”

“अच्छा, फिर यह बताओ कि हमारेतुम्हारे मिलने की वजह क्या है?” दामिनी अब अपनी सोच पर उस की इच्छा की मोहर लगाना चाहती थी.

“सच कहूं या झूठ?”

“क्यों, तुम झूठ भी बोलते हो?”

निखिल फिर हंसा, “अब तक तो नहीं बोलता था लेकिन अब बोलने लगा हूं. जब तुम से मिलने के लिए निकलता हूं तो घर में झूठ बोल कर आता हूं.” यह कहतेकहते संजीदा हो गया था निखिल.

दामिनी को निखिल के एकएक शब्द में अपनी जीत नज़र आ रही थी.

निखिल थोड़ी देर रुका, फिर बोला, “वैसे, अच्छा तो नहीं लगता लेकिन तुम्हारी बहन बहुत भोली है.”

“भोली नहीं, समय की बलवान है, यही वजह है कि जो कुछ मेरा था वह सब उस का हो चुका है. तुम भी तो पहले मेरे थे,” भावावेश में मन की बात कह गई दामिनी और निशान बिलकुल सही लगा.

बदले में निखिल ने उसे अपने सीने से लगा लिया था.

सीने से लगते ही दामिनी के अंदर सोई हुई औरत जाग गई जिस की वासना विगत कुछ वर्षों से अपूर्ण थी. उस ने पकड़ को और मजबूत कर लिया. कुछ देर यों ही दोनों लिपटे रहे, अलग होने का मन किसी का न था. तभी नलिनी के फोन ने दोनों को अलग होने की वजह दे दी. आज पहली बार पूछा गया था, “स्कूल की टाइमिंग तो 9 से 5 होती है न, 9 से 9 कब से हो गई?”

जवाब में निखिल की जबान लड़खड़ा गई और सच बाहर आ गया.

“दामिनी के साथ हूं.”

“क्यों, सब ठीक तो है न?” नलिनी ने चिंता जताते हुए पूछा.

“हां, कुछ दवाइयां खरीदवानी थीं, बाद में बात करता हूं.” फोन रख दिया गया.

मैसेज आया, ‘थैंक यू, टेक योर टाइम.’ लव वाला इमोजी भी था.

दोनों बेमन से अलग हुए और अपनीअपनी राह चले गए.

अब निखिल अपनी जिंदगी में दामिनी की कमी को महसूस करने लगा था और दामिनी तो पहले से ही घर में मनहूसियत और नीरसता को कोसती थी.

निखिल से लिपटने के बाद से ही मन में उठ रही तरंगों को दबा नहीं पा रही थी. 10 बजे के करीब घर आई. आज नीरज बिस्तर पर नहीं, दरवाजे पर उस का इंतजार कर रहा था. उसे देखते ही जलभुन गई. आंतों में आग लगी, तो मेरी याद आई होगी. मेरे तन में जो आग लगी है उस का क्या? लेकिन मन की आवाज मन में ही दम तोड़ गई.

“खाना बना देती हूं, बस 5 मिनट इंतजार करो,” दामिनी ने कंधे से औफिसबैग उतार कर रखते हुए कहा.

“नहीं, भूख नहीं लगी. बस, तुम्हारी चिंता सता रही थी,” नीरज ने मुसकराते हुए कहा.

“मेरी चिंता, तुम्हें कब से सताने लगी?” दामिनी बिफर पड़ी.

“ऐसा न कहो, जब तुम से शादी हुई थी, तुम ने भी देखा था मेरा रुतबा क्या था.”

“अच्छा, तो तुम भी मानते हो कि मैं मनहूस हूं और मैं ने आते ही तुम्हारी जिंदगी उजाड़ दी,” दामिनी ने मुड़ कर जवाब दिया.

“ऐसा मैं ने कब कहा?”

“मेरा मुंह न खुलवाओ.”

“तुम गुस्से में हो, हम बाद में बात करेंगे,” नीरज ने अपने कमरे की तरफ जाते हुए कहा.

“हुंह,” कहते हुए वह भी पैर पटकती रसोई में चली गई.

सब्जी धोते वक्त उंगलियों को सहलाया, निखिल की छुअन को महसूस किया. मन में हलचल मचने लगी. मन कर रहा था उस पल को फिर से जी ले. उस का जिया उस पल को जीने के लिए बेताब हो रहा था. एक घंटे के अंदर नीरज को खाना खिला कर दवाई खिला चुकी थी.

“थोड़ी देर मेरे पास बैठो न,” नीरज ने उसी हथेली को पकड़ा जिसे कुछ देर पहले निखिल ने छुआ था.

उस ने इस तरह खींचा कि जैसे निखिल के निशान मिट जाएंगे और ऐसा करते वक्त अंगूठी से नीरज के होंठों पर चोट लग गई, खून निकल आया. खून देख कर सारा प्यार जाता रहा.

“सौरीसौरी, गलती हो गई. मैं ने जानबूझ कर नहीं किया,” दामिनी ने खून पोंछते हुए कहा.

“हां, मुझे पता है,” नीरज रोंआसा हो मुंह फेर कर लेट गया.

दामिनी भी अपने बिस्तर पर आ कर लेट गई. वह बिस्तर पर आते ही निखिल के साथ बिताए पलों में खो गई. उस से लिपट कर अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. उन्मादित हो रही थी लेकिन उस के उन्माद में नीरज के होंठों का खून फैल रहा था. दो अलगअलग चित्र एक के बाद एक आ-जा रहे थे. एक तरफ अपने निखिल से लिपट कर स्वयं में पूर्णता महसूस कर रही थी तो दूसरी तरफ अंगूठी की वजह से नीरज का खून. दोनों चित्र एकदूसरे से अलग कर रहे थे. जब किसी एक भावुक पल को जी न सकी तो रुलाई छुट गई.

पंडित को, मां को भरभर कोसा. तब भी शांति नहीं मिली, तो मेज़ पर रखा गिलासभर पानी स्वयं पर उड़ेल लिया.

निखिल से अलग हो कर लौटते समय उस ने मन बना लिया था कि अगले दिन वह अपने मन की बात बता देगी कि ‘अपना पुराना हक वापस पाना चाहती है, अपना पहला प्यार जीना चाहती है’ और उसे कहीं न कहीं यकीन था कि निखिल भी इस बात के लिए राजी हो जाएगा.

जिस तरह से निखिल ने उसे गले से लगाया था वह 5 साल पुराने एहसास पर भी भारी था. इसी सुखद एहसास में लेटेलेटे न जाने कब सपने में निखिल उस के पास आया. दामिनी सारी शरमोहया छोड़ कर उसे अपना बना लेने का आग्रह करने लगी. निखिल जाने लगा.

‘तुम मेरा पहला प्यार हो, मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम मुझे अपना लो.’

‘नहीं, मैं यह गलती नहीं कर सकता. तुम अब किसी और की हो.’

‘नहीं, निखिल नहीं. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, मुझे अपना लो.’ और वह उस के कदमों में गिर जाती है. फिर उठ कर निखिल को बेतहाशा चूमने लगती है. निखिल विरोध करता है. दामिनी उसे पाने के लिए बेचैन हो रही थी. खुद से लड़ रही थी. पसीने से तरबतर हो चुकी थी.

“दामिनी, दामिनी,” नीरज ने झकझोर कर उठाया और गले से लगाने की कोशिश करने लगा, “कोई बुरा सपना देखा है तुम ने?” और उसे सहलाता रहा. नीरज खुद बुखार से तप रहा था.

“अरे, तुम्हें तो बुखार है,” दामिनी ने खुद को उस की पकड़ से दूर करते हुए कहा.

“यह तो हर रोज होता है लेकिन तुम, तुम क्यों परेशान हो?”

“पता नहीं,” दामिनी ने पानी पीते हुए कहा.

“मैं तो तुम्हारे सिंदूर के नाम पर जी रहा हूं वरना डाक्टर साहब ने तो कब का जवाब दे दिया है. मैं ने तुम्हें कभी नहीं बताया, मेरा तुम से विवाह करने का उद्देश्य केवल इतना था कि मैं कुंआरा नहीं मरना चाहता था. मैं जानता हूं कि तुम्हारे साथ नाइंसाफी हुई है, ऐसे व्यक्ति को विवाह करने का कोई हक नहीं जिस की झोली में चंद सांसें बची हों. लेकिन पंडित जी ने कहा था कि लड़की के सिंदूर के सहारे मैं जी सकता हूं, शायद इसीलिए मैं अब तक जिंदा हूं,” नीरज एक सांस में बोल गया.

“और तुम मान गए. इतना भी नहीं सोचा कि जब वह बिस्तर पर अपना हक मांगेगी तो क्या दूंगा,” दामिनी बोलती चली गई.

“मैं तुम्हारे सहारे जी रहा हूं, तुम मेरे लिए बहुत भाग्यशाली हो. तुम मुझे कभी छोड़ कर मत जाना, दामिनी,” कहते हुए नीरज दामिनी से लिपट गया.

“चलो, तुम्हें दवाई देती हूं,” दामिनी ने अलग करने की कोशिश करते हुए कहा.

“नहीं, ऐसे ही रहने दो न. तुम से लिपट कर अच्छा लग रहा है.”

“ठीक है, पहले दवा खा लो, फिर लिपट जाना,” दवा खिला व पानी पिला कर उसे लिटा दिया और उस की बगल में खुद भी लेट गई.

लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. एक तरफ अनैतिकता थी लेकिन सुख था, दूसरी तरफ सुहाग लेकिन संभोग नहीं. निर्णय उसे ही लेना था.

उस के साथ धोखा हुआ था और धोखे का बदला धोखा से दे सकती थी. उस पंडित को जान से मार देना चाहती थी जिस ने नीरज को यह समझाया था कि अगर वह शादी कर लेगा तो उस की जान बच सकती है लेकिन वह भूल गया कि ऐसा कर के वह किसी और की खुशियों में आग लगा रहा था. दूसरी तरफ वह जिस के साथ धोखा करना चाहती थी वह उस की छोटी बहन थी. एक गलत कदम उस की बहन के घर को उजाड़ देगा. असमंजस में पड़ी दामिनी नीरज के बाल सहला रही थी. नीरज मीठी मुसकान लिए उस से लिपट कर सो रहा था.

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