शेखर के चेहरे पर आंसू बहे जा रहे थे. गमगीन माहौल में शेखर ने बहुत दिन बाद खाना खा ही लिया, फिर बोले, ”उमाजी को बोलना, बस 2 ही रोटी भेजें 3 नहीं और मैं चावल के साथ तो 1 ही रोटी खाता हूं. तुम क्या करती हो, बेटा?””अंकल, अभी पढ़ रही हूं, आजकल कालेज तो बंद हैं न, औनलाइन क्लासेज हैं. अच्छा हुआ, आज आप को खाना देने मैं आ गई, कुछ ब्रैक मिला वरना घर से निकलने का कोई बहाना ही नहीं बचा.‘’
शेखर इस बात पर हंस दिए, उन्होंने टिफिन धो कर नेहा को दिया और एकसाथ ₹5 हजार दे कर बोले, ”यह ऐडवांस मम्मी को दे देना. हिसाब वे खुद ही करती रहें. जब मुझे देना हो, बता दें.‘’बहुत दिनों बाद शेखर लंच कर के थोड़ी देर सोए, उठे तो तबीयत हलकी लगी. थोड़ा टीवी देखा, फिर मशीन में कपडे धोने लगे, शाम को चाय पी कर छत पर टहलने चले गए. थोड़ी देर यों ही कुछकुछ काम करते रहे, टीवी देखा, शाम होतेहोते तो उन के मन की उदासी बहुत बढ़ती चली जाती, घर के कोनेकोने में पत्नी और बेटे को जैसे ढूंढ़ते फिरते. खाली घर सायंसायं करता रहता, आसपड़ोस में भी कोई कभीकभार ही दिखता. समय होता तो कहीं निकल जाते पर यह कोरोना महामारी का समय था, बैठना भी घर में बंद हो कर था और इस दुख से मन हटाने के लिए कोई रास्ता समझ नहीं आता था.
शाम को साढ़े 7 बजे डोरबेल बजी तो एक लड़का हाथ में टिफिन ले कर खड़ा था, उन्हें लड़के की शक्ल जानीपहचानी लगी, शेखर 1 साल पहले ही कालेज से रिटायर हुए थे, हिंदी के अध्यापक थे, लड़के ने कहा, ”सर, मैं शशांक, आप ने मुझे 9वीं क्लास में पढ़ाया है. आप का टिफिन लाया हूं, नेहा दीदी ने कहा है कि आप को खिला कर ही वापस जाऊं, अंदर आ जाऊं?”
शशांक उन के पास ही वैसे ही बैठ गए जैसे नेहा बैठी थी. शेखर को उस का साथ अच्छा लग रहा था, उस की पढ़ाई के बारे में बहुत कुछ पूछते रहे. खाना उन्हें बहुत अच्छा लगा था.शशांक ने कहा, ”सर…”उस की बात पूरी होने से पहले ही शेखर बोले, ”अब अंकल ही कहो, मुझे अच्छा लगेगा.‘’”अंकल, मम्मी ने कहा है कि आप को तकलीफ हो तो नाश्ता भी ले आया करें? उस के लिए मम्मी आप से कुछ ऐक्स्ट्रा पैसे नहीं लेंगी.‘’
”नहीं, नाश्ता मैं कर लेता हूं, कभी टोस्ट, कभी कौर्नफ्लैक्स… बस, खाने का आराम हो गया, इतना बहुत है.”शशांक उन से बहुत देर बातें करता रहा, फिर चला गया. उस के जाने के बाद शेखर थोड़ी देर टहलते रहे. आज बहुत दिनों के बाद 2 बच्चों से बैठ कर बातें की थी, कुछ ठीक लगा था, अब यह सिलसिला शुरू हो गया, लंच ले कर नेहा आती, डिनर शशांक लाता. दिन पर दिन दोनों बच्चे उन से खुलते गए, अब तो शेखर को उन का इंतजार रहने लगा. उन के ये 2 मासूम से साथी उन पर खूब स्नेह भरा हक जमाने लगते, कभी नेहा कहती, ”अंकल, यह शशांक शाम को न आए तो मैं आप के पास 2 बार आ जाऊं, पर यह शैतान भी आप के पास आने के चक्कर में लगा रहता है.”
अब तो नेहा उन के घर भर में चक्कर लगा जाती, शशांक तो उन के कितने ही काम कर जाता. दोनों बच्चे उन के स्नेह में खिले से रहते. शेखर को इन बच्चों का साथ बड़ा भला लगता.
अब यह भी होने लगा कि नेहा लंच के साथ अपनी बुक्स भी उठा लाती, आराम से कहती, ”अंकल, आप के यहां कितनी शांति है, कितना अच्छा लगता है. वहां तो मम्मी कोई न कोई काम बता कर उठाती रहती हैं और यह शशांक कोई काम नहीं करना चाहता, पढ़ाई का बहाना कर देता है, कामचोर… बस, आप के पास आने के लिए तैयार रहता है.‘’
इस बात पर शेखर को हंसी आ जाती. बच्चे खूब एकदूसरे की शिकायत उन से करते तो वे हंसते रहते और मजेदार बात यह थी कि दोनों चाहते कि वे जब कोई बात बता रहे हों, शेखर उन की ही साइड लें. बच्चों ने ही उन्हें बताया था कि जब वे छोटे थे, उन के पिता सुधीर की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, फिर उमा ने ही छोटेमोटे काम कर के दोनों को पढ़ायालिखाया था.
मामले बढ़ते ही जा रहे थे. हर तरफ एक चिंता का माहौल था. एक दोपहर उन की डोरबेल बजी, देखा तो एक शालीन महिला उन का टिफिन लिए खड़ी थी, नम्रता से अभिवादन करती हुई बोली, ”शेखरजी, नेहा को हलका बुखार सा लग रहा है, शशांक भी सिरदर्द बता रहा है, उन की बहुत चिंता हो रही है, बाकी सब को तो मना कर दिया था पर आप का खाना ले कर आई हूं.‘’
शर्मिंदा से शेखर बोले, ”अरे, क्या हो गया बच्चों को? और आप मुझे फोन कर देतीं, आज खाना रहने देतीं, क्यों परेशान हुईं आप ऐसे में?””बच्चों को आप से बहुत लगाव हो गया है, यही कहे जा रहे हैं कि मम्मी, बस, अंकल को खाना दे आओ.‘’”डाक्टर को दिखाया है?””डाक्टर रवि से बात की है, उन्होंने कुछ दवाएं भेज दी हैं और 1-2 दिन देखते रहने के लिए कहा है. वायरल भी हो सकता है, बस आजकल एक डर सा तो है ही.‘’
”मेरी कोई जरूरत हो तो बताइएगा और खाना अब बच्चों के ठीक होने के बाद ही आ जाएगा.‘’”नहीं, मैं ले आउंगी, बच्चों को चैन नहीं आएगा, हर समय आप की ही तो बात करते हैं.”टिफिन दे कर उमा चली गई. शाम को शेखर ने उन्हें फोन किया, बच्चों की तबीयत पूछी, उन्हें कुछ आराम था, उमा से कहने लगे,”आप खाना ले कर मत आना, मैं आ जाऊंगा टिफिन लेने.‘’
”जी, ठीक है.‘’आजकल दुकानें थोड़ी देर के लिए ही खुलती थीं. शेखर ने फल वाले को फोन कर के बहुत सारे फल बच्चों के लिए मंगाए. शाम को जब अपना टिफिन लेने गए तो बाहर गेट पर ही उमा को फलों का बैग दे कर बोले, “यह बच्चों के लिए, अब वे कैसे हैं?””अरे, आप ने क्यों तकलीफ की? बच्चे काफी ठीक हैं.‘’
”मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई और भी कोई चीज चाहिए तो बता दीजिए, मेरा भी मन नहीं लग रहा है बच्चों के बिना,” कहतेकहते उन की जो नजर उमा से मिली, लगा वहीं एकदूसरे के दुख को जैसे कहसुन लिया गया है. उन नजरों में बहुत कुछ था जो अकेले मन को सहारा देता सा महसूस किया दोनों ने. बच्चे ठीक हो गए, लाइफ में चारों अब एकदूसरे से और जुड़ते चले गए थे. शेखर का मन थोड़ा हलका हुआ.