लेखक-हरीश जायसवाल

‘अरे लक्षिता, तुम…?’ आश्चर्य से भरे सजन बोले, ‘भाई इतनी सुबहसुबह. तुम्हारी बचपन की सरप्राइज देने की आदत गई नहीं.’लक्षिता ने कुछ जवाब नहीं दिया. बस अटैची रख कर वह अपने पापा के सामने वाले सोफे पर जा कर बैठ गई.

‘अरे लक्षिता इतनी सुबहसुबह कैसे आ गई?’ लक्षिता की मां जैनी हाथों में चाय की ट्रे लिए किचन से ड्राइंगरूम में आते हुए बोलीं, ‘चलो, अच्छा हुआ. आज चाय कुछ ज्यादा भी बन गई थी.”आज हमारी गुड़िया कुछ गुमसुम सी है. क्या बात है? क्या लव्य से कोई झगड़ा हुआ है ?’ सजन ने स्नेह भरे स्वर में पूछा.

‘तुम लव्य को बतला कर तो आई हो ना ?’ मां जैनी ने पूछा.’अभी तुम्हारी शादी को 2 साल भी पूरे नहीं हुए हैं लक्षिता. इस समय तो पतिपत्नी में खट्टीमीठी नोंकझोंक होती रहनी चाहिए .और, दोनों को ही चाहिए कि वह उसे सकारात्मक रूप में ही लें,’ पिता सजन लक्षिता को समझाते हुए बोले.

‘पहले चाय पी लो, फिर आराम से बैठ कर बातें करते हैं. वैसे, लक्षिता अकसर पतिपत्नी के झगड़ों में सिर्फ नासमझी और बचपना होता है. और इन झगड़ों को सुखद भविष्य के लिए नींव ही मानना चाहिए,’ मां जैनी चाय का कप लक्षिता के हाथों में थमाते हुए बोली.

अपनी मम्मी जैनी की यह बातें सुन कर लक्षिता की आंखें डबडबा आईं.’क्या हुआ लक्षिता? क्या लव्य ने तुम पर हाथ उठाया?’ पापा ने घबराते हुए पूछा.’नहीं पापा. ऐसा कुछ नहीं हुआ,’ लक्षिता ने लंबे समय बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा.’तब तो कोई बड़ी बात नहीं है. जबानी जंग तो पतिपत्नी के बीच के माहौल को और रंगीन बनाती है,’ पापा मुसकराते हुए अपनी पत्नी जैनी की तरफ देखते हुए बोले.

‘नहींनहीं, पहले विवाद का विषय देख लो, फिर फैसला करो,’ जैनी लक्षिता का पक्ष लेते हुए बोली.’यस… यस, यू आर करेक्ट. वी शुड सी द मैटर फर्स्ट. हां तो बेटे बताओ, झगड़ा किस बात का है?’ पापा लक्षिता की तरफ मुखातिब हो कर बोले.

‘पापा, मुझे लगता है… लगता नहीं, बल्कि सच में लव्य मेरी अनदेखी कर रहा है,’ यह बात कहतेकहते लक्षिता की आंखों में आंसू आ गए.’तुम्हारी अनदेखी…? मतलब, लव्य किसी और लड़की की तरफ आकर्षित हो गया है?’ पापा ने शीघ्रता से पूछा. उन के स्वर में चिंता थी.

‘नहींनहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता कि लव्य लक्षिता को छोड़ कर किसी और की तरफ आकर्षित हो. मुझे तो बातों से ही वह बहुत नम्र और संस्कारवान लगता है. बातें करते समय भी हमेशा नजरें झुका कर बात करता है, वरना तो आजकल के लडके मांबाप से भी बातें करते समय खिड़की से बाहर जाती हुई लड़कियों को ताकते रहते हैं,’ जैनी लव्य की अनुपस्थिति में उस का पक्ष रखते हुए अपने अनुभव से बोलीं.

‘यह बात तो सही है तुम्हारी जैनी. मैं भी लव्य के बारे में कुछ ऐसी ही फीलिंग रखता हूं,’ अपनी पत्नी जैनी की बात का समर्थन करते हुए सजन बोले.’वैसे तो इस बात को मैं जब से शादी हुई है, तभी से महसूस कर रही हूं. परंतु, अब मैं इस से ज्यादा सहन नहीं कर सकती,’ कुछ रुक कर लक्षिता ने आगे बोलना जारी रखा, ‘आप सब को तो मालूम ही है कि मुझे साफसफाई और घर सजाने का कितना शौक है. मैं ने कुकरी क्लासेज भी की हुई है और मैं कई देशी और विदेशी डिश भी बहुत अच्छी बना लेती हूं.

हमारे घर पर आने वाले सभी मेहमान यहां तक कि पड़ोसी भी हमारे घर की साफसफाई और साजसज्जा की भरपूर तारीफ करते हैं. यही बात खाने की भी है. आसपास रहने वाले लोग भी अगर कोई डिश बनाते हैं, तो मुझ से रायमशवरा अवश्य करते हैं. उन लोगों को मेरे हाथ के बने खाने में कोई क्वालिटी दिखाई पड़ती होगी, तभी तो वह मुझे इतना अच्छा रिस्पांस देते होंगे ना?

‘मगर, लव्य को मुझ में कोई खूबी ही नजर नहीं आती. इसी कारण वह मेरी तारीफ के लिए कभी जबान ही नहीं खोलता. यह तो सीधेसीधे मेरी और मेरे काम की अनदेखी ही हुई ना? कई बार मुझे लगता है, जैसे मेरा व्यक्तित्व ही शून्य हो गया. मेरा अस्तित्व और मेरी पहचान ही छीन ली गई हो.

एक बार लव्य ने कहा था कि उसे इटैलियन डिशेस बहुत पसंद है. 3 दिन पहले मैं ने दिनभर मेहनत कर के उस के लिए इटैलियन खाना बनाया. सभी डिशेस बनी भी बहुत टेस्टी थी. संयोग से उस दिन लव्य के कुछ दोस्त घर आ गए थे. सभी ने चटकारे ले कर खूब मस्ती से खाई और भरपूर तारीफ भी की. दोस्तों ने अपने घर पर बनाने के लिए रेसेपी भी पूछी.

मगर, लव्य ने प्रशंसा में एक शब्द भी नहीं कहा. उन्हें खाना पसंद आया का अनुमान सिर्फ इस बात से लगाया कि उन्होंने रोज की डाइट से कुछ अधिक ही खाना खाया.’मुझे ऐसा लगता है कि लव्य अपने मुंह से मेरी तारीफ कर मुझे सम्मान देना नहीं चाहता.

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