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एक रात उन्हें बुखार और खांसी शुरू हो गई. उन्हें महसूस हुआ कि यह कोरोना हो सकता है. सब से पहले उन्होंने उमा को फोन कर के कहा, ''मुझे ठीक नहीं लग रहा है, आप में से कोई यहां मत आना.''शेखर ने रवि से बात की, रवि के कहने पर शेखर अपना टेस्ट करवाने गए, रिपोर्ट पौजिटिव थी, एक बार तो दिल घबराया कि अकेले घर में तबीयत बिगड़ी तो क्या करेंगे, पर अब तो ऐसे ही जीना है तो क्या कर सकते हैं.

अब बच्चे और उमा लगातार उन से बात कर ही रहे थे, उमा को उन के बच्चों ने कहा, ''मम्मी, इस बीमारी का कुछ पता नहीं कि हालत कब कैसी हो जाए, बेचारे अंकल बहुत अकेले हैं, हम उन्हें यहीं ऊपर रहने के लिए बुला लें, उन्हें अकेले छोड़ने का तो बिलकुल मन नहीं कर रहा है. मम्मी, इतना तो किसी के लिए कुछ किया ही जा सकता है न? ऊपर वाले कमरे में जो एक बैड लगा है, अंकल उस पर सो लेंगे, उन्हें वहीं आइसोलेट कर देंगे और ऐसे उन का ध्यान भी रख पाएंगे.‘’

उमा और उन के बीच थोड़ा अपनापन तो हो ही गया था फिर भी शेखर ने यह बात सुनते ही मना कर दिया, ''नहीं, उमाजी, मैं आप लोगों को बिलकुल तकलीफ नहीं दे सकता.‘’उमा रवि को अपने भाई जैसा ही मानती थी, रवि को यह बात बताई तो रवि ने ही शेखर को प्यार भरी झाड़ लगाई, ''अपना सामान एक बैग में रखो, शरीर में इतना दर्द है तुम्हें कि दरवाजे पर रखा टिफिन भी नहीं उठा पाओगे, दवा शुरू करो और जा कर उमा के रूम में चुपचाप शिफ्ट हो जाओ. हाई ब्लडप्रैशर के मरीज हो, अस्पतालों में जगह नहीं है, उमा के घर जाओ, मैं फोन पर बात करता रहूंगा. इस से अच्छा आईडिया इस समय किसी को आ नहीं सकता था. चुपचाप चले जाओ, कैसी तबीयत रहेगी, कुछ नहीं पता चलता.‘’

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