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नैनीताल से लौटी तो सुदेश के चेहरे पर नूर बरस रहा था. तृप्ति का भी अपना अनोखा सुख होता है. सुरेश की छुट्टियां खत्म होने वाली थीं. सुदेश को वह अपने साथ विदेश ले जाना चाहता था. उस की मां ने दबी जबान से कहा, ‘‘बहू को साल 2 साल यहीं रहने दे. सालभर तक रस्मरिवाज चलते हैं. फिर हम को भी कुछ लगेगा कि हां, सुरेश की बहू आ गई,’’ पर सुरेश ने एक न मानी. उस का कहना था कि क्लीवलैंड में भारतीय खाना तो किसी होटल में मिलता नहीं. घर पर बनाने का उस के पास समय नहीं. पहले वह डबलरोटी, अंडे आदि से किसी प्रकार काम चला लेता था. पर जब सुदेश को अमेरिका में ही रहना है तो बाद में जाने से क्या फायदा? वहां के माहौल में वह जितनी जल्दी घुलमिल जाए उतना ही अच्छा.

वह सुदेश को साथ ले कर अमेरिका रवाना हो गया. जहाज जब बादलों में विचरने लगा तो सुदेश भी खयालों की दुनिया में खो गई. शादी के बाद वह जिस दुनिया में रह रही थी उस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. उस ने तो कभी जहाज में बैठने की भी कल्पना नहीं की थी. उस के परिवार में भी शायद ही कोई कभी जहाज में बैठा हो. नैनीताल का भी उस ने नाम ही सुना था. पहाड़ों को काट कर बनाए गए प्रकृति के उस नीरभरे कटोरे को उस ने आंखभर देखने के बारे में भी नहीं सोचा था. पर वहां उस ने जीवन छक कर जिया. वहां बिताए दिनों को क्या वह जीवनभर भूल पाएगी. पूरी यात्रा में वह तरहतरह की कल्पनाओं में खोई रही. वह स्वयं को धरती से ऊपर उठता हुआ महसूस कर रही थी.

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