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उस की मुद्रा से लग रहा था कि वह सुरेश का मुंह नोच डालेगी. सुरेश उस के पास आ कर अपनी मजबूरी बताने लगा, ‘‘सूजेन के कारण ही मुझे अच्छी नौकरी मिली है. उस का बाप इस कंपनी का मालिक है. सूजेन उस की इकलौती बेटी है. वह सुंदर है, पढ़ीलिखी है. स्वयं भी उसी कंपनी में काम करती है. उसे तो मेरे जैसे कितने ही मिल जाते. परदेश में कौन किसे पूछता है?’’

सुदेश ने अपने पास आते हाथों को एक ओर झटक दिया और फुफकारती हुई बोली, ‘‘फिर दूसरा ब्याह रचने की क्या जरूरत थी? बीवी के बिना पलभर भी नहीं रहा जाता था तो इसे साथ ही देश ले जाते. वहां यह सब नाटक रचने की क्या जरूरत थी?’’ सुरेश ने समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं ने इस शादी की किसी को खबर नहीं दी थी. घर वाले न जाने क्या सोचते? फिर वहां छोटे भाईबहनों के रिश्ते होने में दिक्कत आती. मांबाप की, खानदान की शान में बट्टा लगता. सूजेन को वहां कौन स्वीकार करता?’’ सुदेश भभक उठी, ‘‘अपने खानदान की इज्जत के लिए दूसरे की इज्जत पर डाका डालना कहां की भलमनसाहत है? छिपाए रखना था तो वहां कह देते कि मुझे शादी नहीं करनी. कोई जबरदस्ती तो तुम्हारे गले में अपनी लड़की बांध नहीं देता? तब तो अखबार में छपवाया था, दुनियाभर के सब्जबाग दिखाए थे...’’

सुरेश बोला, ‘‘मांबाप का दिल भी तो नहीं तोड़ा जा सकता था. वे हर मेल में एक ही रट लगाए रहते थे. इसीलिए मैं ने अधिक पढ़ीलिखी या ऊंचे परिवार की लड़की नहीं देखी.’’ सुदेश रोते हुए बोली, ‘‘पढ़ीलिखी होती तो कोर्टकचहरी जा कर ऐसीतैसी कर देती. अलग रह कर कमाखा तो सकती थी. ऊंचे खानदान की होती तो घर वाले जरा सी भनक पड़ते ही नाक में नकेल डाल देते. भोलेभाले गरीब लोगों को जाल में फंसा लिया.’’ सुरेश अपनी सफलता पर मंदमंद मुसकरा रहा था.

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