आफिस से लौटने में कुछ देर हो गई थी लेकिन बच्चों ने मुंह फुलाने के बजाय चहकते हुए उस का स्वागत किया. ‘‘मम्मा, दिल्ली से रजत अंकल आए हैं, हमें उन के साथ खेलने में बड़ा मजा आ रहा है. आप भी हमारे कमरे में आ जाओ,’’ कह कर प्रणव और प्रभव अपने कमरे में भाग गए.
‘‘आ गई बेटी तू, रजत बड़ी देर से तेरे इंतजार में इन दोनों की शरारतें झेल रहा है,’’ मां ने बगैर रसोई से बाहर आए कहा. हालांकि दिल्ली रिश्तेदारों से अटी पड़ी थी लेकिन अभी तक किसी रजत से तो कोई रिश्ता जुड़ा नहीं था. पापा और बच्चों के साथ एक सुदर्शन युवक कैरम खेल रहा था. अपूर्वा को याद नहीं आया कि उस ने उसे पहले कभी देखा है. अपूर्वा को देखते ही युवक शालीनता से खड़ा हो गया लेकिन इस से पहले कि वह कुछ बोलता, प्रभवप्रणव चिल्लाए, ‘‘आप गेम बीच में छोड़ कर नहीं जा सकते, अंकल. बैठ जाइए.’’
‘‘इन की बात मान लेने में ही इज्जत है बरखुरदार. जब तक यह खेल खत्म होता है, तू भी फे्रश हो ले बेटी. रजत को हम ने रात के खाने तक रुकने को मना लिया है,’’ विद्याभूषण चहके. ‘‘वैसे मैं अपूर्वाजी का सिर खाए बगैर जाने वाला भी नहीं था,’’ रजत ने हंसते हुए कहा.
‘किस खुशी में भई?’ अपूर्वा पूछना चाह कर भी न पूछ सकी और मुसकरा कर अपने कमरे में आ गई. जब वह फे्रश हो कर बाहर आई तो बाई चाय ले कर आ गई. चाय की प्याली ले कर वह ड्राइंगरूम की बालकनी में आ गई.
‘‘मे आई ज्वाइन यू?’’ कुछ देर के बाद रजत ने आ कर पूछा. ‘‘प्लीज,’’ अपूर्वा ने कुरसी की ओर इशारा किया.
‘‘नाम तो आप सुन ही चुकी हैं, काम निखिला के साथ करता हूं. यहां हमारे बैंक की शाखा खुल रही है इसलिए उसी सिलसिले में आया हूं. आप का पता निखिला…’’ ‘‘निखिला?’’ अपूर्वा ने भौंहें चढ़ाईं.
‘‘निखिला जोशी, आप की मौसेरी बहन.’’ ‘‘ओह निक्की, मधु मौसी की बेटी,’’ अपूर्वा ने खिसिया कर कहा, ‘‘कई साल हो गए मिले हुए इसलिए एकदम पहचान नहीं सकी और उस ने मेरा पता भी याद रखा.’’
‘‘अतापता ही नहीं निखिला को तो आप के बारे में सब याद है. अकसर आप लोगों की बातें करती रहती है.’’ ‘‘मेरी तो खैर क्या बात करेगी, हां, बच्चों की शरारतों के बारे में शायद मां ने मौसी को बताया हो.’’
‘‘लेकिन निखिला तो आप के बचपन से चल रहे फेयरी टेल रोमांस, शादी और फिर शहजादे के मेढक बनने वाले दुखद अंत की बात करती रहती है,’’ रजत ने बेझिझक स्वर में कहा. ‘‘कमाल है, जहां हम नहीं पहुंचे, हमारे चर्चे जा पहुंचे. वैसे उसे कुछ खास मालूम नहीं होगा…’’
‘‘जितना भी मालूम है उस की वजह से उस ने कभी शादी न करने का फैसला किया है,’’ रजत ने बात काटी.
अपूर्वा ने चौंक कर रजत की ओर देखा, ‘तो यह वजह है मुझ से मिलने आने की.’ ‘‘बगैर असलियत जाने या मुझ से मिले, ऐसा फैसला लेना तो सरासर हिमाकत है. मैं ने समीर को इसलिए छोड़ा था क्योंकि उस का दोमुंहा व्यक्तित्व था, सब के सामने कुछ और, और अकेले में कुछ और. अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण भी वह पूर्वाग्रहों से ग्रस्त था जो शादी के बाद एकांत मिलते ही उभरने लगे थे.
‘‘वह बेहद बददिमाग था और गुस्से में उत्तेजित हो कर कुछ भी बोल और कर सकता था. गुस्से का आवेग शांत होते ही वह अपने व्यवहार पर बहुत लज्जित होता था, पश्चात्ताप करता था लेकिन इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराता था. यह जानने के बावजूद कि मेरे गर्भ में 2 बच्चे हैं, मैं ने गर्भपात नहीं करवाया. क्योंकि मैं ने सोचा कि बाप बनने के बाद शायद अपनी जिम्मेदारियां समझ कर वह अपना इलाज करवा ले. बच्चों से बेहद लगाव होने के बावजूद समीर का व्यवहार नहीं बदला. ‘‘इस से पहले कि बच्चे उस के गुस्से का शिकार बनते और किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते, मैं समीर से अलग हो गई. मेरी खुद की तो बढि़या नौकरी है ही और मांपापा का संरक्षण भी, इसलिए मुझे कोई परेशानी नहीं है. समीर एक मानसिक रोगी है इसलिए बजाय नफरत के मुझे उस से हमदर्दी है. न ही मेरे दिल में पुरुषों, प्यार या शादी को ले कर कोई कड़वाहट है तो फिर निक्की किस खुशी में मेरे नाम पर शहीद हो रही है?’’ अपूर्वा ने हंसते हुए पूछा.
रजत हंस पड़ा, ‘‘यह तो निखिला ही बता सकती है.’’ ‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से कोई जिंदगी में गलत फैसले ले. मेरा निखिला से मिलना बहुत जरूरी है.’’
‘‘लेकिन यह जरूरी नहीं है कि निखिला आप की बातों पर विश्वास करे.’’ ‘‘जरूर करेगी जब उसे पता चलेगा कि मैं दूसरी शादी करने को तैयार हूं मगर ऐसे आदमी से जो मेरे बच्चों को एक सुरक्षित, खुशहाल पारिवारिक जीवन दे सके, क्योंकि भौतिक सुविधाओं और नानानानी के लाड़प्यार के अलावा एक पिता का संरक्षण, अनुशासन और स्नेह बच्चों के व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी है.’’
रजत ने एक गहरी सांस ली और बोला, ‘‘आप ठीक कहती हैं. पिता का अभाव क्या होता है, यह मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं. पापा मेरे जन्म से पहले ही गुजर गए थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, चाचा और मामा वगैरा ने संरक्षण और भरपूर प्यार दिया लेकिन जिन पापा को कभी मैं ने देखा ही नहीं उन के बगैर आज भी मुझे अपना जीवन अधूरा लगता है.’’ ‘‘ऐसा लगना स्वाभाविक है क्योंकि जीवन में प्रत्येक रिश्ते की अपनी अलग ऊष्मा, अलग अहमियत होती है और कड़वाहट किस रिश्ते में नहीं आती? सगे बहनभाई एकदूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं लेकिन एक भाई के धोखा देने पर दूसरे भाई से तो कोई मुंह नहीं मोड़ता, फिर पतिपत्नी के अलगाव को ले कर इतना होहल्ला क्यों?’’