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‘‘यही सोच कर छुट्टी का दिन यह भी बच्चों के साथ गुजारते हैं मगर जितने खुश वे तुम्हारे साथ होते हैं हमारे नहीं. उम्र का फर्क बहुत माने रखता है,’’ मां ने उसांस ले कर कहा. ‘‘आप ठीक कह रही हैं. दादाजी के साथ उतना मजा नहीं आता जितना चाचाजी के आने पर या छुट्टियों में मामा के घर जाने पर आता था.’’

‘‘वह लोग तुम्हें शादी करने को नहीं कहते?’’ ‘‘वही नहीं, अब तो यहां के पासपड़ोस वाले भी कहते हैं,’’ रजत हंसा, ‘‘बस, आप ही नहीं कहतीं.’’

‘‘अगर कहूं तो मानोगे?’’ ‘‘यह तो आप को कहने के बाद ही पता चलेगा,’’ रजत हंसा.

इस से पहले कि मां कुछ कहतीं, प्रभवप्रणव पतंग ले कर आ गए और रजत उन के साथ व्यस्त हो गया. रजत के जाने के बाद मां ने यह बात अपूर्वा को बताई.

‘‘कहने में क्या जाता है, कह देना था,’’ अपूर्वा हंसी. ‘‘कैसे कुछ नहीं जाता?’’ मां ने तुनक कर पूछा, ‘‘मेरी कोई इज्जत नहीं है क्या?’’

‘‘आप का खयाल है कि वह मना कर देता?’’ ‘‘उस ने नहीं तू ने मना करना था क्योंकि उस ने तो तेरा हाथ मांगना था और मुझे कहना पड़ता कि मैं अपनी बेटी की तरफ से कोई फैसला नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम कुछ ज्यादा ही अटकल लगाने लग गई हो मां. आप ने यह कैसे सोच लिया कि रजत को मुझ में दिलचस्पी है, मेरे से ज्यादा वह बच्चों और आप लोगों के साथ समय गुजारता है.’’ ‘‘तुझे खुश करने के लिए. वैसे तू इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि उसे बच्चों से बहुत लगाव है.’’

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