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‘‘निखिला का कहना है कि आप की प्रेम कहानी का दुखद अंत देख कर उस का प्यारमोहब्बत पर से विश्वास उठ गया है.’’ ‘‘अकसर अखबारों में घर के पुराने नौकरों की गद्दारी की खबरें छपती रहती हैं लेकिन उन को पढ़ कर लोग नौकर रखना तो नहीं छोड़ते, न ही बीमारी के डर से बाजार का खाना?’’ अपूर्वा हंसी, ‘‘फिक्र मत करो, मैं निखिला को समीर के व्यवहार और अपने अलगाव की वजह समझा कर उस का फैसला बदलवा दूंगी.’’

‘‘कोशिश करता हूं कि अगले टूर पर निखिला को साथ ले आऊं.’’ ‘‘नहीं ला सके तो बच्चों की छुट्टियों में मैं दिल्ली आ जाऊंगी.’’

तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. चलने से पहले रजत ने पूछा कि क्या वह कल फिर बच्चों से मिलने को आ सकता है और अपूर्वा के बोलने से पहले ही मांपापा ने सहर्ष सहमति दे दी. चूंकि उसे उसी रात वापस जाना था.

अगले रोज रजत अपूर्वा के लौटने से पहले ही आ कर चला गया. ‘‘कहता था 10-15 दिन बाद वह फिर आ सकता है,’’ मां ने बताया.

अपूर्वा कहतेकहते रुक गई कि हो सकता है तब उस के साथ निक्की का टूर नहीं बनता तो वह स्वयं उस से मिलने जाएगी. वह जानती थी, निक्की के फैसले के पीछे उस की व्यथाकथा ही नहीं, निक्की की अपनी अमेरिकन बैंक की नौकरी का दर्प भी था. उसे समझाना होगा कि चंद साल के बाद जब सब सहकर्मियों और दोस्तों की शादियां हो जाएंगी तो प्रभुत्व वाली नौकरी के बावजूद उसे लगने लगेगा कि वह नितांत अकेली, असहाय और अस्तित्वहीन है.

एक शाम घर लौटने पर अपूर्वा ने देखा रजत बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था. कुछ देर के बाद वह अंदर आया. ‘‘निक्की का टूर नहीं बनवा सके?’’ उस ने कुछ देर के बाद पूछा.

‘‘बनवाने की कोशिश ही नहीं की,’’ रजत ने उसांस ले कर कहा, ‘‘मुझे आप का यह तर्क समझ में आया कि बगैर आप के अलगाव की वजह जाने इतना अहम फैसला कैसे ले लिया और उस के घर वालों ने कैसे लेने दिया.’’ ‘‘सही कह रहे हैं आप,’’ अपूर्वा ने बात काटी, ‘‘मां तो मधु मौसी को हरेक छोटीबड़ी बात बताती हैं. ऐसा हो ही नहीं सकता कि समीर की असलियत के बारे में उन्हें न बताया हो या मेरे लिए फिर से उपयुक्त वर तलाशने के लिए न कहा हो.’’

‘‘इस से तो यही जाहिर होता है कि निखिला शादी ही नहीं करना चाहती, आप का अलगाव महज बहाना है,’’ रजत हंसा. ‘‘प्रभुत्व वाली नौकरी मिलते ही कुछ लड़कियां और मांबाप घमंड में गलत सोचने लगते हैं. मैं मौसी और निक्की से बात करूंगी,’’ अपूर्वा ने आश्वासन के स्वर में कहा.

‘‘आप की मर्जी है. निखिला की बचकानी मनोस्थिति जानने के बाद मेरी अब उस में कोई दिलचस्पी नहीं रही है. वैसे भी वह कभी दिल्ली छोड़ना नहीं चाहती और मुझे तो जहां तरक्की मिलेगी, वहां जाऊंगा,’’ रजत मुसकराया. ‘‘बिलकुल सही एप्रोच यानी जिंदगी के प्रति सही रवैया है,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘कितने दिन का टूर है?’’

‘‘अरे, मैं ने आप को बताया नहीं कि मेरी यहां यानी नई ब्रांच में पोस्ंिटग हो गई है.’’ ‘‘जाहिर है तरक्की पर ही हुई होगी सो कुछ पार्टीवार्टी होनी चाहिए.’’

‘‘जरूर…अभी चलिए, किसी बढि़या जगह पर डिनर लेते हैं,’’ समीर फड़क कर बोला. ‘‘बाहर क्यों, घर पर ही बढि़या खाना बनवा लेते हैं.’’

‘‘आज तो बाहर ही खाएंगे. घर पर तो आप रोज ही खाती हैं और जब यहां आ गया हूं तो मैं भी अकसर ही खाया करूंगा बशर्ते आप को मेरे आने पर एतराज न हो.’’ ‘‘अरे, नहीं, एतराज कैसा और हो भी तो मांपापा के सामने उस की कोई अहमियत नहीं होगी. यह बताइए, कहां चलना है ताकि उस के मुताबिक तैयार हुआ जाए.’’

‘‘वह तो आप को ही बताना पड़ेगा. कोई ऐसी जगह जहां बच्चे मौजमस्ती कर सकें.’’ ‘‘हमारी मौजमस्ती तो जू या टै्रजर आईलैंड में होती है,’’ प्रभव बोला, ‘‘मगर वह तो अभी बंद होंगे.’’

‘‘अभी शौपर स्टौप खुला होगा, वहीं चलते हैं,’’ प्रणव ने कहा. ‘‘वहां तो कपड़े मिलते हैं भई और हम खाना खाने जा रहे हैं,’’ रजत हंसा.

‘‘नहीं अंकल, आप चलिए तो सही फिर देखिएगा कि वहां क्याक्या मिलता है,’’ प्रणवप्रभव दोनों बोले. ‘‘वहां मिलता तो बहुत कुछ है लेकिन सब इन के मतलब का,’’ अपूर्वा हंसी, ‘‘पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम या चाट.’’

‘‘अरे, वाह, चाट खाए मुद्दत हो गई… वही खाएंगे. आप को पसंद है न?’’ ‘‘है तो, मगर बात तो कहीं बढि़या खाने की हो रही थी.’’

‘‘किसी और दिन, आज तो बच्चों की पसंद की जगह चलेंगे,’’ रजत ने दृढ़ता से कहा. बाहर जाने और खाने के मौके तो अकसर ही आते रहते थे लेकिन अपूर्वा को बढि़या खाना खिलाने का मौका नहीं आया क्योंकि रजत बच्चों के बगैर कहीं जाता नहीं था और बच्चे फास्ट फूड वाली जगह जाने की ही जिद करते थे. धीरेधीरे रजत परिवार के सदस्य जैसा ही होता जा रहा था. विद्याभूषण सेवानिवृत्ति के बाद क्या करेंगे, पैसे को कहां निवेश करना होगा वगैरा अहम मुद्दों पर उस से सलाह ली जाती थी. एअरकंडीशनर की सर्विसिंग या वाशिंग मशीन की मरम्मत वह सामने बैठ कर करवाता था.

‘‘हम तुम्हें छुट्टी के रोज भी चैन से नहीं बैठने देते, किसी न किसी काम के लिए बुला ही लेते हैं,’’ एक रोज मां ने कहा. ‘‘अच्छा है, नहीं तो मुझे बिन बुलाए आना पड़ता,’’ रजत हंसा, ‘‘घर में अकेले बैठने के बजाय यहां आ कर बच्चों के साथ मन बहला लेता हूं. उन की छुट्टी भी हंसीखुशी से कट जाती है और मेरी भी. जानती हैं मां, बचपन में छुट्टी का दिन मेरे लिए बहुत बुरा होता था क्योंकि सभी दोस्त छुट्टी के रोज अपने पापा के साथ खेलते थे…किसी के पास मेरे लिए फुरसत नहीं होती थी.’’

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