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काश, तभी संभाल लिया होता सबकुछ. श्यामला के जीवन में स्पंदन था, संवेदनाएं थीं, भावनाएं थीं. और वे? श्यामला कहती, ‘आप को सिर्फ अपनेआप से प्यार है, मैं और बच्चे तो आप के लिए जीवनयापन करने के यंत्रभर हैं.’

श्यामला उन में एक साथी को खोजती जो उसे मिल न पाता. उस के व्यक्तित्व की सारी संवेदनाएं जैसे मन मसोस कर रह जातीं. वह अकेलेपन की शिकार हो रही थी, अवसाद से घिर रही थी. और अपने अडि़यल स्वभाव की वजह से वे नहीं समझ पाए या उन्होंने समझना ही नहीं चाहा.

‘‘साहब, खाना,’’ बिरुवा प्लेट लिए खड़ा था. उस के हाथ से प्लेट ले कर वे चुपचाप खाने लगे. पहले वे चुप रहते थे, अब बोलना भी चाहें तो किस के साथ?

बिरुवा भी अपनी थाली ले कर वहीं जमीन पर बैठ गया, ‘‘आप ने कुछ बताया नहीं साहब, मेरे घरवाले अब मुझे गांव बुला रहे हैं,’’ बिरुवा ने दोबारा बात छेड़ी.

‘‘अभी कुछ दिन रुको बिरुवा, अभी तो मुझे रिटायर हुए 2 ही दिन हुए हैं, फिर बताऊंगा,’’ कह कर वे चुप हो गए. बिरुवा जानता था, उन के कुछ दिन की कोई सीमा नहीं थी.

मधुप सोच रहे थे, बिरुवा दूर रह कर भी अपने परिवार के दिल के कितने करीब है, क्योंकि उन्हें पता है कि वह यदि दूर है तो उन्हें सुख व खुशियां देने के लिए. लेकिन अपने परिवार के साथ रहने पर भी, सारी भौतिक सुखसुविधाएं देने पर भी वे उन के दिल के करीब नहीं रह पाए और अपने परिवार से दूर हो गए.

श्यामला गुनगुनाना चाहती थी, जीवन को भरपूर जीना चाहती थी. हिरनी जैसे कुलांचें मारना चाहती थी. मतलब, जीवन के हर रूप को आत्मसात करना चाहती थी. पर श्यामला की जीवंतता को नियंत्रित कर उन्हें लगता, उन्होंने उस पर शासन कर लिया. पर वे सिर्फ श्यामला के शरीर पर ही तो शासन कर पाए थे, हृदय पर नहीं. हृदय से तो वे धीरेधीरे उस से दूर होने लगे थे. इतनी दूर कि उस दूरी को फिर वे चाह कर भी नहीं पाट पाए.

श्यामला के जाने के बाद जाना था कि वैवाहिक जीवन के विघटन के कारण कभी बहुत बड़े नहीं होते. दोनों में से जब किसी एक का व्यक्तित्व अंदर ही अंदर दम तोड़ने लगता है तो वैवाहिक जीवन का विघटन शुरू हो जाता है. किसी एक का हर वक्त नकारा जाना उस अधिकारसूत्र को तोड़ देता है जो दोनों को एकदूसरे से बांधता है.

मधुप ने प्लेट नीचे रख दी, ‘‘अब नहीं खाया जा रहा बिरुवा, पेट सूप से भर गया.’’ वे क्या बताएं बिरुवा को कि पेट तो यादों से ही भर जाता है. वही यादें जो अकेले में डराती हैं और साथ में रुलाती भी हैं.

अचानक आंखों के सामने बदली छा गई. उन्होंने आंखों को हाथ से पोंछ लिया. अनायास ही आंखें गीली हो गई थीं. भरापूरा परिवार, 2 जुड़वां बेटे और पत्नी होते हुए भी वे आज वैरागी सा जीवन जी रहे थे. टीवी बंद कर वे बिस्तर पर लेट गए. नीरव रात्रि में कहीं दूर से कुत्तों के भूंकने का स्वर स्पष्ट सुनाई दे रहा था. वैसे भी जब अपने अंदर भयानक सन्नाटा हो तो बाहर की थोड़ी सी आवाज भी स्पष्ट सुनाई देती है.

बेटे 12वीं कर के इंजीनियरिंग से निकल कर बाहर पढ़ने चले गए. इतने दिनों तक बच्चों की जिम्मेदारियों ने ही श्यामला को बांधा हुआ था. लेकिन बच्चों के जाने बाद वह अवसाद की शिकार हो गई. मधुप सबकुछ समझतेबूझते भी, उस का साथ देने

के बजाय उसे उपदेश देने लग जाते. उपदेश देने के लिए उन की जबान

जरूर हिलती.

श्यामला का मन करता, कोई साथी हो जिस से अपने दिल की बातें बांट सके. बच्चों के साथ की व्यस्तता अब खत्म हो गई थी. जो थोड़ाबहुत वार्त्तालाप उन की वजह से होता था, अब समाप्त हो गया था.

‘क्या करूं, सारा दिन कितना

पढ़ूं, कितना टीवी देखूं, अकेले मन नहीं लगता,’ यह कह कर श्यामला एक दिन रोने लगी.

‘तुम्हारा मन लगाने के लिए क्या करूं, नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाऊं,’ उस के रोने से मधुप चिढ़ गए.

‘यह मैं ने कब कहा, आप कहें तो घर से बुटीक का काम शुरू कर दूं, व्यस्त भी रहूंगी और थोड़ेबहुत पैसे भी मिल जाएंगे?’

‘बस, अब यही करने को रह गया, घर को दुकान बना दो. कोई जरूरत नहीं,’ मधुप फिर अभेद हो गए.

मधुप की चुप्पी से परेशान हो कर श्यामला की नाराजगी थोड़े दिनों में अपनेआप ही दूर हो जाती थी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया. नाराज हो कर उस ने दूसरे कमरे में सोना शुरू कर दिया. उन्होंने कोई तवज्जुह नहीं दी. वैसे भी, पत्नी को मनाना उन के लिए सब से निकृष्ट कार्य था. पत्नी को क्यों मनाया जाए, जैसे खुद रूठी है वैसे ही खुद मान भी जाएगी. उन्होंने तो कभी बच्चों को भी डांट कर प्यार नहीं किया. पता नहीं कैसा अनोखा स्वभाव था उन का.

उन दोनों को अलगअलग सोते हुए एक हफ्ता गुजर गया. काश, तभी चेत जाते, श्यामला की नाराजगी कभी इतनी लंबी नहीं खिंची थी. एक दिन वे सुबह औफिस के लिए तैयार हो रहे थे कि श्यामला उन के सामने आ खड़ी हुई.

‘अब मुझ से यहां न रहा जाएगा, मैं जा रही हूं.’

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