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यह शायद गायत्री बोल रही थी.
प्रारंभिक परिचय और ‘हैलोहैलो’ के बाद सब छोटेछोटे समूहों में बैठ कर गपशप करने लगीं.
‘‘तुम्हारी कामवाली का क्या हाल है? क्या अभी भी उस का आदमी उसे पीटता है?’’ किसी ने पूछा.
‘‘अरे, उस की कुछ न पूछो, मैं तो उस को बोलती हूं कि घर जाओ ही नहीं. यहीं रहो, मेरा घर संभालो और बदले में खाओपीओ, पर उसे तो मार खाने की आदत है. सो, रोज भागती चली जाती है,’’ यह शायद गायत्री बोल रही थी.
‘‘पर उस का 1 बच्चा भी तो है, उसे भी तुम रख लोगी?’’ गायत्री ने झट से प्रश्न किया.
‘‘न बाबा न, सालभर के बच्चे के साथ वह काम क्या करेगी. फिर मेरे घर में इतनी जगह भी कहां है,’’ गायत्री ने अपनी मजबूरी बताई.
‘‘तेरी पड़ोसिन गृहलक्ष्मी यानी ‘घर की रानी’ का क्या हाल है, रीना? कभी उसे भी साथ ले आ न,’’ यह सुमेधा थी.
स्त्रियों की खिलखिलाहट से गूंज उठा
‘‘पर उसे सासससुर की सेवा से फुरसत हो तब न, बच्चों का गृहकार्य देखने से और पति महाशय को रूमाल, तौलिया व जुराबें पकड़ाने से. मैं तो ऐसी गंवार औरतों को जरा भी सहन नहीं कर पाती,’’ रीना मुंह बिचका कर बोली तो सब खिलखिला कर हंसने लगीं.
‘‘अरे भई शीला, अपने मियां को बोल कर एक ‘चैरिटी शो’ करवाओ उन की फिल्म का. किसी नामी स्त्री सेवा समिति को चैक दान करते हुए बस एक फोटो छप जाए अखबार में तो सालभर तक इस समाजसेवा के चक्कर से निकल जाएंगे,’’ रीना ने अपना सोने से भी खरा सुझाव दिया.
कमरा फिर स्त्रियों की खिलखिलाहट से गूंज उठा.
मैं ने अनुमान लगाया कि शीला के पति शायद फिल्म वितरण के व्यवसाय में हैं. ऐसे ही अनर्गल वार्त्तालाप के बीच खानेपीने का दौर चलता रहा. प्रत्येक महिला अपने साथ एक व्यंजन बना कर लाई थी या कौन जाने पास के होटल से ही खरीद लाई हो.
खानेपीने के बाद ताश की महफिल सज गई. इस बीच मैं ने उठने की कई बार कोशिश की, पर हर बार मीनाक्षी हाथ पकड़ कर रोक लेती, ‘‘बस यार, दो मिनट.’’
‘‘अरे, ऐसी भी क्या जल्दी है. अभी तो महफिल जमी भी नहीं और आप जाने की सोचने लगीं,’’ कोई न कोई टोक देती.
‘क्या अपना घर भी न दिखाओगी?
चिंतित सासससुर और स्कूल से लौटे बच्चों का वास्ता दूंगी तो फूहड़ और गंवार जान कर हंसी की पात्र बना जाऊंगी, यह सोच चुप रह जाती. पर अब साढ़े 3 बज चुके थे, स्थिति मेरे लिए असह्य हो चुकी थी.
मैं बिना कुछ बोले उठ खड़ी हुई. दरवाजे की तरफ लपकते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘फिर मिलेंगे, मीनाक्षी.’’
‘‘क्या अपना घर भी न दिखाओगी?’’
मुड़ कर देखा तो मीनाक्षी भी चली आ रही थी. बिना आमंत्रण वह भी साथ हो ली.
‘‘मैं ने सोचा, तुम शायद अभी ताश खेलोगी,’’ मैं ने सफाई दी.
‘‘हां, ताश की बाजी तो दिन ढलने तक चलेगी. पर आज तो शाम की चाय तुम्हारे साथ ही पीऊंगी,’’ उस ने बेबाकी से कहा.
‘‘हांहां, जरूर.’’
शायद वह यह देखने को उत्सुक थी कि एक आज्ञाकारिणी बहू अगर बिना बताए कुछ समय बाहर बिताती है तो उस के सासससुर उस के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, सोच कर मैं मन ही मन मुसकरा उठी.
बाहर निकलते ही मैं ने आटो कर लिया. जल्द से जल्द घर पहुंचने की उत्सुकता और आतुरता के कारण मुझ से बोला भी न जा रहा था. रास्तेभर

मीनाक्षी कुछ न कुछ बोलती रही और मैं ‘हांहूं’ के उत्तर से काम चलाती रही.
घर के गेट के पास आटो के रुकते ही पिताजी बरामदे में चक्कर काटते दिखे. उन्होंने मेरी चिंता में सारी दोपहर ऐसे ही बिताई होगी, यह सोच कर मन ग्लानि से क्षुब्ध हो उठा. परिवार के सदस्यों को ऐसी ऊहापोह और असमंजस की स्थिति में डालने से तो कहीं बेहतर था कि मैं फूहड़ और गंवार ही ठहराई जाती.
आटो को अपने गेट पर रुकता देख वे आंखों को हथेली से ढक क्षणभर को खड़े हो गए. दूर से ही उतरने वाले को पहचानने के प्रयास में उन की भृकुटि भी तन गई थीं. फिर शायद मुझे पहचानते ही वे अंदर की ओर मुड़ गए.
गेट खोलने से पहले मैं ने सिर पर साड़ी का हलका सा पल्लू रख लिया. मीनाक्षी मेरे इस अंदाज पर किंचित व्यंग्य से मुसकरा दी, मानो कह रही हो, ‘वाह री आदर्श बहू.’
‘‘बहुत देर कर दी बेटी,’’ मांजी का स्वर शांत और स्निग्ध था.
‘‘हां मां, यह मेरी सहेली मीनाक्षी मिल गई. इसी के साथ देर हो गई.’’
‘‘मैं तो इन्हें समझा रही थी कि किसी काम में देर हो गई होगी परंतु इन की आदत तो तू जानती है, सारी दोपहरी बरामदे में ही चक्कर काटते रहे.’’
फिर मीनाक्षी के नमस्ते के उत्तर में वे मुसकराईं, ‘‘तेरा गुड्डू भी पूछपूछ कर बस अभी सोया है, रुचि जागती होगी. रुचि बेटी, मां के लिए पानी ले कर आ. बाहर कितनी गरमी है. मैं भी बस अपनी कहानी ले कर बैठ गई. तुम दोनों सहेलियां गपशप करो, मैं अब सोऊंगी, थक गई हूं,’’ कहतेकहते मांजी उठ गईं.
फिर अचानक जैसे कुछ याद आने पर वापस मुड़ कर बोलीं, ‘‘तेरे लिए भी 2 रोटियां सेंक कर रखी हैं, सब्जी भी पड़ी है. 2 रोटियां और सेंक कर सहेली के साथ मिल कर खा ले.’’
‘‘मैं ने खाना खा लिया है, अब आप आराम से जा कर सो जाइए,’’ मैं हंस कर बोली.
‘‘आज आप कहां चली गई थीं?’’ पानी के 2 गिलास ले कर आई 8 साल की रुचि की आंखों और स्वर में हैरानी थी, ‘‘गुड्डू तो आप के बिना सोता ही नहीं था, मुझे भी नींद नहीं आई,’’ गिलास मेज पर रख कर मेरे गले में बांहें डाल कर वह लाड़ करने लगी.
मैं ने भी पुचकार कर उसे गोदी में उठा लिया.
ग्लानि की भावना ने एक बार फिर मुझे परेशान कर दिया कि बेकार ही वहां रुक गई और यहां सब परेशान होते रहे. बच्चों के स्कूल से लौटने के समय मैं हमेशा ही घर में रहती थी. दूर से ही वे दौड़ कर होड़ लगाते आते कि कौन मां को पहले छुएगा. फिर टांगों से लिपट कर मां के स्पर्श का सुख पा कर सबकुछ भूल जाते.
बच्चों की मीठीमीठी बातों के बीच दोपहर का खानापीना निबटता. फिर मैं दोनों को दाएंबाएं लिटा कर खुद बीच में लेट जाती. बातें करतेकरते वे कब सो जाते, मुझे स्वयं भी पता न चलता.‘‘कहां गुम हो गई?’’ मीनाक्षी ने प्रश्न किया तो मैं वर्तमान में लौट आई.
‘‘रुचि, तुम मौसी से तो मिली ही नहीं, यह मेरी सहेली है,
कालेज की,’’ मैं ने बताया तो रुचि ने क्षणभर उसे निहारा, फिर नमस्ते कर शरमा कर भाग गई. नींद से उस की आंखें भारी थीं. मेरी उपस्थिति का आश्वासन पा कर अब वह सो जाएगी, इस का मुझे भरोसा था.
‘‘यार, तुम ने तो अपने बच्चों को बहुत बिगाड़ा हुआ है,’’ मीनाक्षी के प्रश्न पर मैं हैरान रह गई. उसे क्या जवाब देती, बस मुसकरा कर रह गई.
मीनाक्षी को घर जाने की कोई जल्दी न थी. इधरउधर की बातें और बेकार की गपशप करतेकरते मैं उकता गई. सुबह उस से अचानक मिलने पर जो उत्साह मन में उठा था, वह उस के व्यवहार के कारण कब का भीतरभीतर दब चुका था. सुबह से मैं ने कुछ काम भी न किया था, फिर भी बहुत थकावट लग रही थी.
5 साढ़े 5 बजे के बीच मीनाक्षी को एक फिल्मी पत्रिका पकड़ा कर मैं बच्चों को जगाने चली गई. हाथमुंह धुला कर, दूध पिला कर उन्हें बाहर खेलने भेज कर रसोई का रुख किया. मां और पिताजी की चाय का समय कब का हो चुका था.
सुबह समोसों के लिए मैदा गूंध कर मसाला भी बना रखा था. मांजी ने मेरी अनुपस्थिति में मसाला भर कर समोसे बांध कर रख दिए थे. गैस पर एक तरफ चाय का पानी चढ़ा कर दूसरी तरफ समोसे तल लिए.
मां और पिताजी को उन के कमरे में चाय, नाश्ता दे कर अपना और मीनाक्षी का चाय, नाश्ता ले कर फिर उस के पास आ बैठी. वह पत्रिका के पृष्ठों में खोई हुई थी. मैं सोचने लगी, ‘इस के बच्चे भी कब के स्कूल से आ चुके होंगे और यह महारानी यहां कैसे निश्चिंत बैठी है.’
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