फिर वही कमरा और मैं… इतने में रिया का फोन आ गया, ”चाचू कैसे हो? क्या कर रहे थे?” मुझे हंसी आ गई, आ गई चिड़िया, अब लगातार चहकेगी, सवाल पर सवाल करेगी. मैं ने कहा, ”अभी लंच किया है.”
”अच्छा…? स्वाद लौटा आप का?” ”नहीं, न स्वाद, न कोई खुशबू.‘’ ”अच्छा चाचू, परफ्यूम की भी खुशबू नहीं आ रही?” ”नहीं.‘’ ”सो सैड न.’’ ”हां, सैड तो है, पर क्या कर सकते हैं? तुम क्या कर रही हो?”
”अरे, वही, औनलाइन क्लास… बोर कर के रख दिया कोरोना ने तो. घर में बंद… चाचू, कोई मूवी देखी?” ”नहीं.‘’ ”ओफ्फो चाचू, इतना टाइम फिर कहां मिलेगा? आप के बैडरूम में तो टीवी है न… नेटफ्लिक्स पर आराम से देखिए,” उस ने मुझे पता नहीं क्याक्या बता दिया, जो मैं लेटेलेटे देख सकता था.
फोन पर मुझे भाभी की आवाज सुनाई दी, ‘’चाचू को आराम करने दो, बेटा, बात करने में गला दुखता होगा.” रिया से फोन पार्थ ने ले लिया, ”चाचू, जल्दी ठीक हो जाओ, बायबाय… अब मैं आप को जल्दी फोन करूंगा, आप की आज की एनर्जी तो रिया ने ले ली.”
हंसीमजाक के साथ फोन रखा गया. आजकल यही पल होते हैं, जिन में मुझे लगता है कि मेरा कोई है. हम 3 भाईबहन हैं. हमारे मम्मीपिताजी तो अब रहे नहीं, मैं दिल्ली में रहता हूं. सब से बड़े भैया विनय मुंबई में और फिर विनीता दीदी, रवि जीजाजी और 2 प्यारी बेटियों सिद्धि और रिद्धि के साथ लखनऊ में. मैं ही छोटा हूं और शायद सब से मूर्ख भी.
आज तो मुझे यही लगता है कि मैं ने कैसे सीमा से शादी होते ही सब को भुला दिया. जोजो सीमा कहती, मैं वही करता.सीमा के बाहरी रूपरंग का मेरी अक्ल पर ऐसा परदा पड़ा कि मैं ने सब रिश्ते भुला दिए और सब से कट कर रहने में ही अपनी भलाई समझी.
सीमा को मेरे भाईबहन बिलकुल पसंद नहीं थे. वह शुरू से ही सब से कट कर रहती, पर मैं… कैसे भूल गया भैयाभाभी का साथ और प्यार, जब तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं हुआ, भाभी को मुझे कुछ कहने की जरूरत ही न पड़ती. पता नहीं, कैसे समझ जातीं कि मुझे किस चीज की जरूरत है, कितने साल मुझे अपने बच्चों की ही तरह रखा है भैयाभाभी ने. कभी सिरदर्द भी हुआ, तो उन के स्नेहिल स्पर्श से दर्द ठीक हो जाता. वे ऐसे सिर दबातीं कि कभी दवा ही न लेनी पड़ती.
आज मुझे वह ममताभरा स्पर्श चाहिए, अपने दुखते सिर पर उन का हाथ चाहिए, पर कहां? सीमा को उन से लगाव नहीं था तो क्या हुआ, मेरे तो अपने रिश्ते थे ये, मैं ने कैसे सब को भुला दिया. कुछ ये बीमारी, कुछ अकेलेपन की भावना ने मुझे इतना तोड़ दिया कि मैं फूटफूट कर रोने लगा. मन घबराया तो लगा कि कोई हो आसपास, सीमा को फोन किया, लगा, शायद सब सो गए. दोपहर को आजकल सब खाना खा कर सो जाते. तबीयत इतनी घबराई कि सीमा को मैसेज कर डाला, ‘जैसे ही उठो, मेरे पास आना.‘
मैं फूटफूट कर रो रहा था, अनिल, सुनील को फोन मिलाया, सब का फोन शायद साइलेंट मोड पर था, मैं ने विनय भैया को फोन मिला दिया और उन के चिंतित स्वर पर फूटफूट कर रो पड़ा.वैसे तो भैया बहुत शांत हैं, पर मेरे ऐसे रोने पर उन्होंने मुझे उसी वक्त अपने डाक्टर को वीडियो काल कर के बात करने के लिए कहा. परेशानी में थोड़ा तेज आवाज में अधिकार के साथ जोर दे कर जो उन की आदत है, ‘’इसी समय अपनी परेशानी बताओ डाक्टर को.”
मैं ने फोन किया, आज भी भैया का कहना टालने की न हिम्मत होती, न मन. एक रूम में बंद,अकेलेपन से मुझे अजीब सा डिप्रेशन हो रहा था, ऐसे तो कभी बंद रहा ही नहीं था, टूर पर रहने वाली नौकरी है, अभी टूर से ही तो आया था कि कोरोना ले आया. मानता हूं कि घर में सब को सेफ रहना है, पर मन से तो कोई दूरी नहीं होनी चाहिए न… यह तो कोई बात नहीं न कि ”आप आराम ही करो,’’ कह कर सब अपनेअपने काम में मस्त रहें, बीमार हूं, कुछ और भी अपनापन चाहिए न, बीमारी भी ऐसी कि मनोबल बना रहे, पर कैसे हिम्मत रखूं, शरीर के साथ मन भी जब बहुतकुछ झेल रहा हो तो डिप्रेशन तो होना ही था.
डाक्टर ने दवा लिखी, तुरंत भैयाभाभी का फोन आया, स्पीकर पर दोनों ने बात की, और ढेर सारी बातें कीं. दोनों इतनी दूर बैठे आज भी समझ गए कि मुझे क्या चाहिए, स्पीकर पर अब बच्चे भी थे, इतनी बातें हुईं कि मैं जोरजोर से हंसने लगा था, तो सीमा अचानक आई, ”अब तो ठीक लग रहे हो तुम. मुझे क्यों इतने मैसेज डाल कर परेशान कर दिया, क्या हुआ? क्या चाहिए?”
सीमा को नहीं पता था कि फोन स्पीकर पर है, उधर पूरा सन्नाटा हो गया था, जैसे सब को एक शौक लगा था. ”भैया, करता हूं थोड़ी देर में,” कह कर मैं ने फोन रख दिया. मैं ने फोन जल्दी से काट दिया, शर्म आई, क्या सोचेंगे भैया, भाभी, रिया और पार्थ. मुझे अचानक ही बहुत खांसी उठने लगी. सीमा के पीछे खड़े अनिल और सुनील बोले, ”पापा, फोन पर क्यों इतनी बातें कर रहे हो आप? आराम क्यों नहीं करते?”