मैं ने दर्द में कराहते हुए उठ कर पानी पीया. खांसी कुछ पल रुकी, तो मैं तीनों को बताने लगा कि कैसे अभी मेरी तबीयत बिगड़ी थी और डाक्टर ने मुझे दवाई लिखी है. मैं ने कहा, ''मैं ने मेडिकल स्टोर फोन कर दिया है. अभी दवाई आ जाएगी. मेरे लिए एक कप चाय भी बना देना, सीमा.‘’
सीमा ने कुछ कहा नहीं, फिर थोड़ा रुक कर बोली, ''ये इतने फोन किस के आ रहे हैं, अभी तो इतना हंस रहे थे.''''भैया, भाभी और बच्चों के.''सीमा सुन कर बस इतना ही बोली, ''चाय बना देती हूं.‘सुनील और अनिल भी उस के पीछे चले गए. दोनों एकदम सीमा पर गए हैं, बहुत ही स्वार्थी और बददिमाग. मुझ से तो तभी ढंग से बात करते हैं, जब उन्हें पैसे की कोई जरूरत हो.
और सीमा, क्या बताऊं, जिस दिन कोरोना के मेरे टेस्ट की रिपोर्ट पौजिटिव आई, उसी दिन बैंक के सारे फिक्स्ड डिपोजिट और सेविंग्स समझ रही थी. मतलब, अगर मैं कहीं कोरोना से मर भी जाऊं, तो ठीक है. उस ने अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर लिया है. एक ये तीन हैं मेरे सामने मेरी आज की तकलीफों के समय, एक मीलों दूर बैठे हैं मेरे अपने कि मैं बस ठीक हो जाऊं, उन की जान जैसे मुझ में अटकी है, वे डर रहे हैं, उन की आवाज भीग रही है, मेरे बड़े भैया की आवाज इतनी भीगी तो कभी नहीं थी.
सीमा चाय ले कर जैसे ही आई, मेरा फोन बज उठा. सीमा ने स्टूल पर मेरे रखे कप में चाय दी. मैं ने फोन उठाया. विनीता दीदी का फोन था. बेचैन सी दीदी मेरे ‘हेलो’ कहते ही रोने लगी, ''बिट्टू, क्यों घबरा गए, बच्चे, ठीक हो जाओगे. देखो, वैक्सीन ली है न फर्स्ट डोज, इतनी हालत नहीं बिगड़ेगी. घबराना मत... और डिप्रेशन तो बिलकुल नहीं होना चाहिए,’’ उन की आवाज सुन कर मुझे फिर रोना आ गया. आजकल यही हो रहा है, रोना चाहता नहीं, पर रोना आता रहता है. इतना तो शायद मैं कभी जीवन में नहीं रोया, जितना कोरोना की इस तकलीफ में रोया हूं, कारण भी कितने हैं रोने के... कोई सोच सकता है इतनी बड़ी जिम्मेदारी पर काम करने वाला इनसान बेबस हो कर इतना रो भी सकता है.