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उम्मी भावुक हो उठी थी. आखिर क्यों होता है ऐसा? उस की हर इच्छाअनिच्छा का ध्यान रखने वाला सहृदय प्रेमी, ब्याह के कुछेक महीनों में ही क्यों बदल गया? पहले तो कांटे की सी नुकीली चुभन भी उसे रक्तरंजित करती, तो उस पर स्नेह का लेप लगा कर, समूल नष्ट करने का प्रयास करता था नागेश और अब उस की हृदयभावना से भी अनभिज्ञ रहता है. तभी उम्मी के मन में एक कुविचार कौंधा कि यह भी तो हो सकता है कि नागेश उसे अब प्यार ही न करता हो. तभी तो प्रशंसा के दो शब्द भी नहीं निकलते कभी उस के मुंह से. प्रशंसा के दो शब्द कहने में शब्दों के कलेवर ही तो चढ़ाने होते हैं. उसे महसूस होने लगा कि नागेश का कहा हुआ हर वाक्य निरर्थक था, निराधार था. सबकुछ झूठ था, मिथ्या था मृगमरीचिका सा. न जाने कब तक विचारों के भंवरजाल में फंसी रही थी वह.

नागेश को गए हुए 2 घंटे हो गए थे. उम्मी के दिल का आवेश अब थम गया था. उसे चिंता सताने लगी थी कि नागेश को गए हुए काफी समय बीत चुका है. दूध की थैलियां तो नुक्कड़ वाली दुकान पर ही मिल जाती हैं. अब तक तो उसे लौट आना चाहिए था. दूसरे ही पल, विचार कौंधा कि अच्छा ही है कुछ देर और बाहर रहे, नहीं तो फिर कोई बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. ब्याह के बाद 6 महीनों का वृत्तांत क्रम से साकार हो उठा था.

सूरज की तेज रोशनी एक बार फिर बादलों के पीछे छिप गई थी. चारों ओर गहरा अंधेरा पसरने लगा था. गली में इक्कादुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि कहां चला गया होगा नागेश? कहीं कोई अनहोनी न घट गई हो? रोज अखबार अजीबोगरीब वारदातों से रंगा रहता है. क्रोध के आवेश में इंसान कुछ भी कर सकता है. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. कहीं नागेश घर छोड़ कर तो नहीं चला गया? पर ऐसा भी वह क्यों करेगा. यह घर तो उस का है? वह तो घर का पोषक है.

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