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उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. बाहर का दरवाजा खोल कर वह दूध की बोतलें उठाने के लिए लपकी तो वहां से बोतलें नदारद थीं.

बदहवास सी उम्मी ने नागेश को पुकारा, ‘‘अब चाय कैसे बनेगी? चौकीदार दूध तो दे कर ही नहीं गया?’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? सुबह घंटी बजने की आवाज तो मैं ने खुद ही सुनी थी,’’ नागेश अपनी जगह से हिला न डुला, पूर्ववत बैठे हुए बोला.

अब चिल्लाने की सी आवाज में उम्मी बोली, ‘‘एक बार उठ कर तो आइए. पड़ोस वाले दीपकजी से पूछ लेते हैं. कहीं ऐसा न हो, दूध की गाड़ी ही न आई हो?’’

‘‘तुम भी कमाल करती हो. जब मैं कह रहा हूं, बोतलों की आवाज मैं ने अपने कानों से सुनी है, तो मानती क्यों नहीं?’’

नागेश झल्लाता हुआ हाथ में अखबार लिए ही मुख्यदार तक पहुंच गया. दरवाजा खोलते ही उस का सामना, पड़ोस में रहने वाले दीपकजी से हो गया. वे सुबह की सैर से वापस लौटे थे. उम्मी और नागेश ने पूछताछ की तो उन्होंने झट से इस बात की पुष्टि कर दी कि दूध की बोतलें तो उन्होंने यहीं रखी देखी थीं और चौकीदार को घंटी बजाते हुए भी देखा था.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, कोई राहगीर बोतलें उठा कर ले गया हो?’’ उन्होंने प्रश्नसचूक दृष्टि से दोनों पतिपत्नी को घूरा, फिर वे अपने घर के अंदर घुस गए.

अब तो उम्मी रोंआसी हो उठी, ‘‘कैसेकैसे चोर बसते हैं इस जमाने में? छोटी सी चीज के लिए भी उन की नीयत बिगड़ते देर नहीं लगती. अब चाय कैसे बनेगी?’’

‘‘कुसूर लोगों का नहीं, तुम्हारा है. और देर से उठो. एक दिन कोई पूरा घर ही बुहार कर ले जाएगा,’’ नागेश झुंझला उठा था.

‘‘तुम भी कमाल करते हो. देर से मैं उठी या तुम ने ही नहीं उठने दिया? मैं तो सोच रही थी…पूरा हफ्ता घड़ी दो घड़ी भी तुम से बोलनेबतियाने का मौका नहीं मिलता. आज छुट्टी के दिन कुछ देर बैठ कर बातें करते हैं. मुझे क्या मालूम था?’’ उम्मी का गला अवरुद्ध हो उठा.

उधर नागेश का आवेग अभी भी कम नहीं हुआ था, ‘‘बातचीत का यह मतलब तो नहीं कि रोजमर्रा के काम न किए जाएं,’’ कहते हुए उस ने मुख्यद्वार भीतर से बंद कर लिया और अखबार पर नजर गड़ाने की असफल सी चेष्टा करने लगा.

हैरानपरेशान सी उम्मी सोचने लगी, ‘क्या यह वही नागेश है जिस ने कुछ समय पहले उसे अपनी पलकों में कैद कर के रखा हुआ था. बात का बतंगड़ बने, इस से पहले ही उस ने स्थिति को संभालने का प्रयास किया, ‘‘चलो, जो हो गया सो हो गया. अब बाजार जा कर दूध की एक थैली ले आओ. तब तक मैं चाय का पानी चढ़ा देती हूं.’’

‘‘सप्ताह में एक छुट्टी मिलती है, उस दिन भी एक न एक काम पकड़ा ही देती हो तुम. हर समय तुम्हारे आगेपीछे घूमता रहूं, बस, यही चाहती हो न तुम?’’ नागेश की आवाज में तल्खी आ गई थी.

उम्मी ने लाख बात टालनी चाही, पर नागेश तो जैसे इसी बात पर तुला था कि उम्मी को समझा कर ही दम लेगा. एक ही झटके में उस ने पत्नी द्वारा अब तक किए सभी नएपुराने नुकसानों का कच्चाचिट्ठा खोल कर रख दिया.

अकारण ही पति के बदले हुए तेवर देख कर उम्मी का पारा भी सातवें आसमान पर चढ़ गया था. कुछ देर पहले पति के प्रति उपजी सहानुभूति और प्रेम की लहर न जाने कहां विलुप्त हो गई, अपने अंदर उठती क्रोध की लहरों को उस के लिए भी रोकनाछिपाना मुश्किल हो उठा जैसे, बोली, ‘‘दूसरे के काम में मीनमेख निकालना सभी को आता है. एक दिन खुद को करना पड़े तो आटेदाल का भाव मालूम हो जाए.’’

उम्मी धीरेधीरे बड़बड़ाती रही कि गलती आखिर इंसान से ही होती है, और आज तो मेरी गलती भी नहीं थी. एक बार उस ने नागेश को फिर से चेतावनी दी, ‘‘दूध लाओगे तो चाय बना दूंगी वरना यों ही बैठे रहो.’’

‘‘तुम्हारे जैसी फूहड़ और बदजबान बीवी होगी तो यही होगा. कोई काम तुम्हारी मां ने सही तरीके से करना सिखाया भी है तुम्हें?’’

औरत कुछ भी बरदाश्त कर सकती है लेकिन मायके की तौहीन बरदाश्त नहीं कर सकती. उस के मुंह से मानो ज्वालामुखी फट पड़ा, ‘‘मां के घर थाली हाथ में मिलती थी, काम करने वाले नौकर थे. यहां की तरह नहीं, सुबह 6 बजे से ही खड़खडि़या बंध जाती है पैरों में.’’

‘‘तो ले आतीं न 2-4 को अपने साथ. अकेली ही क्यों चली आईं?’’ पत्नी के ताने पर नागेश भी तिलमिला उठा था.

‘‘नौकर मुफ्त में काम नहीं करते, पगार भी देनी पड़ती है उन्हें.’’

‘‘तुम्हारी फरमाइशें कम हों तो 4 पैसे बचें न.’’

नागेश ने अपनी तरफ से तो बात धीरे से कही थी, पर उम्मी ने सुन लिया था. उस का आवेश अब और बढ़ गया, ‘‘क्या मांग लिया तुम से मैं ने? कितने दिनों से गैस का चूल्हा ले कर देने को कह रही हूं. रोज आजकलआजकल कहते रहते हो. मेरी बहनों को देखो, क्या नहीं है उन के पास? टीवी, फ्रिज, वीसीआर, यहां तक कि गाड़ी भी है. मेरी तरह घुटघुट कर नहीं जीतीं, मजे से सैरसपाटा करती हैं.’’

‘‘तो कमाओ न, कमाती क्यों नहीं? पूरा दिन सहेलियों से गपें मारती रहती हो,’’ नागेश ने अपना तर्क दिया.

इस पर उम्मी बिफर उठी, ‘‘कौन सी सहेलियां हैं मेरी? जो थीं, वे भी कभी अच्छी नहीं लगीं तुम्हें.’’

पत्नी की जवाबदेही पर नागेश बौखला उठा. जैसे सारे शब्द ही चुक गए थे उस के. फिर भी पीछे हटना उस की शान के खिलाफ था. बोला, ‘‘ढंग से खर्च करो. तुम्हारी बहनें तुम्हारी तरह खर्चीली नहीं हैं,’’ कह कर वह बड़बड़ाता हुआ घर से बाहर निकल गया.

दरवाजा बंद होने और स्कूटर स्टार्ट होने की आवाज से उम्मी जान चुकी थी कि नागेश जा चुका था. गुस्से में आ कर उस ने भी पास ही पड़े स्टूल को दीवार पर दे मारा. फिर आरामकुरसी पर धम्म से बैठ गई. बिलकुल उस योद्धा की तरह जो कुछ ही समय पहले युद्धस्थली से हार कर लौटा हो. आंखों से छलक आए आसुंओं को उस ने साड़ी के पल्लू से पोंछा और लगी भुनभुनाने कि न जाने क्या समझता है खुद को नागेश. 3 हजार रुपल्ली कमा कर, जैसे कहीं का बादशाह बन बैठा हो. कितने पैसे होते हैं मेरे पर्स में, जो कह रहा है कि मैं उड़ा देती हूं? मानअपमान की तो जैसे कोई भाषा ही नहीं, जो मुंह में आया, बस कह दिया.

उस की आंखें छलछला आईं. क्या यही सब पाने के लिए नागेश से विवाह किया था उस ने. मातापिता, भाईबहनों तक से विरोध किया था उस ने. बस, यही सोचती रही थी कि नागेश के सान्निध्य में उसे दुनिया की हर खुशी मिल जाएगी, पर कहां हुआ ऐसा? वैसे, तब नागेश ऐसा नहीं था. उस की बंद आंखों में नागेश के साथ गुजारी वे सुनहरी शामें उतरने लगी थीं जब दोनों प्रेमी घंटों नदी के किनारे बैठ कर सुनहरे सपनों के महल सजाते थे. एक बार उस ने नागेश से पूछा था कि नागेश, प्रेम की परिभाषा क्या होती है?

इस पर उस ने बताया था कि प्रेम की सही परिभाषा है, खुश रहना, हृदय से हृदय तक एकदूसरे की बात को बिना कहे ही समझ लेना. भावनाओं में आत्मसात हो जाना. स्वयं से अधिक अपने प्रिय को चाहना, यही प्रेम की परिभाषा है.

उम्मी आत्मविभोर हो उठती थी तब, जब नागेश कहता था कि सही रूप में प्रेम तभी पैदा होता है जब 2 युवामन एक छत के नीचे रहते हों.

पर ऐसा कब हुआ? जिंदगी तो गृहस्थी के चक्कर में फंस कर रह गई. पूरा हफ्ता वह इसी प्रतीक्षा में रह जाती है कि कब नागेश की छुट्टी हो और वह कुछ पल उस के साथ बिताए, पर कुछ समय बाद झगड़ा हो ही जाता है. विशेषरूप से छुट्टी के दिन तो ऐसा अवश्य होता है. कभी सब्जी में नमक ज्यादा पड़ गया तो किचकिच, कभी कमीज के बटन लगाना भूल गई तो चिड़चिड़ाहट, और क्या कहे? कहीं घर से बाहर घूमने जा रहे हों और उम्मी को तैयार होने में जरा सा विलंब हो जाए तो भी नागेश झल्लाने लगता. ऐसे में हीलहुज्जत, हारमनुहार सभी बातें बेकार हो जातीं.

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