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‘‘सीमा, यह वंदना दिनेश साहब के साथ कहां गई है?’’ बगल से गुजर रही सीमा से समीर ने विचलित स्वर में प्रश्न किया.‘‘मुझे नहीं मालूम, समीर. वैसे तुम ने यह सवाल क्यों किया?’’ सीमा के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान उभरी.

‘‘यों ही,’’ कह कर समीर माथे पर बल डाले आगे बढ़ गया. सीमा मन ही मन मुसकरा उठी. वंदना के सिर में दर्द था, भोजनावकाश में यह उस के मुंह से सुन कर वह सीधी दिनेश साहब के कक्ष में घुस गई.

‘‘सर, आज शाम वंदना को आप अपने स्कूटर से उस के घर छोड़ देना. उस की तबीयत ठीक नहीं है,’’ उन से ऐसा कहते हुए सीमा की आंखों में उभरी चमक उन की नजरों से छिपी नहीं रही.

‘‘सीमा, तुम्हारी आंखें बता रही हैं कि तुम्हारे इस इरादे के पीछे कुछ छिपा मकसद भी है,’’ उन्होंने मुसकरा कर टिप्पणी की.

‘‘आप का अंदाजा बिलकुल ठीक है, सर. आप के ऐसा करने से समीर ईर्ष्या महसूस करेगा और फिर उसे सही राह पर जल्दी लाया जा सकेगा.’’

‘‘यानी कि तुम चाहती हो कि समीर वंदना और मेरे बीच के संबंध को ले कर गलतफहमी का शिकार हो जाए?’’ दिनेश साहब फौरन हैरानपरेशान नजर आने लगे.

‘‘सर, घबराइए मत. आप को ऐसा दर्शाने का सिर्फ अभिनय करना है. वंदना के साथ कुछ नहीं करना पड़ेगा आप को. बस, समीर को दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होना चाहिए जैसे वंदना और आप दिनप्रतिदिन एकदूसरे के ज्यादा नजदीक आते जा रहे हो. उस के दिल में ईर्ष्याग्नि भड़काने की जिम्मेदारी मेरी होगी.’’

‘‘कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए?’’

‘‘कुछ नहीं होगा, सर. मैं ने इस योजना पर खूब सोचविचार कर लिया है.’’

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