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‘‘सीमा की बातों पर ध्यान न देना, वंदना. तुम्हारी और मेरी ही शादी होगी...जल्दी ही मैं उचित माहौल बना कर तुम्हें अपने घरवालों से मिलाने ले चलूंगा. अभी जल्दी में हूं क्योंकि बाहर मांपिताजी टैक्सी में बैठे इंतजार कर रहे हैं मेरा. कल मिलते हैं, बाय,’’  किसी और से बिना एक भी शब्द बोले समीर तेज चाल से चलता हुआ कक्ष से बाहर निकल गया. उस के यों चले जाने से सब को ही ऐसा एहसास हुआ मानो वह वहां से उन सब से पीछा छुड़ा कर भागा है. ओमप्रकाश और महेश रोतीसुबकती वंदना को चुप कराने के प्रयास में जुट गए. सीमा क्रोधित अंदाज में समीर को भलाबुरा कहती लगातार बड़बड़ाए जा रही थी.

सीमा के अत्यधिक गुस्से की जड़ में उस के अपने अतीत का अनुभव था. विनोद नाम के एक युवक से उस का प्रेमसंबंध 3 वर्षों तक चला था. कभी उस का साथ न छोड़ने का दम भरने वाला उस का वह प्रेमी अचानक हवाई जहाज में बैठ कर विदेश रवाना हो गया था. उस धोखेबाज, लालची व अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी इंसान को विदेश भेजने का खर्चा उस के भावी ससुर ने उठाया था. यह दुखद घटना सीमा की जिंदगी में 2 वर्ष पूर्व घटी थी. वह अब 28 वर्ष की हो चली थी. विनोद की बेवफाई ने उस के दिल  को गहरा आघात पहुंचाया था. अपने सभी हितैषियों के लाख समझाने के बावजूद उस ने कभी शादी न करने का फैसला अब तक नहीं बदला था. समीर की राजेशजी की लड़की देखने जाने वाली हरकत ने उस के अपने दिल का घाव हरा कर दिया था. वंदना को वह अपनी छोटी बहन मानती थी. अपनी तरह उसे भी धोखे का शिकार होते देख उसे समीर पर बहुत गुस्सा आ रहा था. कुछ देर बाद वंदना के आंसू थम गए. फिर उदास खामोशी ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. भोजनावकाश तक इस उदासी की जगह क्रोध व कड़वाहट ने ले ली थी. यह देख कर उस के तीनों सहयोगियों को काफी आश्चर्य हुआ.

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