35 वर्षीय विनायक अपनी पत्नी रंभा से तलाक लेने के बाद बिलकुल अकेला हो गया था. 5 साल पहले उस ने सरकारी अस्पताल में कार्यरत नर्स रंभा से प्रेमविवाह किया था, तभी से उस के अधिवक्ता पिता ने विनायक को अपनी चलअचल संपत्ति से बेदखल कर दिया था. साथ ही उस से पारिवारिक संबंध भी तोड़ लिया था. तब भी विनायक पितृसत्ता के आगे नतमस्तक नहीं हुआ. उस ने अपनी सच्ची लगन, कड़ी मेहनत और अपनी प्रतिभा के बल पर बैंक कंपीटिशन कंप्लीट किया और एक सरकारी बैंक में कर्मचारी के रूप में अपनी जगह पक्की कर ली. उस के बाद रंभा के साथ उस की जिंदगी की गाड़ी दौड़ने लगी थी.
नौकरी मिलने के बाद विनायक अपनी पत्नी रंभा पर कम और अपने कैरियर पर ज्यादा ध्यान देने लगा था. बावजूद दोनों रात में घर पर ही रहते और सुखमय दांपत्य जीवन का आनंद लेते थे. दोनों के बीच किसी तरह का गिलाशिकवा नहीं था. मजे में उन का हसीन सपना परवान चढ़ रहा था. लेकिन कब दोनों के मन में अमर्यादित शंका का बीज अंकुरित होने लगा पता ही न चला.
रंभा कुछ माह से इमरजैंसी वर्क का बहाना बना कर नाइट ड्यूटी में ही रहती थी. वह घर नहीं लौटती थी, जिस से विनायक की रातों की नींद हराम हो गई थी. जब विनायक को इस की सचाई मालूम हुई तो एकाएक उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. पत्नी की दगाबाजी पर वह क्या करे, उस को समझ नहीं आया.
सरकारी अस्पताल में रंभा की ऊपरी कमाई ज्यादा थी. बावजूद वह पैसे के लिए किसी भी हद तक गिर सकती थी. इस बात को ले कर अकसर दोनों में तकरार होने लगी थी. नाइट ड्यूटी जाने पर उसे भलाबुरा बोल देता. इस तरह धीरेधीरे दोनों के बीच दूरियां इतनी बढ़ गईं कि एक दिन तलाक तक की नौबत आ गई.
रंभा से तलाक लेने के बाद विनायक की स्थिति सांपछछूंदर सी हो गई. अब वह न घर का था न घाट का. उस के प्रेमविवाह के निर्णय पर घर वाले अलग खरीखोटी सुनाते थे तो इधर तलाकशुदा रंभा भी यह कह कर ताना मारती कि कोई परित्यक्ता युवती की कौन कहे, अब तो कोई विधवा भी घास नहीं डालेगी.
अब विनायक को महिलाओं से नफरत सी हो गई थी. किसी भी युवती में उसे रंभा का रंग, रूप और आचरण दिखाई पड़ता. वह उन से कटाकटा रहने लगा. अपने औफिस में भी उन से दूरियां बना कर रखता. जरूरत पड़ने पर वह मात्र औपचारिकताएं निभाता. रंभा द्वारा दिए गए आर्थिक, सामाजिक और मानसिक आघात से वह उबर नहीं सका था. जितनी बार उबरना चाहता रंभा की परछाइयां उस का पीछा करती रहतीं. अड़ोसपड़ोस के सामाजिक सरोकार से भी वह बिलकुल कट सा गया था. घर से औफिस जाना और वापसी के बाद अपने कमरे में बंद हो जाना, यही उस की नियति बन गई थी.
एक दिन विनायक की बूआ उस से मिलने आईं और कहा, ‘‘बिना बहू के तुम्हारा घर सूनासूना लगता है. मेरी सहेली की एक बेटी है, जो लाखों में एक है. तुम दोनों की जोड़ी खूब जमेगी, जो मांगोगे वह छप्पर फाड़ कर देगी. बोलो, पहले लड़की दिखा दूं या सहेली के घर चलेगा?’’
‘‘मैं ऐसे ही ठीक हूं. अब मुझे शादीविवाह के झमेले में नहीं पड़ना है. तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम अपने काम से मतलब रखो.’’
‘‘अरे भतीजे, बिना बीवी के यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे कटेगी? तेरा वंश कैसे चलेगा? इस पर भी तो सोचो.’’
‘‘कह दिया न कि शादी नहीं करनी है तो नहीं करनी है. सभी लड़कियां एक सी होती हैं, बिलकुल रंभा की तरह.’’
‘‘दूध का जला छाछ फूंक कर पीता है. तेरा सोचना बिलकुल सही है. लेकिन मेरे प्रस्ताव पर एक बार अवश्य विचार करना. अब चलती हूं,’’ इतना कह कर बूआ अपने घर चली गई.
आज विनायक के पास अपना फ्लैट और बैंक बैलेंस था. तलाक के 2 साल बाद उस के व्यवहार और आचरण में काफी बदलाव आया था. समाज के लोगों की नजरों में वह ईमानदार और विश्वासपात्र व्यक्ति था. बूआ के जाने के बाद भी शादी के कई प्रस्ताव आए. इसलिए कि विनायक नौकरीपेशा व्यक्ति था, लेकिन उस ने सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया था.
एक दिन वह औफिस जाने के लिए अपने शहर के नुक्कड़ पर पहुंचा और बस के इंतजार में खड़ा हो गया. तभी वहां एक दुर्घटना घट गई…
एक तेज रफ्तार बाइक और एक ट्रक में जोरदार टक्कर हो गई. लहूलुहान हो कर बाइकसवार सड़क पर गिर कर छटपटाने लगा जबकि दुर्घटना के बाद चालक ट्रक से कूद कर फरार हो गया. घटना के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. कुछ लोग घायल की अपने मोबाइल से वीडियो बनाने लगे. वहीं कुछ खड़े लोग घायल की छटपटाहट का तमाशा देख रहे थे.
लेकिन विनायक को घायल की तड़प और छटपटाहट देखी नहीं गई. मौत के भय से उस का कलेजा कांप गया. अचानक उस ने एक वाहन को रोका और छटपटा रहे युवक को फौरन ले कर पास के अस्पताल में भर्ती कराया. उस के बाद वह अपनी ड्यूटी पर चला गया.
बैंक बंद होने के बाद विनायक अपने घर वापस जा रहा था कि तभी उस के मन में विचार आया कि अस्पताल जा कर घायल का हालचाल पूछ ले. जब वह अस्पताल पहुंचा तो देखा कि बैड पर घायल युवक मृत पड़ा हुआ था. बगल में उस की पत्नी और बेटी रोरो कर बेजार हुई जा रही थीं. कोई उन का आंसू पोंछने वाला भी नहीं था. मानवता को शर्मसार करने वाले उस दृश्य को देख कर उस का दिल पिघल गया. उस ने पास बैठ कर मृतक की पत्नी और पुत्री को धैर्य और हौसला रखने की नसीहत दी. कहा, ‘‘जो होना था वह तो हो गया. दुनिया छोड़ कर जाने वाले कभी लौट कर तो नहीं आते, लेकिन उस की यादें सदा हमारे साथ रहती हैं. आप पोस्टमार्टम के बाद मृतक के अंतिम संस्कार की तैयारी करें.
आप मुझे अपने संबंधियों का मोबाइल नंबर दें, उन्हें घटना की सूचना दे कर अस्पताल में बुलाता हूं.’’
‘‘घटना की सूचना सब को है, लेकिन अभी तक कोई आया नहीं, आप हमारी मदद करें,’’ मृतक की पत्नी ने अपनी आंखों से बहते हुए आंसुओं को अपने आंचल से पोंछा और कहा.
‘‘मैं…’’ अचानक वह हकलाया.
‘‘हमारी दुर्दशा आप देख रहे हैं, कृपया हमारी सहायता करें,’’ दीनहीन भावना से मृतक की पत्नी ने उसे व्याकुल नेत्रों से देखते हुए आग्रह किया.
‘‘ठीक है.’’
मृतक के अंतिम संस्कार के बाद 30 वर्षीय विधवा विमला से विनायक का एक अनाम रिश्ता बन गया. मृतक मनोज विमला का पति था और उस की देह से एकमात्र संतान उस की 16 वर्षीय बेटी वंदना थी.
मनोज शराब के नशे में बाइक चलाने के कारण दुर्घटना का शिकार हुआ. वह अव्वल दरजे का पियक्कड़ था, जिस के कारण उस के संगेसंबंधी और महल्ले के लोग परेशान रहते थे. वह सब के साथ गालीगलौच और मारपीट करता रहता था. मनोज का अव्यावहारिक आचरण उस के सामाजिक बहिष्कार का कारण था. यही वजह थी कि उस की मौत पर भी कोई देखने तक नहीं पहुंचा.
मनुष्य हर वक्त अपने नियमों के बंधन में बंध कर नहीं रह सकता. वह कितना भी अभिमानी और स्वाभिमानी क्यों न हो, लेकिन सामाजिक सरोकार के आगे नतमस्तक हो जाता है. सामने आई किसी विपत्ति से विमुख नहीं हो सकता है. वहां का परिवेश और परिस्थितियां उसे अपना गुलाम बना लेती हैं. यही स्थिति विनायक के साथ हुई.
महिलाओं से नफरत करने वाला विनायक अचानक बदल गया था. उस के दिलोदिमाग पर विमला को देखने और उस से मिलने का एक नशा सा छा गया. उसे जब भी मौका मिलता, विमला से मिलने उस के घर पर पहुंच जाता था.
लेकिन विमला उस से दूर रहने की कोशिश करती. वह एक तो विधवा दूसरे सामाजिक मर्यादा के भय से स्वाभाविक रूप से मिल नहीं पाती. कोई न कोई बहाना बना कर उसे टरका देती. लेकिन हर बार वह ऐसा नहीं कर पाती. कभीकभी बाजार से लौटते समय विनायक से भेंट हो जाती तो दोनों किसी रैस्तरां में कौफी पी लेते और एकदूसरे का हालचाल पूछ लेते.
औपचारिक मुलाकातों का सिलसिला दोनों के बीच लगभग 2 सालों तक चला. उस के बाद दोनों एक अच्छे मित्र बन गए थे. अब वे अपने दुखसुख को आपस में सांझा करते और हर समस्या का हल अपनी सूझबूझ से निकालते थे.
एक बार विनायक के दिल से आवाज निकली, ‘विमला ही तुम्हारी जीवनसंगिनी बन सकती है. वह तो तुम से प्यार भी करती है. विमला तुम्हारी तलाकशुदा पत्नी रंभा से लाख दरजा नेकदिल और भद्र महिला है.’
विनायक फिर से सोचने लग जाता, ‘कहीं विमला तुम्हारी पत्नी रंभा की तरह अव्यावहारिक और छिछोरी निकली तो जिंदगी बद से बदतर हो जाएगी. खुशी की तलाश में कहीं मुसीबत में न फंस जाओ…’
वहीं दूसरे ही पल उस के दिल ने कहा, ‘नहींनहीं, विमला ऐसा नहीं कर सकती है. उसे वह 1-2 सालों से जानता है, जब उस के पति मनोज की मौत ऐक्सिडैंट में हुई थी. अभी विमला के विचार व व्यवहार में कोई खोट नहीं है. वह हमेशा रंभा की तुलना में गंभीर और शालीन लगती है.’
विनायक फिर सोचने लगा, ‘अभी तक जवान विमला के शादी नहीं करने की वजह उस की बेटी वंदना हो सकती है. शायद वह उस की शादी के बाद ही अपने बारे में कुछ सोचे.’
जब वंदना अपने घर पहुंची तो देखा कि उस की मां सोफे पर बैठे बैंक वाले विनायक अंकल से हंसहंस कर बातें कर रही थी. सामने ड्रैसिंग टेबल पर एक तश्तरी में कुछ नमकीन और बगल में चाय के 2 कप रखे हुए थे. चाय पीने के बाद थोड़ी सी चाय बची हुई थी.
यह सब देख कर पता नहीं क्यों उसे अच्छा नहीं लगा. वह बिना कुछ बोले चुपचाप अपने कमरे में चली गई. हालांकि वंदना को अपने कमरे में जाते हुए देख कर उस की मां विमला और विनायक पर कोई असर नहीं पड़ा. वे पहले की भांति अपनी बातें जारी रखे हुए थे.
वंदना को अपने घर में विनायक अंकल का आना और उस की मां से बातें करना बिलकुल पसंद नहीं था. उस को लगता था कि उस की मां अंकल के प्यार के झांसे में आ कर उस से दूर होती जा रही है. वह दिनरात अपनेआप में खोई रहती. उसे लगता कि मां को यह भी भान नहीं कि घर में एक जवान बेटी शादी योग्य है.
वंदना अपने कमरे में खड़ीखड़ी इन्हीं बातों में तल्लीन थी कि तभी वहां उस की मां आ गई और तल्ख आवाज में बेटी को नसीहत देने लगी, ‘‘यह क्या बदतमीजी है? घर आए मेहमान से हैलोहाय भी नहीं. जैसेजैसे तेरी उम्र बढ़ती जा रही है, वैसेवैसे तेरी अक्ल घास चरने लगी है. आगे तू क्या करेगी मुझे नहीं पता.’’
‘‘कौन सा मेहमान, जो रोज तुम से मिलने आता है. ऐसे लोग मुझे नहीं भाते. वैसे लोगों से दूर रहना ही बेहतर है, जो औरतों और लड़कियों को घूरते रहते हैं,’’ वंदना ने अपने गुस्से पर काबू रखते हुए शांत स्वर में जवाब दिया.
‘‘तू मर्यादा की हदें पार कर रही है. 2 पैसे कमाने क्या लगी है, मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगी है. वे दिन भूल गई जब ऐक्सिडैंट में तेरे पिता की मौत हो गई थी और आगेपीछे देखने वाला कोई नहीं था, अपनेपराए सभी दरकिनार हो गए थे. उन विषम परिस्थितियों में विनायक बाबू ने हमारी आर्थिक, मानसिक और सामाजिक मदद की थी, वरना हमारा अस्तित्व ही मिट गया होता और तू ऐसे व्यक्ति पर चरित्रहीनता का लांछन लगा रही है.’’ इतना बोलतेबोलते विमला की आंखें भर आईं और वह रोने लगी.
‘‘इस एहसान के पीछे जरूर कोई रहस्य होगा. आज के युग में कोई ऐसे ही किसी की मदद नहीं करता. आसपड़ोस में तेरी कितनी इज्जत है, अपने किसी शुभचिंतक से पूछ लो,’’ वंदना गुस्से में बोली.
‘‘अरे बेरहम लड़की, मुझ पर थोड़ा सा रहम तो कर. कोई और बोले या न बोले, लेकिन तू मुझे नंगा करने पर तुली है.’’
‘‘तुम मुझे चुड़ैल कहो चाहे भूतनी, मुझे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. मैं तुम्हारी स्त्रीत्व की रक्षा करना चाहती हूं. अगर लोगों की जबान बंद करना चाहती हो तो विनायक अंकल से शादी कर लो. वह भी तो तलाकशुदा हैं. अभी तुम्हारी उम्र 34-35 के आसपास होगी यह उम्र विधवा की जिंदगी जीने के लिए नहीं होती. तुम दोनों की शादी से मुझे काफी खुशी होगी,’’ इतना कहने के बाद वंदना अपने कमरे से बाहर निकल गई.
वंदना का जवाब सुन कर विमला की बोलती बंद हो गई. वह कमरे से बाहर निकलती वंदना को आश्चर्य से देखती रह गई. थोड़ी देर पहले मांबेटी के बीच जो विषम स्थिति बनी हुई थी वह बदल कर कुछ हद तक सकारात्मक हो गई थी. विमला सोचने लगी, ‘घर में जवान बेटी के रहते वह विनायक बाबू से कैसे विवाह कर सकती है. अगर शादी हुई भी तो जगहंसाई के सिवा उस के हाथ में क्या आएगा? वह कोई अच्छा लड़का देख कर पहले वंदना की शादी कर देगी. उस के बाद अपने बारे में सोचेगी.’
वह यही सब सोच रही थी कि तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. उस ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने खड़े एक युवक को देख कर दंग रह गई. युवक का सौम्य चेहरा और व्यक्तित्व काफी आकर्षक था.
‘‘मैं वंदना की मां से मिलने आया हूं,’’ उस युवक ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘मैं ही हूं उस की मां, आप कौन हैं?’’
‘‘मैं रौशन. वंदना के साथ काम करता हूं. बैठने को नहीं बोलेंगी क्या आंटी?’’
‘‘ओह, तुम ही रौशन हो. अंदर आओ बेटा. वंदना अकसर तुम्हारी चर्चा करती है,’’ प्रसन्नता के साथ विमला उसे अंदर ले आई और रौशन को ड्राइंगरूप में बैठाया. फिर उस से बोली, ‘‘बैठो बेटा, चाय बना कर लाती हूं.’’
‘‘आप बैठिए न, वंदना चाय बना कर लाएगी.’’
‘‘नहीं बेटा, वह घर में नहीं है, शायद बाजार गई होगी.’’
‘‘शायद क्यों? बता कर नहीं गई है क्या? यह तो गलत बात है.’’
‘‘फोन कर के देखो न बेटा, वह कहां है?’’
‘‘ठीक है, उस से बात करता हूं.’’
रौशन ने वंदना को फोन किया और बोला, ‘‘जल्दी घर पहुंचो, तुम्हें देखने के लिए मैं अपने मातापिता के साथ आया हूं.’’
‘‘इंतजार करो, बस घर पहुंचने वाली हूं,’’ जवाब दे कर उस ने फोन काट दिया.
विमला थोड़ी देर बाद चाय ले कर लौटी और टेबल पर रख कर उस के सामने वाली कुरसी पर बैठ गई.
‘‘चलो, अब चाय पी लो, बेटा. और बताओ तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं?’’ विमला ने उत्सुकता से पूछा.
चाय की चुसकियां लेते हुए रौशन ने कहा, ‘‘मेरा परिवार छोटा है. 3 भाईबहनों में मैं सब से छोटा हूं. मेरी बड़ी बहन अनिता और उन से छोटी बहन सुनीता शादीशुदा हैं, जो अपनेअपने ससुराल रहती हैं. मेरी मां ममता गृहिणी हैं, जबकि मेरे पिता स्कूल में शिक्षक हैं.’’
तभी वंदना घर लौटी. उस के साथ विनायक, रौशन के मातापिता और दोनों बहनें भी थीं. विमला एकसाथ अपने घर में इतने मेहमानों को देख कर खुशी से झूम उठी. उस ने सभी का अभिवादन किया. तभी कुछ लोग फल, मिठाइयां, कपड़े, जेवरात आदि के पैकेट्स अंदर रख गए. यह सब देख कर विमला अजमंजस में थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक यह सब क्या हो रहा है. तभी विनायक बोल पड़े, ‘‘आज वंदना और रौशन की रिंग सेरेमनी है.’’
सहसा रौशन की मां ममता ने वंदना को अपने गले से लगा लिया और अपने साथ लाए कपड़े देती हुई बोलीं, ‘‘वंदना बेटी, जल्दी तैयार हो कर आओ, रिंग सेरेमनी का वक्त हो गया है.’’
‘‘हांहां, जल्दी आओ बेटी,’’ रौशन के पिता ने भी आग्रह किया. वंदना कपड़े ले कर अपने कमरे में चली गई. थोड़ी देर के बाद जब आकर्षक ड्रैस में बाहर निकली तो सभी उसे एकटक निहारते रहे गए.
तभी रौशन आगे आया और रिंग बौक्स खोल कर अंगूठी निकाली और वंदना को पहनानी चाही.
‘‘ठहरो रौशन, अभी हमारी रिंग सेरेमनी नहीं हो सकती,’’ वंदना 2 कदम पीछे हटते हुए बोली.
‘‘अरे बेटा, अचानक तुम्हें क्या हो गया? यह तो घर आए मेहमानों का अपमान है,’’ विमला ने नाराजगी जताते हुए वंदना से कहा.
‘‘हां बेटी, रस्म अदायगी पूरी करो, हम बड़े अरमान ले कर तेरे पास आए थे, आखिर रौशन में क्या कमी है?’’ ममता ने गंभीरता के साथ अपनी बात रखी.
‘‘कोई परेशानी हो तो बताओ वंदना, हम उस का समाधान निकालेंगे. निस्संकोच बोलो,’’ इस बार रौशन ने वंदना का हौसला बढ़ाया और कहा, ‘‘वंदना, दिल में छिपे गुब्बार को बाहर निकालो, दबाने से मर्ज बढ़ता है, मुझे लगता है कि तुम विनायक अंकल और अपनी मां के बारे में कुछ कहना चाहती हो?’’
‘‘हां, तुम ठीक समझे रौशन. पहले मां और अंकल की शादी करना चाहती हूं. पहले इन दोनों की रिंग सेरेमनी हो जाए, उस के बाद हम दोनों की होगी.’’
‘‘बहुत सुंदर फैसला. जितनी प्रशंसा की जाए कम है,’’ खुशी का इजहार करते हुए रौशन की मां और पिता ने पास आ कर वंदना की पीठ थपथपाई. साथ ही ममता ने अपनी ममता लुटाते हुए सिर ?ाका कर खड़ी विमला को बांहों में भर लिया और सूनी मांग को चूम कर बोली, ‘‘रौशन बेटा, आंटी को अंगूठी दो और विनायक बाबू अपना दाहिना हाथ आगे कीजिए.’’
‘‘लेकिन…’’ विमला हिचकिचाहट के साथ बोली.
‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, इस कार्य में विलंब कैसा विमला बहन, अंगूठी पहनाओ.’’
विमला ने विनायक की उंगली में जैसे ही अंगूठी पहनाई, सभी लोगों ने तालियां बजाईं और फूलों की वर्षा की.
‘‘वंदना की शादी के बाद तुम बिलकुल अकेली हो जाओगी बहन, इसलिए विनायक बाबू से शादी कर सुखमय जीवन का आनंद उठाओ. हमारी शुभकामनाएं और बधाइयां स्वीकार करो,’’ हर्ष व्यक्त करते हुए ममता ने कहा.
इधर रिंग सेरेमनी के बाद रौशन ने अपने सास और ससुर का आशीर्वाद लिया. वहीं जब वंदना ने ?ाक कर अपने माता और पिता का आशीर्वाद लिया तो विमला ने गीली आंखों से उसे देखा और अपने गले से लगा लिया. बेटी की जिंदादिली पर उस का रोमरोम प्रफुल्लित था. उस के दिल ने कहा, ‘बेटी हो तो ऐसी.’