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‘‘जब भी मैं बुलाऊं, तब मेरे बताए टाइम पर मुझ से मिलने आ जाना,’’ रसीली ने शरारती मुसकान से कहा. मंगलू रसीली जैसी औरत के न्योते पर मन ही मन खुश हो रहा था और फिर उस के द्वारा पैदा होने वाला एक बेटा उस की मर्दानगी के अहंकार को पोषित भी कर देगा, यह सब सोच कर वह फूला न समाता था.

मंगलू और रसीली अपनी इसी चर्चा में ही मगन थे कि अचानक वहां पर फौजी शमशेर सिंह आ पहुंचा और रसीली के भरे बदन को ताकने लगा. फौजी को देख मंगलू बिना कुछ बोले अपने रास्ते चला गया और रसीली भी तेज कदमों से अपने घर की ओर भाग गई.

आज खेत से लौटते समय अंधेरा सा होने लगा था. आकाश में काले बादल भी आ गए थे. अचानक से बारिश होने लगी. पास में ही रसीली का घर था. मंगलू ने सोचा कि जब तक बारिश हो रही है, कुछ देर जा कर पनाह ले लूं.

रसीली के ससुर खापी कर सो गए थे. रसीली ने काली साड़ी पहन रखी थी, जिस में से उस का गोरा बदन झलक रहा था और उस पर बारिश की बूंदें रसीली के आकर्षण को और बढ़ा रही थीं. रसीली को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी और वह मंगलू से जा कर चिपक गई.

मंगलू और रसीली के बीच अब कोई परदा न रहा. रसीली की जवानी में मस्त मंगलू बारबार एक लड़के का बाप बनने की सोच से और उत्साहित हो उठता था, जो रसीली को और भी रोमांचित कर जाता था.

बाहर की बारिश थम चुकी थी और 2 जिस्मों का तूफान भी. दोनों की झिझक भी खत्म हो गई थी. उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, वे दोनों जम कर मस्ती करते, पर रसीली बहुत चालाक औरत थी. वह गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती थी, जिस के चलते उसे बच्चा नहीं ठहरता था. वह तो बस मंगलू में अपने अकेलेपन और मौजमस्ती का इलाज ढूंढ़ रही थी.

जब कुछ महीने बीत चले और रसीली ने बच्चा ठहरने की खबर नहीं सुनाई तो मंगलू ने उस से कहा, ‘‘सुन रसीली… महीनों से मैं तुम्हारे घर आ रहा हूं और अनेक बार हम ने जिस्मानी संबंध बनाए हैं, पर अभी तक तुझे बच्चा क्यों नहीं ठहरा?’’

‘‘अरे, अब तुम 40 साल के हो गए हो. अब तुम में 25 साल के मर्द वाली रवानी तो रही नहीं, गांव के और गबरू जवान लड़कों को देखो, जमीन में पैर मार दें तो पानी निकल आए. अब तुम अपनी लटकी शक्ल देख लो. लगता है, 60 साल के हो गए हो.

‘‘अरे, जरा बादाम घोटो, जरा बदन बनाओ, लड़का पैदा करना आसान है क्या…?’’

जब रसीली ने कई बार इस तरह मजाक किया तो मंगलू का मन रसीली से पूरी तरह हटता चला गया. उस ने समझ लिया था कि रसीली एक खूंटे से बंधी रहने वाली गाय नहीं है, बल्कि उसे तो अपनी मस्ती के लिए नएनए आशिक चाहिए.

मन में ऐसा खयाल आते ही मंगलू सीधा गांव के बीच बने पीपल देवता के चबूतरे पर पहुंचा और माफी मांगी कि अब वह फिर कभी रसीली की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखेगा.

जब चबूतरे से मंगलू नीचे उतरा तो अपने सामने फौजी को खड़ा देख चौंक गया.

‘‘नमस्ते फौजी साहब.’’

‘‘नमस्ते… अरे भाई, पीपल देवता से क्या मांग रहे हो? तुम्हारे गांव के बाहर एक बहुत बड़े तांत्रिक आ कर ठहरे हुए हैं, जो हाथ देख कर ही किसी का भी आगापीछा सब बता देते हैं और बदले में कुछ लेते भी नहीं. जाओ, उन से जा कर मिल लो. हो सकता है कि तुम्हारा कल्याण भी उन के हाथों हो ही जाए,’’ फौजी ने अपना ज्ञान बांटा.

मंगलू अंदर से टूटा हुआ था और जब इनसान अंदर से टूटा होता है तो धर्म और तांत्रिकों में उस की दिलचस्पी अपनेआप ही बढ़ जाती है.

मंगलू तांत्रिक से जा कर मिला और जब वापस आया तो उस के चेहरे पर खुशी की हलकी सी रेखा साफ देखी जा सकती थी.

शायद उस तांत्रिक ने मंगलू को खुश रहने की कोई तरकीब बता दी थी, तभी तो वह अपनी पत्नी पर भी बातबात में चिल्लाता नहीं था.

पर मंगलू की यह खुशी ज्यादा दिन तक न रह पाई. एक दिन जब वह शाम ढले घर वापस आया तो उस की पत्नी रोरो कर हलकान हुई जाती थी.

‘‘अरे, क्या हुआ? क्यों रोए जा रही हो?’’

‘‘अरे रमिया के पापा, रमिया को तुम्हारे पास खाना देने को भेजा था. अब शाम होने को आई, पर अभी तक वह लौट कर नहीं आई है. सयानी लड़की है. कहीं कोई ऊंचनीच हो गई तो हम जमाने को क्या मुंह दिखाएंगे.’’

‘‘क्या कहा… रमिया घर नहीं लौटी… अभी जा कर देखता हूं,’’ कह कर मंगलू घर से बाहर निकल गया.

कुछ घंटे बाद पसीना पोंछता हुआ मंगलू अपना मुंह लटका कर वापस आ गया और अपनी पत्नी सरोज से बोला, ‘‘रमिया की मां, लगता है कि रमिया हम लोगों को छोड़ कर कहीं चली गई है. मैं सरपंचजी से भी मिला और गांव के बाकी लोगों को भी इकट्ठा किया और हम सब लोगों ने पूरे गांव में रमिया को ढूंढ़ा, पर रमिया नहीं मिली.’’

रमिया के घर छोड़ कर जाने वाली बात उस की मां को हजम नहीं हो रही थी, पर उस के पास इन बातों को मान लेने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था.

‘‘जब से फौजी ने गांव में आ कर कोठी बनवाई है, तभी से गांव में अजीब हादसे हो रहे हैं,’’ काकी बोल रही थी.

‘‘हां, देखने में भी तो फौजी कितना डरावना लगता है,’’ गांव की दूसरी औरत कह उठी.

‘‘पर सवाल यह है कि रमिया को आसमान खा गया या जमीन निगल गई,’’ बन्नो भाभी बोली.

‘‘मंगलू के खेत में जाते समय किनारे पर जो भुतही तलैया पड़ती है न, उस में कई कुंआरे भूत रहते हैं. हो न हो, उन्हीं कुंआरे भूतों ने रमिया का अपहरण कर लिया है और वे अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करते होंगे,’’ सिबली की शक भरी आवाज आई.

‘‘अरे, मैं तो कहती हूं कि मंगलू से रमिया का ब्याह करते बन नहीं रहा था और फिर रमिया का चक्कर भी तो सरजू के साथ चल ही रहा था न. हो न हो, वह सरजू के साथ भाग गई है,’’ दया की अम्मां बोल रही थी.

रमिया की मां अपनी बेटी के गांव से गायब हो जाने से अंदर तक टूट भी गई थी और कहीं न कहीं उसे भी भुतही तलैया के भूतों पर ही शक था.

एक दिन रमिया की मां ने अपनी दूसरी बेटी श्यामा की कमर की करधन में 2 छोटी घंटियां बांध दी थीं, जिन के बजने से छुनछुन की आवाज आती थी.

‘‘कहते हैं कि कमर में लोहा बंधा हो तो भूत पास में नहीं आते और तुझे भी तो स्कूल आनाजाना रहता ही है, इसलिए ये लोहे की घंटियां तेरी हिफाजत के लिए हैं और फिर ये मुझे तेरी मौजूदगी का अहसास भी देती रहेंगी.’’

बदले में श्यामा सिर्फ मुसकरा दी.

अभी रमिया को गायब हुए 6 महीने भी न बीते थे कि जब एक दिन श्यामा स्कूल गई तो फिर लौट कर नहीं आई.

मंगलू की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. मंगलू भी एक कोने में मुंह छुपाए बैठा था.

गांव के लोग आजा रहे थे और बातें बना रहे थे, हमदर्दी दिखा रहे थे.

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