लेखक-मनोज शर्मा
शैलेश मेज पर दोनों हाथों को मोड़ कर उन पर सिर झुकाए बैठा था. दरवाजे पर आहट सुनते ही उस ने मुंह ऊपर उठाया और दरवाजे की तरफ देखने लगा. बालों को सहेजते हुए बोला, ‘‘कम इन प्लीज.’’
दरवाजा खोल कर मैं अंदर जाते हुए उस के चेहरे की ओर देखने लगा. ‘‘अरे तुम,’’ बोलते हुए अपनी कुरसी पर से उठ खड़ा हुआ और मुसकराते हुए मुझे कुरसी पर बैठने के लिए कहा.
मैं मेज के एक ओर रखी कुरसी पर बैठ गया. टेबल बैल बजाते हुए शैलेश ने चपरासी को बुलाते हुए मुझ से पूछा, ‘‘क्या लोगे दिनेश?’’ मैं ने मुसकराते हुए गरदन दोनों ओर हिला दी.
शैलेश ने आंखों ही आंखों में चपरासी को कुछ निर्देश दिया, फिर चपरासी वहां से लौट गया. ‘‘और कहो, शैलेश. अब तो तुम सहायक प्राध्यापक हो गए हो. सब से पहले तो तुम इस की बधाई लो,’’ मैं ने दोनों हाथों को उस की हथेलियों में रख कर हंसते हुए कहा.
वो मुझे देख कर मुसकराता रहा. ‘‘पर, मैं ये क्या सुन रहा हूं कि तुम ने शादी कर ली. भई, ये बात तो मेरे गले नहीं उतरी... ना बैंड, ना बारात, ना कोई शोरशराबा. बस एकदम से चुपचाप... ये सब कैसे हो गया.’’
चपरासी दरवाजे को ठकठक करता अंदर आ गया और चाय की प्यालियों से भरी ट्रे को मेज पर रख कर खड़ा हो गया. दिनेश के निर्देश पर वो दरवाजे को बंद करता हुआ चला गया.
दिनेश ने मेरी ओर ट्रे खिसकाते हुए चाय उठाने के लिए आग्रह किया. ‘‘यार, तुम ने मटुकनाथ की कहानी सुनी है ना, जिस ने जूली से प्रेमविवाह किया था,’’ वह मुसकरा कर मुझे देखता बोलता रहा.
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