‘‘इस बार फ्लाइट में बहुत कम यात्री हैं,’’ कैप्टन अक्षय चौहान ने हवाई जहाज के कौकपिट में अपनी सीट पर बैठने के बाद अपनी साथी को-पायलट रंजन मेहरा को कहा.
‘‘इस रूट पर काफी कम यात्री होते हैं. अब सर्दियां शुरू हो गई हैं. यूरोप में भयंकर सर्दी पड़ती है. ऐसे मौसम में यूरोप से दक्षिण एशिया के गरम देशों में सैलानी आते हैं, यूरोप कोई नहीं जाता,’’ रंजन के इस लंबे जवाब को सुनते ही कैप्टन अक्षय चौहान ने डैशबोर्ड पर ध्यान से नजर डाली. सब सामान्य था.
‘‘कुल जमा 8 ही यात्री हैं इस बार. पिछले हफ्ते की फ्लाइट भी आधी से ज्यादा खाली थी,’’ चीफ एअरहोस्टेस रीना ने कौकपिट में आ कर कहा.
‘‘मैनेजमैंट इस रूट पर फ्लाइट को बंद क्यों नहीं कर देता,’’ रंजन ने कहा.
‘‘मैनेजमैंट कोई फैसला खुद नहीं ले सकता. फिनलैंड, नार्वे, डेनमार्क आदि कई मंत्रियों, बड़े अफसरों की पसंद की जगहें हैं. कितना भी घाटा हो, इन रूटों पर फ्लाइट चलती रहती हैं.’’
तभी कंट्रोल टावर से टेकऔफ का सिगनल मिला. हवाई अड्डे पर उतरने वाले हवाई जहाज एकएक कर के उतर चुके थे और रनवे पर निर्धारित लेन में नियत स्थानों पर खड़े हो चुके थे.
अब प्रस्थान करने वाले हवाई जहाजों को क्रमवार उड़ान भरनी थी.
‘‘कृपया यात्री अपनी बैल्ट बांध लें. प्लेन टेकऔफ कर रहा है,’’ एअरहोस्टेस ने माइक से एनाउंस किया. प्लेन रनवे पर दौड़ा फिर एक हलका झटका लगा और आकाश में ऊपर उठता अपने गंतव्य की तरफ उड़ने लगा.
स्केनेवाडाई देश कहे जाने वाले फिनलैंड, डेनमार्क और नार्वे उत्तरी अमेरिका और कनाडा के पूर्व में स्थित हैं. यहां साल के बारहों महीने ठंड पड़ती है.
भारत से सीधी उड़ान फिनलैंड और नार्वे तक थी. नार्वे की राजधानी ओस्लो साल में बारहों महीने बर्फ से ढकी रहती है. बर्फ पर स्केटिंग, स्लेज की सवारी और बर्फबारी का आनंद लेने के शौकीन सैलानी यहां आते रहते हैं.
भारत से सप्ताह में एक बार एक ही फ्लाइट आती थी. 18 घंटे का सफर बीच में रूस के ताशकंद से हो कर जाता था. लगभग आधा यूरोप पार करने के बाद ही फिनलैंड आता था.
‘‘यात्री तो आधे भी नहीं मगर खाने के पैकेट पूरे सप्लाई हुए हैं. बचे खाने का क्या करेंगे?’’ किचन में नईनई भरती हुई एअरहोस्टेस ने अपने से सीनियर एअरहोस्टेस रीना से पूछा.
‘‘बचा खाना भी काम आ जाता है. कई बार फ्लाइट कहीं अटक जाती है तब यही खाना काम आता है.’’
‘‘8 ही यात्री हैं. इस से ज्यादा तो क्रू ही है.’’
‘‘कभीकभी एक भी यात्री नहीं होता. सारा प्लेन ही खाली वापस जाता है.’’
‘‘अच्छा, क्या भारत से भी खाली प्लेन रवाना होता है?’’
‘‘नहीं, यात्री न हों तो फ्लाइट कैंसिल हो जाती है.’’
यात्रियों को प्लेन के उड़ने से पहले चूसने के लिए टाफियां, खट्टीमीठी गोलियां दी गईं. फिर उन की पसंद से चायकौफी, ठंडा, जूस, शरबत आदि दिया गया.
प्लेन धीरेधीरे ऊपर उठता अपनी पूरी ऊंचाई पर स्थिर हो उड़ने लगा. यात्रियों को अब सुरक्षापेटी यानी सेफ्टीबैल्ट खोल देने को कहा गया.
प्लेन में 8 यात्रियों के साथ 4 एअर- होस्टेस, 2 पायलट और 4 अटैंडैंट यानी कुल 18 लोग थे. जहाज में एक ही क्लास थी और एक ही तल था.
खाने का समय हो चला. यात्रियों की पसंद और इच्छानुसार उन को उन की पसंद की शराब या अन्य पेय दिया गया. फिर खाना सर्व हुआ.
अब हवाई जहाज का स्टाफ यानी क्रू भी खानेपीने लगा. ढाई घंटे के सफर के बाद थोड़ी देर के लिए प्लेन ने ताशकंद रुक कर ईंधन भरवाया. फिर उड़ चला.
यात्रियों के साथसाथ अब स्टाफ भी नींद के आगोश में था. हवाई जहाज नए जमाने का था. नवीन प्रणाली और उपकरणों से लैस था. नेविगेटर और आटो पायलट को एक निर्धारित पौइंट पर सैट कर पायलट और को-पायलट भी नींद की झपकी ले सकते थे.
‘‘इस समय हम कहां हैं?’’ इस रूट पर अनेक बार आ चुकी चीफ एअरहोस्टेस रीना ने कौकपिट में आ कर पूछा.
‘‘एशिया का इलाका पार कर अब मध्य यूरोप के ऊपर हैं, चंद मिनटों में आल्प्स पर्वतमालाओं के ऊपर होंगे,’’ कैप्टन अक्षय चौहान ने कहा.
‘‘एक ही रूट पर लगातार आते रहने से रास्ता जानापहचाना हो जाता है,’’ नई आई एअरहोस्टेस की इस टिप्पणी पर कौकपिट में मौजूद सभी खिलखिला कर हंस पड़े.