घर से कोसों दूर, बीहड़ जंगलों में, बर्फीले इलाके में देश की सुरक्षा में तैनात फौजियों की जिंदगी क्या होती है यह तो वही जानते हैं, या फिर उन के घरवाले. फौजी की यह एक चिट्ठी सब बयां कर रही है.

प्यारी सिमरन, मैं लद्दाख में अपनी यूनिट में पहुंच गया हूं. चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं. सिंगल पत्थर के पहाड़. हरियाली का कहीं नामोंनिशान नहीं है. पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ जमी हुई है. सर्दी बहुत है. ठंडी हवाएं चलती हैं. औक्सीजन की कमी है. थोड़ा सा पैदल चलने पर भी सांस फूलने लगती है.

यहां दूरदूर तक फौजियों के अलावा कोई दिखाई नहीं देता. गांव दूरदूर हैं. कभी कोई मिल जाता है तो सभी खुश हो जाते हैं. जूले, लद्दाखी भाषा में नमस्कार को जूल कहते हैं, कह कर उन का स्वागत करते हैं. हां, हमारे यहां लेबर स्थानीय लोग हैं. वे ईमानदार और बहुत मेहनती हैं. कुछ अपने गांव से आते हैं और कुछ के रहने के लिए टैंट लगा रखे हैं. राशन सब को सेना देती है.

चांदनी रात है, चारों तरफ सन्नाटा है. मैं रात की ड्यूटी पर हूं. हवा बहुत तेज चल रही है. खुद को बचाने पर भी इस भयंकर सर्दी से बच नहीं पा रहा हूं. दुश्मन पर नजर है पर तुम्हारी याद दुश्मन पर भारी है. काश, तुम छम कर के मेरे पास आ जातीं तो मैं तुम्हें अपनी बांहों में भींच लेता. कुछ गरमाहट ही आ जाती. शरीर में सर्दी के कारण जो कंपकंपी आ रही है वह कुछ कम हो जाती पर यह संभव नहीं है.

मैं यहां तुम्हारी याद में तड़प रहा हूं. तुम वहां तड़पती होगी. देश की सुरक्षा भी तो जरूरी है. हम जागते हैं तो देशवासी सोते हैं. अच्छा, मेरी शन्नो, मेरी ड्यूटी खत्म हो रही है. मैं सोने जा रहा हूं. तुम तो नहीं हो लेकिन स्लीपिंग बैग को तुम समझ कर लिपट जाऊंगा. सर्दी तो नहीं जाएगी लेकिन कुछ गरमाहट का एहसास होगा. बाहर ड्यूटी पर जो कंपकंपी छूट रही थी, वह कम हो जाएगी लेकिन जब तक पैर गरम नहीं होंगे, नींद नहीं आएगी.

पैरों को रगड़ कर गरम करने की कोशिश कर रहा हूं. दोदो गरम जुराबें पहनने पर भी पैरों के गरम होने में टाइम लग रहा है. पूरे शरीर पर गरम कपड़े हैं लेकिन सर्दी नहीं जा रही. हमारे टैंटों में लगी बुखारी रात 10 बजे बंद कर दी जाती है. पैर रगड़ कर गरम करने के अलावा और कोई चारा नहीं है.

बहुत देर बाद सोया तो तुम्हारे सपने आते रहे. सपने में खूब प्यार करते रहे. पता ही नहीं चला कब रात बीत गई. तब जगा जब बैड टी आई. नित्य कर्म से मुक्त हो कर मैं स्टोर में चला आया था.

माइनस 20 डिग्री तापमान में नहाना किसी सजा से कम नहीं है लेकिन हफ्ते में 3 बार नहाना जरूरी होता है वरना शरीर में कई तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं. हाथपैर की उंगलियां सूज कर गलने लगती हैं. उन्हें रोज गरम पानी में नमक डाल कर रखना पड़ता है. सुखा कर, अच्छी तरह फुटपाउडर लगा कर, जुराबें पहन कर सोना पड़ता है. होंठ फट जाते हैं. उन पर लिपसोल लगा कर स्टोर में जाना पड़ता है. नहाने के लिए गरम पानी उपलब्ध रहता है.

तुम चिंता मत करो, मैं यह सब कर लेता हूं. मैं ही नहीं, यूनिट के सब जवान अपनेआप को ठीक रखते हैं.

आज भी स्टोर में थोड़ी देर बैठा था. सर्दी इतनी थी कि लगा कुछ देर और बैठा तो जम जाऊंगा. स्टोर में रोज के काम निबटाने पड़ते हैं. आदेश ऐसे हैं कि अगर किसी का इयू आए तो वह स्टोर में जा कर इयू करेगा. फिर आ कर मेन औफिस में बैठेगा जहां बुखारी जलती रहती है. स्टोर में बुखारी नहीं जलाई जा सकती. आग लगने का खतरा रहता है.

स्टोर में या औफिस में बैठे भी मैं तुम्हें याद करता रहता हूं. सभी अपनीअपनी बीवियों को याद करते हैं. बच्चे भी उन्हें इतने याद नहीं आते. जिन की बीवियां नहीं होतीं वे किसी को भी याद कर लेते हैं. इन यादों में काफी गरमाहट रहती है. काफी देर सन्नाटा छाया रहता है.
हमारा एक स्टोरकीपर नईनई शादी कर के आया था. हमारा हवलदार उसे छेड़ने लगता है, ‘सुना भई सतनामे, तेरी खंड दी बोरी कैसी है? कोरी मिली या पुरानी फटी हुई थी?’

नई शादी की हुई को खंड की बोरी कहते हैं. हम सब के चेहरों पर मुसकराहट फैल जाती है. देखें सतनाम क्या जवाब देता है. वह बेचारा बहुत देर तक शर्म के मारे कुछ बोल नहीं पाया. जब बोला तो सब खिलखिला कर हंस पड़े थे. ‘कोरी थी जी, पुरानी क्यों मिलेगी?’

उसी हवलदार ने फिर छेड़ा, ‘अच्छा, कोरी होने पर भी कहांकहां से सिली हुई थी?’

सतनाम इस का जवाब नहीं दे पाया. उसे और छेड़ने लगे तो हमारे कमांडिंग अफसर साहब आ गए. उन के चेहरे पर भी मुसकराहट थी, कहा, ‘मुंडे नू ज्यादा न छेड़ो, नहीं तो मु?ो इसे छुट्टी पर भेजना पड़ेगा. क्यों सतनामे, छुट्टी जाएगा?’

‘हां जी, सर,’ उस ने ऐसे बोला जैसे ‘हां जी, नहीं बोला, तो छुट्टी नहीं मिलेगी.’

‘ठीक है, हैडक्लर्क साहब, इसे 20 दिनों की छुट्टी पर आज ही भेजो. नई खंड दी बोरी पुरानी कर के आएगा,’ कह कर वे हंसते हुए अपने कमरे में चले गए थे.

सभी खिलखिला कर हंस पड़े थे. हवलदार मेजर बोले, ‘लै भई सतनामे, मजाकमजाक में तेरी छुट्टी दा कम बन गया. हुन बोरी नू कोरी नहीं रखना.’

सतनाम बेचारा ‘जी’ भी नहीं कह पाया. छुट्टी पर जाने की तैयारी के लिए वह वहां से भाग गया था.

मेरी सोहनी, फौज में हमारे मनोरंजन के यही साधन हैं. एकदूसरे को छेड़ लेते हैं. नहीं तो दूरदूर तक कोई छेड़ने वाला नहीं मिलता. अभी परसों की बात है, एक जवान हरियाणा से छुट्टी काट कर आया था. सभी औफिस में बैठ कर आग ताप रहे थे. एक क्लर्क ने हरियाणवी में पूछा, ‘सुना भई, छोरे जींद के, के हाल सै तेरी बहू का?’

वह जवान गुस्सा हो गया, कहा, ‘मैं इतना लंबा सफर कर के, थक कर वापस आया हूं. तुम मेरे बारे में पूछने के बजाय मेरी बहू के बारे पूछ रहे हो?’

‘गुस्सा न कर छोरे जींद के. तुम तो उसे सहीसलामत दिखाई दे रहे हो, इसलिए उस ने तुम्हारी बहू के बारे पूछा था,’ हवलदार मेजर ने अपना तर्क देते हुए जवान को समझाने की कोशिश की. मजे की बात यह होती है कि हरियाणा में वह कहीं का भी रहने वाला हो उसे छोरा जींद का ही बुलाया जाता है. चाहे वह लाख कहे कि वह जींद का नहीं, फरीदाबाद का है या रिवाड़ी का. मेन मकसद होता था छेड़ना और खुश रहना. यही हमें अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऊर्जा देता है. हम अपनी ड्यूटी ठीक से कर पाते हैं.

अभी देखो न सिपाही हरनाम सिंह को. वह 18 साल का हुआ था. शादी करने जा रहा था. उसे कुछ नहीं पता था कि सुहागरात में क्या करना होता है. उस ने अपने टैंट में जा कर अपने उस्ताद से पूछा. उस्ताद ने कहा, ‘यह तो कान में बताने वाली बात है.’

कान में उस्ताद ने क्या कहा, उस समय तो पता नहीं चला, बाद में हमें फिर बताया तो हमारा हंसहंस कर बुरा हाल था. मैं ने उस्ताद से कहा, ‘यह आप ने क्या कह दिया. बेचारी सारा दिन अपने बालों को धोती रहेगी तो भी साफ नहीं होंगे.’

‘कुछ नहीं होगा. वह शहर की लड़की से शादी करने जा रहा है, वह सब बता देगी.’

‘वह तो ठीक है पर फिर बेइज्जती फौज की होगी कि इतना बड़ा जवान हो गया है लेकिन फिर भी फौज ने कुछ नहीं सिखाया है.’

‘मैं ने उसे सिखा दिया है. परिणाम अच्छा ही होगा,’ उस्ताद अपनी बात पर अड़े रहे और हम सब हंसते रहे.

जब वह छुट्टी से वापस आया तो उस का चेहरा देखने लायक था, ‘क्या, उस्ताद, आप ने गलत बता दिया. वह तो मेरी मोरनी नू पता सी कि वहां नहीं यहां सुहागरात मनाई जाती है.’

उस की बात सुन सारी यूनिट बहुत दिनों तक हंसती रही. हमारे कमांडिंग अफसर को पता चला और वे उसे देखते ही हंस पड़ते जबकि वह शर्म से भाग जाता. उस की छुट्टी बाकी थी. उसे तुरंत छुट्टी पर भेज दिया गया. वापस आया तो बहुत खुश था.

किसी के घर में खुशी हो जाए, पूरी यूनिट खुश हो जाती है.

अगर किसी के घर से दुख का समाचार आए या किसी के घर में मौत हो जाए तो सारी यूनिट को दुख होता है, अफसोस होता है. उसे तुरंत छुट्टी पर भेजा जाता है. हम फौजी कई बार घर से इतनी दूर होते हैं कि दुख में समय पर घर नहीं पहुंच पाते. रास्ते की कठिनाइयां. बर्फ से रास्तों का बंद होना. ट्रांजिट कैंप में रुके रहना. मौसम खराब होने पर फ्लाइट का कईकई दिन न मिलना. मुख्य कारण होते हैं. जैसे मैं बेबे के चोला छोड़ने पर टाइम पर नहीं पहुंच पाया था. सभी गुस्सा थे. ऐसी मजबूरियां हर फौजी के साथ होती हैं.

हमारे पत्रों पर किसी शहर का नाम नहीं होता है. 56 एपीओ या 99 एपीओ लिखा मिलता है. सारे पत्र पहले इन एपीओज के हैडक्वार्टर्ज में जाते हैं. उन्हें पता होता है कि कौन सी यूनिट कहां पर है. उस के अनुसार, वे आगे आर्मी पोस्टऔफिस को भेजते हैं. कहीं डाक ट्रेन से जाती है. कहीं प्लेन से. कहीं ड्रौप होती है, कहीं तो ऐसे बीहड़ रास्ते हैं कि डाक हाथी ले कर जाते हैं. जवान तक पत्र पहुंचने में कईकई दिन लग जाते हैं. तार भी पहुंचने में समय लगता है. इसी तरह मेरे पत्र पहुंचने में भी देरी होती है. अगर ऐसा हो तो चिंता न किया करो. हमारा पहला काम घर में पत्र लिखना ही होता है.

मेरी प्यारी सिमरन, तू अपना खयाल रखना. सोहनी बन के रहना. तू पिछली बार कह रही थी कि तैनू वदिया मेकअप बौक्स चाहिए. कैंटीन में मैक्सफैक्टर कंपनी के मेकअप बौक्स आए थे. मैं ने तेरे लिए एक खरीद लिया है. उस में लाली है, लिपस्टिक है, कई रंगों की नेलपौलिश हैं, बेस पाउडर है. थोड़ा भी मेकअप करने पर तू बहुत सोहनी लगेगी. प्यार करन दा मजा आएगा. होर भी जो कहेगी, बाजार से ले दूंगा.

वैसे, तैनू फैमिली अलौटमैंट दा मनीऔर्डर मिल रहा होगा. पैसे बच जाएं तो तेरे झुमके ले लेंगे. अगर कोई जवान बौर्डर पर पोस्ट हो तो अपने वेतन का 80 प्रतिशत अपनी पत्नी को फैमिली अलौटमैंट से भेज सकता है. उस का रिकौर्ड औफिस हर महीने मनीऔर्डर द्वारा भेजता रहता है. मनीऔर्डर का सारा खर्चा सरकार उठाती है. जवान को फिक्र नहीं रहती कि घर में पैसा नहीं पहुंच रहा है.

पिछली बार तुम ने पूछा था कि यहां खाना कैसा मिलता है? यहां खूब बढि़या खाना मिलता है. ब्रेकफास्ट में 4 पूरियों के साथ 2 अंडों की भुर्जी मिलती है. साथ में तेज गरम चाय होती है. यहां फ्रैश दूध तो मिलता नहीं है, पाउडर के दूध की चाय बनाई जाती है. इस से पहले मलटी विटामिन की एक गोली और विटामिन सी की 2 गोलियां खानी पड़ती हैं. नहीं खाएं तो भूख नहीं लगती. 8 बजे तक ब्रेकफास्ट कर के सब अपने काम पर चले जाते हैं. एक बजे लंच होता है. उस में दाल, चावल, सब्जी रोटियां, रायता मिलता है. यह नहीं कि एक बार मिल गया तो दोबारा नहीं मिलेगा. पेटभर खाना मिलता है.

डिनर में भी यही सब मिलता है. हफ्ते में 3 दिन मीट मिलता है. जो मीट नहीं खाते उन्हें 2 अंडों के हिसाब से अंडाकरी मिलती है और जो बिलकुल पंडित हैं, उन के लिए पाउडर के दूध की खीर बनती है. वैसे, पंडित बहुत कम होते हैं. मीट नहीं तो अंडा खा ही लेते हैं.

3 महीने जब रास्ते खुलते हैं तब सप्लाई डिपो इन का स्टौक कर लेता है. सब्जियां, मीट और फल टिन्ड में आते हैं. मौसम ठीक हो तो हमारी सरकारी और प्राइवेट डाक एयरड्रौप की जाती है. इन सब का प्रबंध करने के लिए अलगअलग यूनिटें हैं. सब अपनाअपना कार्य सुचारु रूप से करती हैं. किसी चीज की मुश्किल नहीं होती और न ही कमी होती है. तीन साल का स्टौक मेनटेन किया जाता है. कोई ज्यादा बीमार हो जाए तो हैलिकौप्टर से तुरंत उसे बड़े अस्पताल में शिफ्ट किया जाता है. इस के लिए हर ब्रिगेड में मैडिकल यूनिट होती है.

बस सिमरन, दिन तो किसी न किसी तरह गुजर जाता है लेकिन रात गुजारनी मुश्किल होती है. उस समय तुम्हारी कमी बहुत खटकती है. यह बौर्डर एरिया है. यहां फैमिली क्वार्टर नहीं होते हैं. किसी की फैमिली यहां नहीं आ सकती है. बौर्डर पर छिटपुट घटनाएं होती रहती हैं. लड़ाकू फौज के जवान उन से लड़ते रहते हैं. बिना फैमिली के 3 साल यहां रहना बहुत कठिन होता है. लेकिन देश की सुरक्षा के लिए सभी खुशीखुशी रहते हैं. पता होता है, 3 साल बाद फैमिली स्टेशन मिलेगा तो सभी की बीवियां उन के साथ होंगी.

इस बीच, तुम जानती हो कि हर साल 60 दिन की वार्षिक छुट्टी मिलती है और 30 दिन की कैजुअल लीव मिलती है. जिसे कोई भी जवान साल में 2 बार ले सकता है. मैं अभी छुट्टी काट कर आया हूं. कोशिश करूंगा, मैं तब छुट्टी आऊं जब तुम्हारी डीलीवरी का टाइम हो. पर सिमरन, कई बार यादें भी मुक जाती हैं. फिर रातें सूनी हो जाती हैं.

रातभर सो नहीं पाता हूं. चांदनी की रोशनी में सारीसारी रात तेरी याद सताती है. उधर तुम तड़पती होगी. तेरा आंसुओं से भरा चेहरा मेरे सामने आ जाता है. यह कैसी तड़पन है, कैसी विरह है जो हम दोनों को तड़पाती है? किसी लड़की को फौजन नहीं बनना चाहिए. तुम्हारा तो मुझ से भी बुरा हाल होगा. दूरदूर तक कोई अपना दिखाई नहीं देता होगा. मैं हौसला भी कैसे दूं. मैं खुद डोलता रहता हूं. फौजियों की तरह फौजनें भी शहीद होती रहती हैं. बच्चों को भी अभाव रहता है. सभी मुश्किलों का सामना खुद करना पड़ता हैं. फौजी तो लड़ कर शहीद होते हैं. फौजनें तो रोज शहीद होती रहती हैं. तकलीफों में भी काम करना पड़ता है. हमें तो बनाबनाया खाना मिल जाता हैं. तुम्हें सबकुछ खुद करना पड़ता है. तकलीफ होने पर भी. मैं दूर बैठा कुछ नहीं कर पाता हूं.

इस समय जबकि तुम गर्भवती हो, मुझे तुम्हारे पास होना चाहिए था. मेरी मजबूरी देखो कि मैं यहां लद्दाख में बैठा हूं. शरीर में हो रही तकलीफों को जो केवल तुम मुझ से शेयर करना चाहती हो, नहीं कर पाती हो. बौर्डर एरिया के कारण मोबाइल नैटवर्क नहीं है. हमारे मैसेज के इंटरसैप्ट होने का खतरा बना रहता है. हमारी लोकेशन का पता चल जाता है. हमारे पास चिट्ठियां लिखने के अलावा रास्ता नहीं है. वे भी सुरक्षा कारणों से सैंसर हो कर जाती हैं. मजबूरी यह कि प्यार की बातें लिखी नहीं जा सकती हैं. कोई पढ़ ले, तो? किसी ने कोई कोड वर्ड सैट किया हो तो उस से पूछा जाता है कि इस का क्या मतलब है. सतनामे ने अपनी चिट्ठी में कोड वर्ड लिखना ही छोड़ दिया. प्यार की बातें कोई लिख ही नहीं पाता. यह सब सुरक्षा कारणों से होता है. कोई कुछ नहीं कर पाता है.

जानता हूं, वहां मिलिट्री अस्पताल की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन फिर भी मेरा वहां होना तुम्हारे मौरैल को ऊंचा करता है. तुम हंसतेहंसते सारी तकलीफें सह लेतीं. बौर्डर पर हर रोज हम दुश्मनों से लड़ते हैं. हमारे साथ और जवान भी होते हैं. तुम तो हम से भी बड़ी लड़ाई लड़ रही हो, अकेले. तुम हम से भी बहादुर हो. सभी फौजनें बहादुर हैं. लड़ाई हिम्मत और बहादुरी से लड़ी जाती है.

यह अच्छा किया कि तुम ने अपने भाई को बुला लिया. रोजरोज की चीजों के लिए तुम्हें बाजार नहीं जाना पड़ेगा. तुम अपने भाई से मंगवा सकती हो. तकलीफ होने पर वह तुम्हें अस्पताल भी ले कर जा सकता है. मेरी फिक्र कम हो गई. बस, समयसमय पर अस्पताल चेकअप के लिए जाती रहना. मिलने वाली दवाइयां खाती रहना. अभी तो टाइम है. समय रहते मैं तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा. रात को तकलीफ हो तो वहां 24 घंटे डाक्टर और ऐंबुलैंस रहती हैं तुरंत रिपोर्ट करना. वे संभाल लेंगे. यह तब करना है अगर मैं टाइम पर पहुंच नहीं पाता हूं तो.

अपने भाई से कहना, सारे काम स्कूटर पर किया करे. सामान लाने में सहूलियत रहेगी. तुम स्कूटर पर बैठो तो ध्यान से बैठना. वह स्कूटर ध्यान से चलाए.

अच्छा सिमरन, पत्र बहुत लंबा हो गया है. अपना खयाल रखना. अपने भाई को प्यार देना.

तुम्हारा फौजी

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