कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक-एस भाग्यम शर्मा

"यह तो बहुत अच्छी बात है अर्चना. तूने तो अच्छा काम किया." "यहीं से तो मेरी बरबादी के दिन शुरू हो गए. मैंने सबकुछ खो दिया." "क्या कह रही है अर्चना?"

"सही कह रही हूं. अभी तक तो सब सही चल रहा था, पता नहीं कैसे एक सज्जन मुझ से टकरा गए और उन का व्यक्तित्व इतना आकर्षित था कि मैं उन की ओर आकर्षित हो गई."

"अर्चना, यह तो कोई बुरी बात नहीं है.""सही कह रही हो नीरा. पहले मुझे भी ऐसा ही लगा था. इस में क्या बुराई है. वैसे भी तुम्हें पता है, मैं जातिधर्म, छुआछूत इन सब से बचपन से ही दूर रहती थी. पर हमारा समाज तो ऐसा नहीं है. उस ने कहा, मंदिर में शादी कर लेते हैं. मैं ने अज्ञानता में उसे स्वीकार कर लिया और अपने को भी पूरी तरह से समर्पित कर दिया. उस ने भी कहा, मैं कुछ नहीं मानता हूं, मानवता ही सबकुछ है. पर मुझे बरबाद करने के बाद वह कहता है, मांबाप से पूछना पड़ेगा? पहले क्यों नहीं पूछा? पूछूंगापूछूंगा कहता रहा. मेरे पेट में गर्भ ठहर गया. 'अभी भैयाभाभी से मत कहना. पहले मैं अपने मांबाप से कह देता हूं, फिर तुम कहना.' अब तो मेरे लिए रुकने का सवाल ही नहीं. भैयाभाभी से कहना पड़ा."

"फिर?""लड़का तो उन्हें भी पसंद था. पर उस की बातें बड़ी अनोखी थीं. बारबार बेवकूफ बना रहा था. अब रुकने का तो सवाल ही नहीं था. भैया ने कहा, लड़के पर कार्यवाही करते हैं, जिस के लिए मैं राजी नहीं हुई. जिस को मैं ने एक बार चाहा उस के लिए ऐसी बात कैसे सोच सकती हूं?"

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...