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लेखक-एस भाग्यम शर्मा

सोशल मीडिया की यदि बहुत सी बुराइयां हम गिना सकते हैं तो फायदे भी इस के कम नहीं. राधा ने मुझे जब फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी तो मैं ने उसे एक्सेप्ट कर लिया. वह मेरे पीहर के शहर की थी तो अपनेआप अपनत्व आ जाना स्वाभाविक है. कहते हैं न, पीहर का कुत्ता भी प्यारा होता है. इस उम्र में भी पीहर का मोह नहीं छूटता.

राधा सरकारी अफसर से रिटायर हुई है. उस में पढ़नेलिखने की बहुत रुचि थी. मैं भी थोड़ीबहुत पत्रपत्रिकाओं में लिख लेती हूं. चांस की बात है, उसे मेरी कहानियां पसंद आईं. वह मेरी फैन हो गई. मैं ने कहा, ‘तुम मुंबई कैसे पहुंच गईं.’ ‘रिटायरमैंट के बाद बेटा मुंबई में नौकरी करता है तो मैं उस के साथ ही रहती हूं.’ फिर इधरउधर की गप हम अकसर करने लगे. "तुम लोग भी ग्वालियर में रहे हो न," मैं ने पूछा.

"हां, थाटीपुर में रहे हैं.""हम भी वहीं रहते थे. फिर तो तुम अर्चना को जानती होगी.""अर्चना को तो मैं जानती हूं क्योंकि वह हमारे पड़ोस में ही रहती थी. पर वह मेरे से सीनियर थी, सो बात नहीं होती थी.""अर्चना मेरी खास सहेली थी. हम साथसाथ पढ़ते थे. तुम्हारे पास उस का नंबर है?"

"नहीं, उस से मेरा कौन्टैक्ट नहीं है. परंतु उन के रिश्तेदार से मेरा कौन्टैक्ट है. आप कहें तो मैं उस से नंबर ले कर दे दूं."अर्चना से मिले 60 साल हो गए थे. शादी के बाद कभी नहीं मिली. उस के बारे में भी मुझे कोई खबर नहीं थी. उस के नंबर देते ही मैं ने अर्चना से कौन्टैक्ट किया.

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