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सुरेंद्र उसे बैसाखी के सहारे जाते देखते रहे. अब किसी और अकेले पड़े रोगी के पास कुछ क्षण हंसबोल कर उस में जीवन के प्रति विश्वास घोलने का यत्न करेगा. फिर किसी और…और यही उस की दिनचर्या है. अपना भी समय कट जाता है, दूसरों का भी. पहले वे स्वयं भी तो बिलकुल ऐसे ही थे. मस्त, बेफिक्र, भविष्य के प्रति पूर्णतया आश्वस्त. सपने में भी नहीं सोचा था कि जिंदगी कभी इतनी कड़वी व बोझिल हो जाएगी. जीवन को बांधने वाले स्नेहप्यार का एकएक धागा छिन्नभिन्न हो कर बिखर जाएगा.‘काश, उन्हें भी जगतपाल की तरह कोई भोलीभाली सी सीधीसरल पत्नी मिली होती, जिस के होंठों की खिलीखिली सी मुसकान उन की दिनभर की थकान धोपोंछ कर साफ कर डालती. जिस के हाथों की गरमगरम रोटियों में प्यार घुला होता. जो उन  के बच्चों को स्नेहप्यार से जीवन के संघर्षों से जूझना सिखाती. जिस के प्रेम और विश्वास में डूब कर वे समस्त संसार को भुला देते. वे सोचने लगे, ‘ओह, यह उन्हें क्या हो गया है? क्या सोचे जा रहे हैं? निरर्थक, अस्तित्वहीन, बेकार…जिन विचारों को ठेल कर दूर भगाना चाहते हैं, वे ही उन्हें चारों ओर से दबोचे चले जाते हैं.’

आंखों पर हाथ रख कर उन्होंने आंखें मूंद लीं. कहां गया जीवन का वह उल्लास, वह माधुर्य, उन्होंने कितने सपने देखे थे. लेकिन सपने भी कभी सच होते हैं कहीं? ‘‘क्या मैं अंदर आ सकती हूूं?’’ और इस के साथ ही दरवाजे पर लटका सफेद परदा सरकाते हुए इंद्रा ने अस्पताल के उस स्पैशल वार्ड में प्रवेश किया तो जैसे अतीत की सूनी, उदास पगडंडियों में भटकते सुरेंद्र के पांव एकाएक ठिठक गए. विचारों की कडि़यां झनझनाती हुई बिखर गईं. ‘‘तुम? आज कैसे रास्ता भूल गई, इधर का?’’

कमरे में बिखरी दवाइयों की तीखी गंध से नाक सिकोड़ती इंद्रा ने कुरसी पर पसर कर कंधे से लटका बैग मेज पर पटक दिया. ‘‘बस, कुछ न पूछो. बड़ी कठिनाई स समय निकाल कर आई हूं.’’ सेंट की भीनीभीनी खुशबू कहीं भीतर तक सुरेंद्र को सुलगाती चली गई. कभी कितना प्यार था उन्हें इस महक से? ‘‘कुछ अमेरिकी औरतें आई हुई हैं आजकल एशिया का टूर करने. बस, उन्हीं के साथ व्यस्त रही इतने दिन. पता ही नहीं चला कि 8-10 दिन कैसे बीत गए.’’ एक उड़तीउड़ती सी दृष्टि पूरे कमरे में डाल उस ने पति के दुर्बल, कुम्हलाए चेहरे पर आंखें टिका दीं, ‘‘बस, अभीअभी उन्हें एयरपोर्ट पर छोड़ कर आ रही हूं. इधर से जा रही थी. सोचा, 5 मिनट आप से मिलती चलूं. कल फिर एक सैमिनार के सिलसिले में बाहर जाना है. 3-4 दिनों के लिए अचला और रमेश भी आज आने वाले थे. तुम्हारी बीमारी के बारे में बता दिया था. शायद घर पहुंच भी गए होंगे.’’

वह अपनी रौ में बोले जा रही थी और सुरेंद्र पत्नी के चेहरे पर दृष्टि टिकाए विचारों में उलझे हुए थे. ‘तो आज भी मेमसाहब मुझ पर एहसान लादने चली आई हैं. और वह भी इस रूप में? क्या इस स्त्री को तनिक भी लाजशरम नहीं है? जीवन की इस संध्या बेला में यह चटख, चमकीले कपड़े, झुर्री पड़े, बुढ़ाते चेहरे को छिपाने के यत्न में पाउडर और लिपस्टिक की महकतीगमकती परतें. आंखों के आरपार खिंचा सिनेतारिकाओं का सा काजल और चांदी के तारों को छिपाने के यत्न में नकली बालों का ऊंचा फैशनेबल जूड़ा देख कर वितृष्णा से उन के मुंह में ढेर सी कड़वाहट घुल गई. इंद्रा से पति की बेरुखी छिपी न रह सकी, ‘‘तुम आज भी नाराज हो न? पर क्या कर सकती हूं, समय ही नहीं मिलता आने का.’’

‘‘मैं तो तुम से कोई सफाई नहीं मांग रहा हूं?’’

‘‘तो क्या मैं समझती नहीं हूं तुम्हें. जब देखो मुंह फुलाए पड़े रहते हो. पर सच कहती हूं कि एक बार उन विदेशी महिलाओं को देखते तो समझते. किस कदर भारत पर फिदा हो गई हैं. कहती हैं, ‘यहां की स्त्रियों की संसार में कहीं भी समता नहीं हो सकती. कितनी शांत, कितनी सरल और ममतामयी होती हैं. घर, पति और बच्चों में अनुरक्त. असली पारिवारिक जीवन अगर कहीं है तो केवल भारत में. एक हमारा देश है जहां स्त्रियों को न घर की चिंता होती है, न बच्चों की. और पति नाम का जीव? उसे तो जब चाहो पुराने जूते की तरह पैर से निकालो और तलाक दे दो,’’ वह हंसी, ‘‘हमारे महिला क्लब को देख कर भी वे बेहद प्रभावित हुईं…’’

सुरेंद्र पत्नी के गर्व से दमकते चेहरे को आश्चर्यचकित सा देखते रह गए. पति, घर, बच्चे, सुखी पारिवारिक जीवन, ममतामयी नारियां? यह सब क्या बोल रही है इंद्रा? क्या वह इस सब का अर्थ भी समझती है? यदि हां, तो फिर वह सब क्या था? जीवनभर पति को पराजित करने की दुर्दमनीय महत्त्वाकांक्षा, जिस के वशीभूत उस ने एक अत्यंत कोमल, अत्यंत भावुक हृदय को छलनी कर दिया. उन का सबकुछ नष्ट कर डाला. ‘‘तुम्हें किसी चीज की जरूरत हो तो कहो, किसी के हाथ भिजवा दूंगी. मेरा मतलब है कुछ फल वगैरा या कोई किताब, कोई पत्रिका?’’सूनीसूनी आंखें कुछ पल पत्नी के चेहरे पर जैसे कुछ खोजती रहीं, ‘‘जरूरत? डाक्टर को बुला दो, बस…’’

ठंडा, उदास स्वर इंद्रा को कहीं गहरे तक सहमाता चला गया.

‘‘कहिए, कोई खास बात?’’

सुरेंद्र ने डाक्टर सुधीर की आवाज सुन कर आंखों पर से हाथ हटाया, ‘‘जी, हां, डाक्टर साहब, इन्हें यहां से बाहर कर दीजिए.’’ डाक्टर सुधीर एकाएक सन्न रह गए. सुरेंद्र का कांपता स्वर, उन की आंखों में छलकता करुण आग्रह आखिर यह सब क्या है? कैसी अनोखी विडंबना है? पतिपत्नी के युगोंयुगों से चले आ रहे तथाकथित अटूट दृढ़ संबंधों का आखिर यह कौन सा रूप है? मृत्युशय्या पर पड़ा व्यक्ति सब से अधिक कामना अपने सब से प्रिय, सब से मधुर संबंधियों के सान्निध्य की करता है, और यह व्यक्ति है कि…

एक असहाय सी दृष्टि उन्होंने इंद्रा पर डाली. ‘‘लेकिन, डाक्टर, मैं ने तो इन से कोई ऐसीवैसी बात नहीं की. मेरा मतलब है…’’ इंद्रा का चेहरा अपमान से स्याह पड़ गया था.

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