पहले मां से रोज ही उस की बात हो जाया करती थी, फिर बातचीत का सिलसिला कम हो गया. पूजा जब पूछती कि मां, तुम ने खाना खाया कि नहीं, रोज शाम को टहलने जाती हो कि नहीं, तो अनुराधा हंस देतीं, ‘मेरी इतनी फिक्र न कर पूजा, मैं बिलकुल ठीक हूं. मुझे अच्छा लग रहा है कि तुम को अपनी नई जिंदगी रास आ गई. खुश रहो और सुवीर को भी खुश रखो. बस, इस से ज्यादा और क्या चाहिए?’
आज पूजा को पुरानी सारी बातें याद आ रही हैं. जब तक वह मां के साथ थी, हर समय उन पर हावी रहती, ‘मां, आप अपनी सहेलियों को घर न बुलाया करें, कितना बोर करती हैं. हर समय वही बात, शादी कब करोगी, कोई बौयफें्रड है क्या? आप की वह सफेद बालों वाली सहेली मोहिनीजी तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं. कितना तेज बोलती हैं और कितना ज्यादा बोलती हैं.’
‘मैं ने मां को समझा ही नहीं,’ पूजा बुदबुदाई और उठ खड़ी हुई.
सुप्रिया ने टोका, ‘‘कहां चली, पूजा?’’
‘‘मां को ढूंढ़ने.’’
‘‘कहां?’’
‘‘पता नहीं, सुप्रिया. पर एक बार मैं उन से मिल कर माफी मांगना चाहती हूं.’’
‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं,’’ सुप्रिया ने कहा.
अगले दिन सुवीर ने दोनों सहेलियों को हवाई जहाज से मुंबई भेजने की व्यवस्था कर दी. वह खुद भी साथ जाना चाहता था पर पूजा ने कहा, ‘‘जरूरत होगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगी. मुंबई हमारी जानीपहचानी जगह है.’’
सुप्रिया के मायके में सामान रख दोनों सहेलियां सब से पहले कांदिवली पूजा के घर गईं. पूजा धीरा आंटी के घर पहुंची तो उसे देख कर वे चौंक गईं, ‘‘अरे पूजा, तू? अनुराधा की कोई खबर मिली?’’
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