कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लगभग 2 घंटे बाद अजय भैया का फोन आया. फोन पर भैया ने जो कहा, सुन कर सुप्रिया के चेहरे का रंग बदलने लगा. पूजा उस के और पास चली आई. सुप्रिया ने पूरी बात सुन कर जैसे ही फोन रखा, पूजा ने उसे झकझोरा, ‘‘बता न सुप्रिया, अजय भैया ने क्या कहा?’’

सुप्रिया सोफे पर ढह गई. उस ने आंखें बंद कर लीं. पूजा ने चीखते हुए पूछा, ‘‘सुप्रिया, मां को कुछ हुआ तो नहीं?’’

सुप्रिया ने किसी तरह अपने को संभालते हुए कहना शुरू किया, ‘‘पूजा, तुम्हें यह खबर सुनने के लिए अपने को कंट्रोल करना होगा. सुनो...भैया बैंक गए थे. वहां पता चला कि अनुराधाजी ने पिछले महीने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया. तुम्हारी शादी और पढ़ाई के लिए उन्होंने बैंक से लोन लिया था, अपना फ्लैट बेच कर उन्होंने कर्ज चुका दिया और शायद उन्हीं बचे पैसों से तुम्हें 5 लाख रुपए भेजे.’’

पूजा की आंखें बरसने लगीं, ‘‘मां ने ऐसा क्यों किया? वे हैं कहां, सुप्रिया?’’

सुप्रिया ने धीरे से कहा, ‘‘वे अपनी मरजी से कहीं चली गई हैं, पूजा...’’

‘‘कहां?’’

दोनों सहेलियों के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि मां कहां गईं. सुप्रिया ने पूजा के बालों में हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं जहां तक तुम्हारी मां को जानती हूं वे संतुलित और आत्मविश्वासी महिला हैं. तुम्हारे पिताजी की मृत्यु के बाद जिस तरह से उन्होंने खुद को और तुम्हें संभाला वह तारीफ के काबिल है. तुम्हीं ने बताया था कि तुम्हारे ताऊजी और दादी ने मां से कहा था कि वे तुम्हारे चाचा से शादी कर लें...पर मां ने यह कह कर मना कर दिया था कि वे अपनी बेटी को खुद पाल सकती हैं. उन्होंने किसी से 1 रुपए की मदद नहीं ली.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...