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प्रेमा चाय बनाने चली गई, तो डाक्टर शर्मा ही बोले, ‘‘लेकिन, रज्जू, हम पूछते हैं, तुम्हें यहां आने की क्या आवश्यकता थी?’’

रज्जू ने आश्चर्य से कहा, ‘‘पापा, कमाल है. आप को यह हो क्या गया है? इतने अरसे बाद मिल रहे हैं, आप ने न मुझ से दुखसुख का पूछा, न मां, भाईबहन के बारे में, और ऊपर से आप ऐसे नाराज हो रहे हैं, जैसे मैं ने यहां आ कर कोई बड़ा अपराध किया है. पापा, घर पर आए दुश्मन को भी नहीं दुत्कारा जाता, फिर मैं तो आप का...’’

‘‘ठीक है,’’ बात काट कर डाक्टर शर्मा ने शंकास्पद निगाहों से रसोईघर को देखा और कहा, ‘‘तुम लोगों को हम नियमित पैसा ट्रांसफर करवा रहे हैं, फिर ऐसी क्या तकलीफ थी कि...’’

‘‘पापा, यह प्रेमा आप की छात्रा है, पड़ोसन है या परसनल सेक्रेटरी? बड़ी स्मार्ट है और ब्यूटीफुल भी,’’ बात काट कर बोला रज्जू.

डाक्टर शर्मा ने कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि उत्तर दिया चाय लाती हुई प्रेमा ने, ‘‘मैं कौन हूं? यह तो तुम जान ही जाओगे, हैंडसम यंगमैन. लेकिन, आप की तारीफ?’’

रज्जू ने नजाकत से चाय लेते हुए कहा, ‘‘तारीफ तो आप जैसी खूबसूरत की हो सकती है, मिस प्रेमाजी, हमारी कौन करता है? वैसे, आप को भी हमारे बारे में पता चल ही जाएगा, ऐसी जल्दी भी क्या है?’’

‘‘ब्यूटीफुल,’’ प्रेमा ने ताली बजा कर हंसते हुए कहा, ‘‘आदमी आप हैं ब्रिलियंट. क्या हाजिरजवाबी है? चाय पीयो, ठंडी हो जाएगी.’’

चाय की भरपूर चुसकी ले कर रज्जू बोला, ‘‘प्रेमाजी, सुना करता था कि खूबसूरत हाथों से बनी हर चीज लाजवाब होती है, लेकिन प्रमाण आज मिला है...वाह, क्या चाय बनी है. जिंदगी में पहली बार ऐसी बढ़िया चाय पीने को मिली है.’’

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