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बेटे की डांट से बुरी तरह सहम गई साधना. पहला मौका था, जो बेटे ने उस को इतने तीखेपन से उत्तर दिया था. पराया नगर, पति से निराशा और तीखे वचन की यह कचोट. उस ने आंख में से कचरा निकालने का अभिनय किया, लेकिन आंसू अपना काम कर ही गए.

दीपू सहमता हुआ बोला, ‘‘मां, पापा को मैसेज नहीं मिला होगा. उन का मोबाइल खराब होगा.’’

चौंक कर देखा रज्जू ने क्रमश: दीपू का सहमापन और मां की आंखों में आंसू तो उस को अपने तीखे कथन पर बहुत ही क्षोभ हुआ, अत: इस बार नम्रता से बोला, ‘‘मां, आप इस कदर परेशान क्यों हैं? पापा स्टेशन नहीं आए तो क्या हुआ, हम टैक्सी कर के सीधे घर चलते हैं.’’

‘‘घर का पता कहां है, रज्जू?” साधना ने भारी मन से कहा. हमें तो उन्होंने हमेशा कहा कि वे टैंपेरेरी मकान में रह रहे हैं, 2-4 दिन में बदल लेंगे.

‘‘घर का पता कालेज से मिल जाएगा, मां,’’ रज्जू ने कहा. ‘‘चलिए, उठिए, हम पहले कालेज चलते हैं.’’

रज्जू को किसी तरह की शंका थी और इसलिए वह कालेज के औफिस में अकेला ही गया. बड़े बाबू भी अकेले ही थे. रज्जू की बात सुन कर वह बोले, ‘‘अच्छा तो आप भी डाक्टर श्रीकृष्ण शर्मा के बारे में ही पूछ रहे हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘उन के नाम कुछ पत्र और भी हैं,’’ बड़े बाबू ने कहा, ‘‘आप उन के रिश्तेदार हैं?’’

रज्जू ने स्वीकृति से सिर हिला दिया.

‘‘बाहर से आए हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘डाक्टर शर्मा से आप की मुलाकात गरमी की छुट्टियों के बाद ही संभव हो सकती है,’’ बड़े बाबू ने गंभीरता से कहा, ‘‘करीब दस दिन...’’

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