कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कार्ड में लिखे संदेश को पढऩे के बाद बहू के मन में ससुर को ले कर उपजी शंका का कारण भी जड़ गया. उस की नजरों के सामने वे दिन याद आ गए जब सास की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु होने से अकेले पड़ गए रमण प्रसाद ने अपनी पत्नी की याद में तड़पते हुए कैसे अपनी जिंदगी को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. कुश के बहाने ही उस ने रमण प्रसाद को घर से बाहर खुली हवा में सांस लेने का एक बहाना दिया था. ससुर के चेहरे पर खुशी की झलक पाने के लिए अनजाने में उस के उठाए गए कदम से वह अब तक यह मानकर खुश हो रही थी कुश को स्कूल छोडऩे और ले जाने के एक काम से उन की दुख की परतें मन में कहीं दब कर खुशी की लहरें अब उन के जीवन का हिस्सा बन रही थीं. लेकिन वह आज जान पाई कि उन की खुशी का कारण तो कुछ और ही था. उन्हें दुख से उबरता पा कर ही उन की और कुश की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ही तो उस ने कुश को स्कूलवैन में भेजना शुरू किया था.

उस ने चुपचाप जींस और टीशर्ट को उसी तरह फोल्ड कर उस कार्ड को उस के बीच रख कर वापस रमण प्रसाद की तिजोरी में करीने से सहेज कर रख दिया.

उसी रात को उस ने शेखर से रमण प्रसाद के बारे में कुछ बात की और फिर पतिपत्नी दोनों ने एक बात पर सहमत हो कर एक महत्त्वपूर्ण फैसला कर लिया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...